“कलमा पढ़ा… और मैं जिंदा बच गया”, पहलगाम हमले में बाल-बाल बचे असम के प्रोफेसर ने बताई आपबीती

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की खौफनाक कहानियों में एक दिल दहला देने वाला किस्सा सामने आया है। असम यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य ने बताया कि कैसे उन्होंने और उनके परिवार ने मौत को अपने करीब से गुजरते देखा और कैसे उन्होंने कलमा पढ़कर अपनी जान बचाई।

“धर्म पूछ-पूछकर मार रहे थे गोलियां”

प्रोफेसर भट्टाचार्य के अनुसार, वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ बेसरन घाटी में छुट्टियां मना रहे थे। अचानक वहां आतंकियों ने धावा बोल दिया। वे लोगों से उनका धर्म पूछकर गोली मार रहे थे। स्थिति इतनी भयावह थी कि लोग डर के मारे कलमा पढ़ते नज़र आए — ताकि उनकी जान बख्श दी जाए।

“मैंने भी कलमा पढ़ा… आतंकी पास आया, पूछा क्या कर रहे हो”

घबराए प्रोफेसर ने भी अपने बच्चों को छिपाया और खुद एक पेड़ के नीचे लेट गए। उन्होंने बताया कि जब एक आतंकी उनकी ओर आया और कुछ पूछने लगा, तब उन्होंने जवाब देने की बजाय कलमा पढ़ना तेज़ कर दिया। यह देखकर वह आतंकी दूसरी दिशा में मुड़ गया।

“बगल वाले को गोली लगी, हम चुपके से निकल गए”

प्रोफेसर बताते हैं कि वह आतंकी उनके बगल में लेटे व्यक्ति को सिर में गोली मारकर चला गया। इसके बाद वह, उनकी पत्नी और बेटा घने जंगल के रास्ते लगभग दो घंटे पैदल चलते हुए किसी तरह अपने होटल तक पहुंचे। आज भी उन्हें यकीन नहीं हो रहा कि वे कैसे जिंदा बच गए।

हमले ने छोड़ी गहरी मानसिक चोट, अब भी दहशत में हैं परिवार

घटना के 24 घंटे बीत जाने के बाद भी प्रोफेसर का परिवार घोर मानसिक सदमे में है। उन्होंने कहा, “ऐसी मौत पहले कभी इतनी नज़दीक से नहीं देखी। अब भी आंखें बंद करता हूं तो गोलियों की आवाज़ें सुनाई देती हैं।”

पहलगाम में नरसंहार: 26 मौतें, कई घायल

मंगलवार को हुए इस आतंकवादी हमले में आतंकियों ने चुन-चुनकर लोगों से धर्म की पूछताछ की और गोली मारी। कुल 26 लोगों की मौत हो चुकी है, कई अन्य घायल हैं। इसी तरह की एक घटना में पुणे की एक युवती ने दावा किया कि आतंकियों ने उसके पिता और चाचा को गोली मार दी, क्योंकि वे कुरान की आयत नहीं सुना पाए।