बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के लिए दोहरे झटके की स्थिति पैदा कर दी है। एक ओर पार्टी को करारी हार मिली, वहीं दूसरी ओर उसके पारंपरिक वोटर भी इस बार साथ छोड़ते नजर आए। 2020 की तुलना में आरजेडी की सीटें लगभग आधी हो गईं और सिंगल लार्जेस्ट पार्टी का तमगा भी उससे छिन गया।
यादव वोट बैंक में सबसे बड़ा नुकसान
बिहार की राजनीति में यादव समुदाय को आरजेडी का स्थायी वोट बैंक माना जाता है। राज्य की आबादी में यादवों की हिस्सेदारी 14 प्रतिशत है और करीब 70 से ज्यादा सीटों पर उनकी निर्णायक भूमिका होती है। 2020 में यादव समुदाय ने तेजस्वी के नेतृत्व में जमकर समर्थन दिया था और महागठबंधन को 40 से अधिक यादव विधायक मिले थे।
लेकिन इस बार तस्वीर बिल्कुल उलट रही। आरजेडी ने 51 यादव उम्मीदवारों को टिकट दिया था, मगर उनमें से केवल लगभग 10 ही जीतने में कामयाब हुए। पटना साहिब, छपरा, सीवान, महुआ, गायघाट, दरभंगा ग्रामीण, नवादा, गोविंदपुर, शेरघाटी जैसी यादव-बहुल सीटों पर पार्टी को अप्रत्याशित हार झेलनी पड़ी। यहाँ तक कि तेजस्वी यादव खुद अपनी पारंपरिक सीट राघोपुर में बेहद कड़े मुकाबले में जीत पाए।
10 हज़ारी योजना ने बदला समीकरण?
विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश सरकार की 10 हजारी योजना ने चुनावी हवा का रुख बदलने में बड़ी भूमिका निभाई। चुनाव से ठीक पहले सवा करोड़ से अधिक महिलाओं के खातों में 10-10 हजार रुपये सीधे ट्रांसफर किए गए। पैसे देने में किसी भी वर्ग के साथ भेदभाव नहीं किया गया।
यही एक ऐसा कदम था, जिसने यादव महिलाओं समेत विभिन्न समुदायों के वोटरों को एनडीए के पक्ष में आकर्षित किया। वरिष्ठ पत्रकार बीरेंद्र यादव के अनुसार, जब लाभार्थी पूरे समाज में समान रूप से बन गए, तो यादव समुदाय का हिस्सा भी स्वाभाविक रूप से प्रभावित हुआ और वोटों में सेंध लग गई।
मुस्लिम वोट बेस का भी खिसकना
आरजेडी को दूसरा बड़ा झटका मुस्लिम वोट बैंक में लगा। दशकों से MY (Muslim-Yadav) समीकरण आरजेडी की नींव मान जाता रहा है, लेकिन 2025 में स्थिति बदली। सीमांचल और मिथिलांचल की मुस्लिम बहुल सीटों पर महागठबंधन को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
29 मुस्लिम उम्मीदवारों में से सिर्फ 4 जीत सके, जबकि एनडीए द्वारा उतारे गए 5 में से 4 मुस्लिम उम्मीदवार विजयी रहे। वहीं, असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी 5 सीटें जीतकर नई राजनीतिक चुनौती बनकर उभरी है।
क्या है कुल वोट प्रतिशत की तस्वीर?
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार—
- आरजेडी को कुल 22% वोट मिले
- पूरा महागठबंधन मिलकर लगभग 35% वोट हासिल कर पाया
- स्पष्ट है कि वोट बैंक में बड़े पैमाने पर खिसकाव हुआ है, खासकर उन इलाकों में जहाँ यादव और मुस्लिम समुदाय की निर्णायक उपस्थिति है।
तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने के बावजूद महागठबंधन अपने प्रमुख सामाजिक आधार को बचाए रखने में असफल रहा। मुख्य कारण माने जा रहे हैं—
- महिलाओं को सीधे आर्थिक लाभ देने वाली सरकारी योजनाएँ
- एनडीए की जमीनी रणनीति
- एआईएमआईएम जैसी पार्टियों का उभरना
- महागठबंधन की कमजोर पकड़ और संगठनात्मक चुनौतियाँ
- इन सभी कारणों ने मिलकर यादवलैंड और मुस्लिम बेल्ट दोनों जगह महागठबंधन को गहरी चोट पहुँचाई है।