बढ़ते temperature की तपिश में झुलस रही दुनिया


ज्ञानेन्द्र रावत
लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद्

धरती का तापमान ( temperature ) जिस तेजी से बढ़ रहा है वह समूची दुनिया के लिए ख़तरनाक संकेत है। देखा जाये तो तापमान में बढ़ोतरी नित नए कीर्तिमान बना रही है। बीते नौ सालों ने तो धरती के सर्वाधिक गर्म होने का रिकार्ड कायम किया है। असलियत यह है कि दिन ब दिन, महीने दर महीने, साल दर साल तापमान में बढ़ोतरी के रिकार्ड ध्वस्त होते जा रहे हैं।

temperature को नियंत्रित करने के सारे प्रयास नाकाम

सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इस पर अंकुश की कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही। क्योंकि तापमान ( temperature ) को नियंत्रित करने के बारे में किये गये सारे प्रयास अभी तक नाकाम साबित हुए हैं। जहां तक भारत का सवाल है, देश का बड़ा हिस्सा आजकल झुलसा देने वाली गर्मी की चपेट में हैं। सच तो यह है कि इस भीषण गर्मी की मार से पहाड़ से लेकर मैदान तक सब जल रहे हैं। गर्मी ने सारा जन जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है और लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। बर्लिन स्थित मर्केटर रिसर्च इंस्टीट्यूट इन ग्लोबल कामंस एण्ड क्लाइमेट चेंज का अध्ययन तो यही संकेत देता है कि आने वाले दिनों में तापमान में कमी की उम्मीद ही बेमानी है।

अध्ययन के अनुसार तो धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के प्रयास बेहद कठिन हैं। यदि योजनाओं को पूरी तरह भी लागू कर दिया जाये तो भी कार्बन की वार्षिक मात्रा वर्ष 2030 तक 0.5 गीगाटन और वर्ष 2050 तक 1.9 गीगाटन बढ़ेगी। जबकि 2050 तक कम से कम 3.2 गीगाटन कार्बन उत्सर्जन कम होना चाहिये। ऐसे में पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करना नामुमकिन है। इस बारे में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर उल्फ बंटगेन का मानना है कि 2023 एक असाधारण गर्म वर्ष था और यह तब तक जारी रहेगा जब तक कि हम ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी नहीं करते। दरअसल पिछले दस महीनों से लगातार धरती के तापमान में रिकार्ड बढ़ोतरी से वैज्ञानिक चिंतित हैं कि हमारा ग्रह एक नये युग में प्रवेश करने जा रहा है। वैस्टर्न आस्ट्रेलिया यूनीवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक धरती के गर्म होने की रफ़्तार अनुमान से भी कहीं ज्यादा है। क्योंकि धरती 1.7 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो चुकी है जो संयुक्त राष्ट्र के मानक तापमान के अनुमान से भी आधा डिग्री अधिक है ।

वैज्ञानिकों की चिंता यह भी है कि यदि साल के अंत में तापमान में गिरावट नहीं हुयी तो यह ग्रह किस दिशा में जायेगा,यह कहना बहुत मुश्किल है। यह इसलिए भी क्योंकि पिछले दस महीने से तापमान में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई है। गौरतलब है कि धरती के तापमान में बढ़ोतरी के कारणों में ग्लोबल वार्मिग तो एक कारण है ही, ग्रीन हाउस गैसों, कार्बन डाइऑक्साइड का सतत उत्सर्जन, सल्फर डाइऑक्साइड की बढ़ती हुयी मात्रा, वनों के तेजी से होते विनाश, कार्बन फ्लोरो कार्बन गैसों का सतत उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन का दहन आदि की भी अहम भूमिका है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। बहरहाल वैज्ञानिक इस बारे में एकमत हैं कि धरती के बढ़ते तापमान को रोकने का प्रभावी तरीका ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करना है। फिर डब्ल्यू एम ओ की रिपोर्ट में चेतावनी दी गयी है कि 2027 तक धरती 1.5 डिग्री सेल्सियस और गर्म होगी। वैश्विक तापमान की सीमा को छूने का अर्थ है कि विश्व 19वीं शताब्दी के दूसरे हिस्से के मुकाबले अब 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है। विज्ञानियों के अनुसार कोयला, गैस और तेल जलाने की सभी सीमाएं पार करने से यह होगा। इससे पर्यावरण विज्ञानी जेट हौसफादर की बात से और बल मिलता है कि हमें वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस 2030 से पहले पहुंचने की उम्मीद नहीं है। लेकिन हर साल 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के करीब तेजी से पहुंचना भी बहुत बड़ा संकट है। इसके परिणाम बहुत भयावह होंगे।?

