colleges की एफडी पर सरकार की नजर

स्वतंत्र समय, भोपाल

जनभागीदारी के नाम पर स्टूडेंट्स से सालों से पैसे वसूल रहे कॉलेजों ( colleges ) की एफडी सरकार की नजरों में आ गई है। स्टूडेंट्स से मिलने वाली रकम को कोई भी कॉलेज अब अपनी जमा पूंजी नहीं बना सकेंगे। कॉलेजों की इस आदत को राज्य शासन ने आपत्ति जनक माना है। साथ ही सभी कॉलेजों से एक महीने में सारे खातों में जमा फंड और एफडी का रिकॉर्ड तलब किया गया है। इस संबंध में उच्च शिक्षा विभाग ने अपनी कार्रवाई शुरू भी कर दी है।

colleges राशि जमा करने के लिए नहीं है : आयुक्त

विभाग के सभी क्षेत्रीय कार्यालयों के अतिरिक्त संचालकों को निर्देश दिया गया है कि अगले माह होने वाली समीक्षा बैठक में प्रत्येक कॉलेज के वर्तमान और पुराने सत्रों की चालू खातों, बचत खाता एवं एफडी का रिकॉर्ड लेकर आएं। आयुक्त उच्च शिक्षा द्वारा अतिरिक्त संचालकों की समीक्षा बैठक में कॉलेजों ( colleges ) द्वारा जनभागीदारी समिति के नाम पर जमा हो रही फीस की राशि को सालों से जमा करने की आदत पर खासी आपत्ति जताई है। आयुक्त निशांत वरबड़े ने नाराजगी जताते हुए कहाकि यह राशि कोई जमा करने के लिए नहीं है। कॉलेज को इसे शैक्षणिक गुणवत्ता और कॉलेज के विकास के लिए लगातार खर्च करना चाहिए। अधिकांश सरकारी कॉलेज इस राशि से अपना फंड जमा करने में लगे हैं, जो आपत्तिजनक है। जबकि कॉलेजों को इस राशि से लगातार शैक्षणिक कार्यक्रम करते रहना चाहिए।

जनभागीदारी समिति अध्यक्ष से एक घंटा करें बात

जनभागीदारी समिति की राशि पर नजर रखने के साथ ही राज्य शासन ने प्राचार्यों और समिति अध्यक्षों के बीच तालमेल न होने पर भी नाराजगी जताई है। अतिरिक्त संचालकों को निर्देश दिए हैं कि उनके क्षेत्र के सभी कॉलेज प्राचार्य और जनभागीदारी समिति अध्यक्षों के बीच समन्वय होना चाहिए। इसके लिए प्राचार्य अपने कॉलेज के आयोजनों में जनभागीदारी समिति अध्यक्ष व सदस्यों को ससम्मान बुलाएं। इसके अलावा हर सप्ताह कम से कम एक घंटा अध्यक्ष के साथ बैठकर चर्चा करें। जनभागीदारी समिति की राशि का उपयोग करने के लिए अध्यक्ष कॉलेज डेवलपमेंट की वर्तमान और भावी योजनाओं की बातचीत करें। उनके सुझाव भी लें। विभाग ने इसमें क्षेत्रीय संचालकों की भूमिका भी तय की है।

मनमाना खर्च कर रहे कॉलेज

जनभागीदारी समिति के नाम पर छात्रों से वसूली कर अधिकांश कॉलेज संचालक मनमाना खर्च कर रहे हैं। छात्रों की सुविधा बढ़ाने की बजाय अपने चहेतों को समिति के फंड से काम पर रखा जा रहा है तो आउट सोर्स के कर्मचारियों और मजदूरों का पेमेंट भी इसी फंड से किया जा रहा है। समिति के फंड में लाखों-करोड़ों रुपए जमा होने के बावजूद बिल्डिंग, लैब, ग्राउंड, कंप्यूटर खरीदी आदि खर्च शासन की योजनाओं से किया जाता है।