एमपी में कांग्रेस को झटका, जिला कार्यकारिणी से 30 से अधिक पदाधिकारियों ने दिया इस्तीफा, सोशल मीडिया पर निकाली भड़ास

मध्य प्रदेश कांग्रेस में संगठन के स्तर पर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। नीमच जिले में पार्टी के भीतर भारी असंतोष देखने को मिल रहा है। हाल ही में घोषित की गई जिला कार्यकारिणी की सूची को लेकर विवाद इतना बढ़ गया कि 30 से अधिक पदाधिकारियों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है। इस सामूहिक इस्तीफे ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की चिंताएं बढ़ा दी हैं।

यह पूरा विवाद सोशल मीडिया पर भी खुलकर सामने आ गया है। नाराज नेताओं ने न केवल अपने इस्तीफे की घोषणा की, बल्कि सार्वजनिक मंचों पर अपनी नाराजगी भी जाहिर की है। उनका आरोप है कि संगठन में जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जा रही है और नियुक्तियों में पारदर्शिता नहीं बरती गई है।

सोशल मीडिया पर दिखा गुस्सा

इस्तीफा देने वाले पदाधिकारियों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, विशेषकर Facebook और WhatsApp ग्रुप्स पर अपनी भड़ास निकाली है। कई नेताओं ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि वे पार्टी के लिए वर्षों से मेहनत कर रहे हैं, लेकिन नई कार्यकारिणी में उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला। यह डिजिटल विरोध अब पार्टी के लिए शर्मिंदगी का कारण बन रहा है।

सूत्रों के मुताबिक, इस्तीफे का दौर अभी थमने वाला नहीं है। असंतुष्ट गुट का मानना है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने उनकी चिंताओं को नजरअंदाज किया है। इस्तीफा देने वालों में कई ऐसे चेहरे शामिल हैं जो लंबे समय से संगठन में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे।

वरिष्ठ नेताओं की भूमिका पर सवाल

इस बगावत के पीछे स्थानीय गुटबाजी को भी एक बड़ी वजह माना जा रहा है। आरोप है कि जिला कार्यकारिणी के गठन में कुछ विशेष नेताओं के समर्थकों को तवज्जो दी गई, जबकि निष्ठावान कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर दिया गया। इस भेदभावपूर्ण रवैये के खिलाफ ही यह सामूहिक कदम उठाया गया है।

पार्टी हाईकमान तक भी यह मामला पहुंच चुका है। हालांकि, अभी तक प्रदेश नेतृत्व की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है, लेकिन माना जा रहा है कि डैमेज कंट्रोल की कोशिशें जल्द शुरू हो सकती हैं। अगर समय रहते इस असंतोष को नहीं दबाया गया, तो आने वाले समय में पार्टी को इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।

पहले भी सामने आए हैं ऐसे मामले

मध्य प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी और इस्तीफों का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के दौरान टिकट वितरण को लेकर कई जिलों में इसी तरह के विरोध प्रदर्शन देखे गए थे। नीमच की घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि संगठन में आंतरिक लोकतंत्र और समन्वय की भारी कमी है।

फिलहाल, सभी की नजरें प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और अन्य वरिष्ठ नेताओं पर टिकी हैं कि वे इस संकट से कैसे निपटते हैं। इस्तीफा देने वाले नेताओं ने साफ कर दिया है कि जब तक उनकी मांगे नहीं सुनी जाएंगी, वे अपने फैसले पर अडिग रहेंगे।