अमेरिका की पर्यावरण संस्था ग्लोबल विटनेस और कोलंबिया विश्वविद्यालय के विज्ञानियों के अध्ययन के मुताबिक सदी के अंत तक अत्याधिक गर्मी से 1.5 करोड़ लोगों की मौत हो जायेगी। पिछले कुछ वर्षो में हीटवेव ने लगभग दुनिया के हर महाद्वीप को प्रभावित किया है। इससे जंगल में आग लगने से हजारों लोगों की जान चली गयी हैं। वहीं योरोप में 60 हजार से अधिक लोगों की जान चली गयी। दुनिया के जलवायु विशेषज्ञों के सर्वे की मानें तो? वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढऩे पर बाढ़, विनाशकारी गर्मी और तूफ़ान आयेंगे। इस बारे में फ्रांस के आईडीडीआई नीति अनुसंधान संस्थान के डाश हेनरी वाइसमैन का कहना है कि जलवायु परिवर्तन में हमें डिग्री का हर दसवां हिस्सा बहुत मायने रखता है। उस स्थिति में जब आप सामाजिक आर्थिक प्रभावों को देखते हैं। तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने पर हीटवेव और तूफ़ान की तीव्रता में तेजी आयेगी।

अगर तापमान तीन डिग्री तक पहुंचा तो दुनिया के कई शहर समुद्र में डूब जायेंगे। फिर हिंद महासागर का गर्म होना सिर्फ सतह तक सीमित नहीं है, बल्कि समुद्र में गर्मी का भंडार भी तेजी से बढ़ रहा है। इससे चक्रवात और भारी वर्षा की घटनाएं बढ़ेंगीं। समुद्र का पानी असामान्य रूप से गर्म होगा। इससे वायुमंडल गर्म होगा। समुद्री जैव विविधता और मछलियों पर खतरा बढ़ जायेगा। चिंताजनक बात यह है कि समुद्र के अमलीकरण में तेजी आने से मूंगे की चट्टानें और खोल वाले जीवों सहित समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। बड़े पैमाने पर जीवों के आवास और पारिस्थितिकी तंत्र का खात्मा हो जायेगा। मध्य और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में सूखे की स्थिति में बढ़ोतरी होगी और उत्तरी गोलार्द्ध के उच्च अक्षांश क्षेत्रों में औसत से अधिक बरसात होगी। पृथ्वी आयोग और नानजिंग यूनीवर्सिटी के सहयोग से यूनिवर्सिटी आफ एक्सेटर इंस्टीट्यूट फार ग्लोबल सिस्टम यूके के शोध से खुलासा हुआ है कि बढ़ रही गर्मी के कारण दुनियाभर में दो अरब तथा भारत में साठ करोड़ लोगों पर खतरा मंडरा रहा है। समूची दुनिया की 22 से 39 फीसदी आबादी गर्मी के दुष्प्रभाव झेलेगी।

