मई महीने में लगातार कमजोरी झेलने के बाद रुपए ने जून के पहले कारोबारी दिन चौंकाने वाली वापसी की। सोमवार को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 16 पैसे की मजबूती के साथ 85.39 पर बंद हुआ। यह मजबूती तब आई जब विदेशी मुद्रा बाजार में अमेरिकी डॉलर कमजोर हुआ और बाजार को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की नीतिगत दरों में कटौती की उम्मीद जगी।
जानकारों का मानना है कि आरबीआई आगामी मौद्रिक नीति बैठक में 50 बेसिस प्वाइंट तक की दर कटौती कर सकता है, जिससे निवेशकों और बाजार को राहत मिल सकती है।
RBI फिर बना संकटमोचक
बीते कुछ महीनों में जब भी आर्थिक दबाव बढ़ा है, भारतीय रिजर्व बैंक ने आगे आकर हालात संभालने की कोशिश की है। इस बार भी, रुपया जब दबाव में था, तब आरबीआई की संभावित नीतिगत हस्तक्षेपों ने इसे सहारा दिया। 4 जून से शुरू हो रही मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक और 6 जून को होने वाली घोषणा पर सबकी निगाहें टिकी हैं। बाजार को उम्मीद है कि दरों में कटौती से घरेलू मांग को बढ़ावा मिलेगा और रुपए की स्थिति और मजबूत होगी।
डॉलर कमजोर, लेकिन जोखिम बरकरार
रुपए में आई इस मजबूती के पीछे अमेरिकी डॉलर में कमजोरी एक बड़ा कारण रहा। डॉलर इंडेक्स, जो डॉलर की अन्य प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले स्थिति को दर्शाता है, 0.55% गिरकर 98.71 पर आ गया। हालांकि, विदेशी मुद्रा व्यापारियों का कहना है कि वैश्विक शेयर बाजारों में अस्थिरता, विदेशी निवेशकों द्वारा धन निकासी और कच्चे तेल की ऊंची कीमतें अभी भी चिंता का कारण हैं, जिससे रुपये में ज्यादा तेजी नहीं आ पाई।
कच्चे तेल की कीमतें बनी चुनौती
वैश्विक बाजारों में ब्रेंट क्रूड की कीमत में 3.44% की बढ़ोतरी देखने को मिली, जो 64.94 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया। इसका सीधा असर रुपये पर भी पड़ा क्योंकि भारत तेल का बड़ा आयातक है। रिसर्च विश्लेषकों का कहना है कि जब भी तेल की कीमतों में बढ़ोतरी होती है, यह भारत के चालू खाता घाटे और मुद्रा पर दबाव बनाता है।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की रफ्तार धीमी
हालांकि रुपया मजबूत हुआ, लेकिन देश के औद्योगिक क्षेत्र से अच्छी खबर नहीं आई। एचएसबीसी इंडिया मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) मई में घटकर 57.6 पर आ गया, जो पिछले तीन महीनों का सबसे निचला स्तर है। यह गिरावट महंगाई, मांग में कमी और अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता के चलते आई है।
शेयर बाजार में सुस्ती, विदेशी निवेशक सतर्क
सोमवार को शेयर बाजार में भी सुस्ती देखने को मिली। सेंसेक्स 77 अंक गिरकर 81,373 पर और निफ्टी 34 अंक गिरकर 24,716 पर बंद हुआ। विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने भी सतर्क रुख अपनाते हुए करीब 6,450 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जो बाजार में विश्वास की कमी को दर्शाता है।
GDP ग्रोथ ने बढ़ाया भरोसा
इन तमाम नकारात्मक संकेतों के बीच, एक सकारात्मक संकेत यह रहा कि भारत की अर्थव्यवस्था ने जनवरी-मार्च तिमाही में 7.4% की दमदार ग्रोथ दर्ज की। इस तेज़ी के पीछे निजी खपत में बढ़ोतरी और निर्माण व विनिर्माण क्षेत्रों का अहम योगदान रहा। साथ ही, सरकार ने इस वित्त वर्ष में अपने राजकोषीय घाटे को GDP के 4.8% के लक्ष्य तक सीमित रखने में भी सफलता पाई है।
GST कलेक्शन में रिकॉर्ड बढ़ोतरी
देश का माल एवं सेवा कर (GST) संग्रह मई महीने में लगातार दूसरे बार 2 लाख करोड़ रुपये से ऊपर रहा, जो पिछले साल की तुलना में 16.4% की वृद्धि है। अप्रैल में यह आंकड़ा 2.37 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा था, जो अब तक का उच्चतम स्तर है।
विदेशी मुद्रा भंडार में भी उछाल
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 23 मई को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 6.99 अरब डॉलर बढ़कर 692.72 अरब डॉलर हो गया। यह भंडार पिछले सप्ताह में गिरकर 685.73 अरब डॉलर रह गया था। यह इज़ाफा भारत की आर्थिक स्थिरता को दर्शाता है और विदेशी निवेशकों को भरोसा देता है।