मतदाता सूची : महाराष्ट्र चुनाव में वोटर लिस्ट को लेकर गड़बड़ी के आरोप के बाद राहुल गांधी ने बिहार चुनाव में भी धांधली की आशंका जताई है। चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची का सघन पुनरीक्षण शुरू किया है, जिससे राज्य में राजनीतिक बहस छिड़ गई है। तेजस्वी यादव ने आयोग की मंशा पर सवाल उठाए हैं, खासकर 2003 की वोटर लिस्ट को आधार बनाने को लेकर। आयोग ने अपनी मंशा साफ करते हुए उठे सवालों के जवाब भी दिए हैं।
चुनाव आयोग क्या करने जा रहा है?
चुनाव आयोग ने कहा है कि मतदाता सूची का सघन पुनरीक्षण एक नियमित प्रक्रिया है, जो यह सुनिश्चित करने के लिए की जाती है कि केवल योग्य लोगों के नाम ही लिस्ट में हों। यह प्रक्रिया पिछले 75 सालों से चल रही है। आयोग ने बताया कि बिहार में आखिरी बार वोटर लिस्ट का पूरा सत्यापन 2003 में हुआ था, इसलिए वही लिस्ट वेबसाइट पर डाली गई है।
बिहार में 4.9 करोड़ मतदाताओं को नहीं देना होगा कोई सबूत
बिहार के लगभग 4.96 करोड़ वोटरों को सूची जांच के समय कोई भी दस्तावेज जमा नहीं करना होगा। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जो 2003 की वोटर लिस्ट अपलोड की गई है, उसमें इन लोगों के नाम पहले से मौजूद हैं। आयोग ने कहा कि 1 जनवरी 2003 को योग्य मतदाता माने गए लोगों को दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है। जिनका नाम लिस्ट में नहीं है, वे अपने माता-पिता के नाम वाले हिस्से को सबूत के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं।
वोटर सूची के सत्यापन पर विवाद, कानून क्या कहता है और विपक्ष को आपत्ति क्यों?
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 21(2)(क) और 1960 के नियम 25 के अनुसार, हर चुनाव से पहले वोटर लिस्ट का पुनरीक्षण जरूरी है। चुनाव आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया हमेशा होती रही है ताकि मृत लोगों के नाम हटाए जा सकें और नए योग्य मतदाताओं के नाम जोड़े जा सकें। लेकिन बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस प्रक्रिया को लोकतंत्र पर हमला बताया है। उन्होंने सवाल उठाया कि 22 साल बाद इतनी बड़ी प्रक्रिया केवल 25 दिन में क्यों हो रही है और क्यों सिर्फ बिहार में की जा रही है।