निमाड़ के संत सियाराम बाबा ने त्यागी देह, आज शाम को निकलेगा डोला, सादगी और त्यागमयी रही जीवन शैली

निमाड़ के संत सियाराम बाबा के देह त्यागने की खबर से पूरे क्षेत्र में शोक की लहर फैल गई है। बाबा पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थे और उनका इलाज आश्रम में ही चल रहा था। मंगलवार रात उनकी हालत अधिक बिगड़ने लगी थी और उन्होंने भोजन भी त्याग दिया था। बुधवार सुबह उनका निधन हो गया।

उनके भक्तों ने आश्रम पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। बाबा का अंतिम डोला दोपहर तीन बजे निकलेगा, जिसमें बड़ी संख्या में भक्तों के शामिल होने की संभावना है। खरगोन के भट्यान स्थित आश्रम में माहौल भावुक और शोकपूर्ण है। बाबा ने अपने जीवनकाल में सImpiritual मार्गदर्शन से हजारों लोगों को प्रेरित किया और समाजसेवा के कार्य किए।

संत सियाराम बाबा की अंत्येष्टि को लेकर भक्तों और सेवादारों ने विशेष तैयारियां की हैं। उनके अंतिम संस्कार के लिए चंदन की लकड़ी की व्यवस्था की गई है, जो उनकी साधना और सेवा के प्रति सम्मान का प्रतीक है। बीते तीन दिनों से आश्रम में सैकड़ों भक्त उनके स्वास्थ्य लाभ के लिए जाप और भजन-कीर्तन कर रहे थे, लेकिन बुधवार सुबह उनके निधन से सभी शोक में डूब गए।

मुख्यमंत्री मोहन यादव के निर्देश पर डॉक्टरों की एक टीम उनके स्वास्थ्य पर लगातार निगरानी रख रही थी। हालांकि, बाबा की स्थिति लगातार बिगड़ रही थी, और अंततः उन्होंने देह त्याग दी। बाबा के प्रति श्रद्धा और उनकी शिक्षा के प्रति आदर व्यक्त करने के लिए बड़ी संख्या में भक्त उनके अंतिम संस्कार में शामिल होंगे।

संत सियाराम बाबा की अंत्येष्टि बुधवार शाम को नर्मदा नदी के किनारे, आश्रम के समीप संपन्न होगी। उनके देहावसान की खबर सुनते ही श्रद्धालुओं की भीड़ आश्रम में उमड़ पड़ी है, और सभी अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।

बाबा को निमोनिया हो गया था, लेकिन अस्पताल में रहने की बजाय उन्होंने अपने शेष समय को आश्रम में अपने भक्तों के बीच बिताना चाहा। उनकी इस इच्छा का सम्मान करते हुए चिकित्सकों ने उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया था। आश्रम में रहकर वे भक्तों से मिलते रहे और अंत तक अध्यात्म व सेवा का संदेश देते रहे।

उनकी विदाई में बड़ी संख्या में लोग शामिल होंगे, और नर्मदा तट पर चंदन की लकड़ियों से उनकी अंत्येष्टि की जाएगी। यह श्रद्धा और उनके योगदान को सम्मानित करने का एक अनूठा अवसर होगा।

संत सियाराम बाबा का जीवन साधना, सेवा और सादगी का प्रतीक रहा। 100 साल से अधिक उम्र वाले बाबा ने नर्मदा नदी के किनारे अपने आश्रम की स्थापना की थी। उनकी साधना का एक अनूठा अध्याय तब शुरू हुआ, जब उन्होंने बारह वर्षों तक मौन धारण कर तपस्या की। इस दौरान वे एक पेड़ के नीचे ध्यानमग्न रहते थे। मौन व्रत समाप्त करने के बाद, उनके मुख से पहला शब्द “सियाराम” निकला, और तभी से भक्त उन्हें “सियाराम बाबा” के नाम से पुकारने लगे।

बाबा का जीवन पूरी तरह सादगी और परोपकार से प्रेरित था। वे कभी भी किसी बड़े दान को स्वीकार नहीं करते थे और केवल 10 रुपये का नोट ही स्वीकार करते थे। इस धनराशि का उपयोग वे आश्रम और समाजसेवा के कार्यों में करते थे। उनके सिद्धांत और उनकी साधना ने उन्हें लाखों लोगों का आदर्श बना दिया।

हर महीने हजारों श्रद्धालु बाबा के दर्शन और आशीर्वाद के लिए उनके आश्रम में आते थे। उनके जीवन का हर पल भक्तों और समाज के कल्याण को समर्पित था। उनका देह त्याग निश्चित ही एक युग का अंत है, लेकिन उनकी शिक्षाएं और आदर्श हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे।