बिजनेस न्यूज, नई दिल्ली।
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को इस बात पर जोर दिया कि मौद्रिक नीति को सक्रिय रूप से मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने वाली होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके ऐसा होने से ही जुलाई में 7.44 प्रतिशत के उच्चतम स्तर से मुद्रा स्फीति में गिरावट सुचारू रूप से जारी रही। अपने संबोधन में गवर्नर दास ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली बहुमुखी चुनौतियों पर चर्चा की और इन जटिलताओं के बीच नीति निर्माण में आवश्यक जटिल संतुलन पर जोर दिया। कौटिल्य इकोनॉमिक कॉन्क्लेव 2023 को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मूल्य स्थिरता तथा वित्तीय स्थिरता एक-दूसरे के पूरक हैं और आरबीआई ने दोनों को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने का प्रयास किया है।
सब्जियों तथा ईंधन की कीमतों में नरमी के कारण सितंबर में सालाना आधार पर खुदरा मुद्रास्फीति घटकर तीन महीने के निचले स्तर 5.02 प्रतिशत आ गई। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति अगस्त में 6.83 प्रतिशत और सितंबर 2022 में 7.41 प्रतिशत थी। जुलाई में मुद्रास्फीति 7.44 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक ने इस साल फरवरी में नीतिगत दर में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। इससे पहले, पिछले साल मई से लेकर कुल छह बार में रेपो दर में 2.50 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी। गवर्नर ने कहा कि हमने नीतिगत दर पर रोक बरकरार रखी है। अब तक 2.50 प्रतिशत की वृद्धि वित्तीय प्रणाली के जरिए अब भी काम कर रही है।
मौद्रिक नीति का असर
गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि डिजिटल भुगतान से मौद्रिक नीति का असर तेजी से और प्रभावी रूप से दिखने लगा है। दास ने इस बात पर भी जोर दिया कि मौद्रिक नीति हमेशा चुनौतीपूर्ण रहती है और इसमें आत्मसंतुष्ट होने की कोई बात नहीं है। गवर्नर ने अपने भाषण में कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था अब तीन चुनौतियों मुद्रास्फीति, धीमी वृद्धि और वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम का सामना कर रही है। घरेलू वित्तीय क्षेत्र के संबंध में उन्होंने कहा कि भारतीय बैंक तनाव की स्थिति के दौरान भी न्यूनतम पूंजी आवश्यकताओं को बनाए रखने में सक्षम होंगे। दास ने कहा कि भारत वैश्विक वृद्धि का नया इंजन बनने के लिए तैयार है और मार्च 2024 में समाप्त होने वाले चालू वित्त वर्ष में देश की जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने की उम्मीद है।