दुनिया में भारत सहित नाइजीरिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, पाकिस्तान,सूडान और नाइजर के लोग सबसे ज़्यादा गर्मी की मार से प्रभावित होंगे। यदि तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होती है तो अत्याधिक गर्मी के संपर्क में आने से भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। वर्तमान में 6 करोड़ लोग पहले ही से खतरनाक गर्मी के संपर्क में हैं। अगर तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होती है तो यह आंकड़ा काफी बढ़ जायेगा। भारत में बढ़ते तापमान से गर्भवती महिलाओं के लिए समय से पहले प्रसव, उच्च रक्तचाप सहित अनेक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा हो रहे हैं। ब्रिटिश अखबार गार्जियन के सर्वे में कहा गया है कि भारत सहित कई देशों की महिला वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्हें बच्चों के भविष्य को लेकर घबराहट होने लगी है। भारत सहित ब्राजील, चिली, जर्मनी और केन्या की महिलाओं के अलावा 17 वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्होंने कम बच्चे पैदा करना चुना है। इन बदलावों का असर हमारी पीढ़ी पर भी पड़ेगा। मौसम सम्बंधित मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण तापमान की चरम स्थिति भी है। असलियत में धरती को गर्म करने में कार्बन डाई ऑक्साइड की महत्वपूर्ण भूमिका है। सैनडियागो के स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन आफ ओसनोग्राफी के हालिया अध्ययन में चेतावनी दी गयी है कि वायुमंडल में अबतक इस गैस के स्तर में रिकार्ड बढ़ोतरी हुयी है। इससे हीटवेव, बाढ़, सूखे और जंगल की आग के रूप में विनाशकारी जलवायु संकट का खतरा बढ़ गया है।

सबसे अहम मुद्दा तो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि का है जिसने विज्ञानियों की चिंता को और बढ़ा दिया है। एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि लगातार तापमान में बढ़ोतरी से अगले कुछ दशकों में बड़े पैमाने पर विस्थापन की समस्या पैदा होगी।जैसे जैसे धरती गर्म होती जायेगी, वैसे ही वर्तमान जलवायु में भी बदलाव आयेगा और समय के साथ साथ यह परिवर्तन भविष्य में विस्थापन की गति को बढ़ावा देगा।
यह भी कि केवल एक ही डिग्री सेल्सियस तापमान बढऩे से ही दुनिया में विस्थापन करने वालों की संख्या 10 गुणा बढ़ सकती है। इस दशक के अंत तक 29 डिग्री सेल्सियस से ऊपर औसत वार्षिक तापमान पहुंच जायेगा। उस समय तकरीब दो अरब लोगों को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ेगा। फिर वैश्विक तापमान बढऩे के कई दुष्परिणाम होंगे। जैसे हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क और गुर्दे के साथ साथ दिमाग और हार्मोनल प्रणाली भी प्रभावित हो सकती है। यह समय पूर्व मृत्यु और विकलांगता का कारण हो सकता है। गौरतलब है कि अत्याधिक तापमान के कारण हर साल तकरीबन 50 लाख से ज़्यादा लोग अनचाहे मौत के मुंह में चले जाते हैं। तापमान में बढ़ोतरी के चलते वाष्पीकरण की दर में वृद्धि होने से मिट्टी की नमी कम होने लगती है। इससे कई क्षेत्र सूखे का सामना करते हैं। नतीजतन फसलों की पैदावार में कमी आती है। इससे खाद्य असुरक्षा, गरीबी, बेरोजगारी और बाढ़ का खतरा मंडराने लगता है।

जलाशयों में पानी का भंडारण कम होने और भूजल का स्तर गिरते जाने से जल संकट गहराता है सो अलग। इसलिए जरूरी है कि हम सतर्क रहें, सादा जीवन जियें और इस हेतु दूसरों को प्रेरित करें।? अधिकाधिक वृक्षारोपण करें, प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग करें। यह जान लें कि प्लास्टिक का उत्पादन नहीं घटा तो तापमान और बढ़ेगा। अक्षय ऊर्जा को प्रमुखता देनी होगी और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना होगा। सबसे बड़ी बात कि हमें प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करना होगा। उसकी रक्षा जीवन का ध्येय बनाना होगा और प्रकृति प्रदत्त संसाधनों की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहना होगा। तभी धरती बची रह पायेगी
(ये लेखक के स्वतंत्र विचार हैं)