“इस्तीफा या महाभियोग?” – न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के घर से नकदी बरामदगी का मामला पहुंचा निर्णायक मोड़ पर

देश की न्यायपालिका एक अभूतपूर्व संकट के द्वार पर खड़ी है। न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा, जिनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास से जलती हुई नकदी के बंडल मिलने से हड़कंप मच गया था, अब सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट में दोषी पाए गए हैं। सूत्रों के अनुसार, उन्हें स्पष्ट शब्दों में दो विकल्प दिए गए हैं।  इस्तीफा दें या महाभियोग का सामना करें।

संसद में महाभियोग की सिफारिश
यह रिपोर्ट 4 मई को भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना को सौंपी गई, और अब न्यायमूर्ति वर्मा के पास 9 मई तक का वक्त है।  या तो वह अपना पद त्याग दें या फिर उनके खिलाफ राष्ट्रपति के माध्यम से संसद में महाभियोग की सिफारिश की जाएगी।

एक आग, जिसने जला दिए राज़
पूरा मामला तब शुरू हुआ जब 14 मार्च को दिल्ली में न्यायमूर्ति वर्मा के बंगले में आग लगने की सूचना मिली। लेकिन जब दमकल कर्मी वहां पहुंचे, तो नजारा हैरान कर देने वाला था। दरअसल, घर के अंदर नकदी के बंडल जलते हुए मिले। उस समय वर्मा और उनकी पत्नी मध्य प्रदेश में थे, जबकि घर में उनकी बेटी और बुजुर्ग मां थीं।

वायरल वीडियों ने किया विस्फोट
यहां वायरल हुए एक वीडियो ने पूरे मामले को तब विस्फोटक बना दिया जब  कैमरे में जलती हुई नकदी साफ दिखाई दे रही थी । इसके बाद संदेह और गहराया, जिसके बाद दिल्ली पुलिस आयुक्त ने यह वीडियो दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजा, जिनकी प्रारंभिक रिपोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को मामले में दखल देने पर मजबूर कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट की अभूतपूर्व कार्रवाई
प्रधान  न्यायाधीश ने 22 मार्च को एक विशेष तीन-सदस्यीय जांच समिति गठित की, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागु, हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधावालिया, और कर्नाटक हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल थे। समिति ने 25 मार्च से जांच शुरू की और अब उनकी रिपोर्ट में न्यायमूर्ति वर्मा को दोषी बताया गया ।

कार्यभार से हटाए गए, लेकिन लड़ाई अभी बाकी है
जैसे ही जांच शुरू हुई, सुप्रीम कोर्ट ने वर्मा को उनके मूल स्थान, इलाहाबाद हाई कोर्ट वापस भेज दिया और उनके न्यायिक कार्य पर रोक लगा दी गई। हालांकि, उन्होंने हाल ही में फिर से पद की शपथ ली, लेकिन कोर्टरूम में उनकी कुर्सी अब भी खाली है। इस बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने उनके समर्थन में हड़ताल तक कर दी, जो यह बताता है कि मामला सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि भावनात्मक और संस्थागत स्तर पर भी गहराता जा रहा है।