Samvidhan Pe Charcha Live: प्रियंका गांधी ने संसद में संविधान पर हो रही चर्चा के दौरान केंद्र सरकार को नारी शक्ति के मुद्दे पर घेरते हुए यह सवाल उठाया कि नारी शक्ति अधिनियम बिल को अब तक लागू क्यों नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि संविधान ने सरकार को इस मुद्दे पर बोलने के लिए मजबूर किया है, लेकिन इसे लागू करने में देरी क्यों की जा रही है।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या देश की महिलाएं 10 साल तक इंतजार करेंगी? प्रियंका गांधी का यह बयान महिला आरक्षण बिल को लेकर चल रही चर्चाओं और इसे लागू करने में हो रही देरी पर केंद्रित था। उनका यह तर्क है कि महिलाओं के अधिकार और सशक्तिकरण की बात केवल चर्चा तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि इसे व्यवहारिक रूप में लागू किया जाना चाहिए।
प्रियंका गांधी ने संसद में संविधान पर चर्चा के दौरान केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार पंडित जवाहरलाल नेहरू का नाम केवल राजनीतिक लाभ के लिए लेती है, लेकिन जब जिम्मेदारी की बात आती है, तो उनका नाम नहीं लिया जाता। उन्होंने सत्ता पक्ष पर यह आरोप लगाया कि वे अतीत की घटनाओं, जैसे “1921 में क्या हुआ” या “नेहरू ने क्या किया,” पर ज्यादा ध्यान देते हैं, जबकि आज की सरकार की जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश की जाती है।
प्रियंका ने कहा, “अब वक्त आ गया है कि अतीत पर बात करने के बजाय वर्तमान पर ध्यान दिया जाए। देश को यह बताना चाहिए कि आज आप क्या कर रहे हैं। क्या सारी जिम्मेदारी केवल नेहरू पर डाल दी जाएगी?” उनका यह बयान सरकार से यह सवाल पूछने पर केंद्रित था कि वह आज के मुद्दों और चुनौतियों को हल करने के लिए क्या कर रही है।
इस बयान से प्रियंका गांधी ने सरकार को यह संदेश देने की कोशिश की कि इतिहास के नाम पर ध्यान भटकाने के बजाय, मौजूदा समस्याओं और उनके समाधान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
प्रियंका गांधी ने संसद में अपने भाषण के दौरान इंदिरा गांधी का उदाहरण देकर वर्तमान सरकार पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा, “इंदिरा गांधी ने बैंकों और खदानों का राष्ट्रीयकरण करके देश के आर्थिक विकास में अहम योगदान दिया। कांग्रेस सरकारों ने शिक्षा और भोजन का अधिकार सुनिश्चित किया और जनता का विश्वास जीता। पहले संसद में महंगाई और बेरोजगारी जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा होती थी और समाधान निकाले जाते थे, लेकिन आज संसद का कामकाज ठप कर दिया गया है।”
प्रियंका ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी निशाने पर लेते हुए कहा, “प्रधानमंत्री संविधान की किताब को माथे से लगाकर दिखाते हैं, लेकिन जब न्याय की बात आती है—जैसे संभल, हाथरस, या मणिपुर के मामलों में—तो उनके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं दिखती।” उन्होंने सरकार की संवेदनशीलता पर सवाल उठाते हुए कहा कि संवैधानिक मूल्यों का सम्मान केवल प्रतीकात्मक नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे क्रियान्वित करना चाहिए।
प्रियंका ने एक पुरानी कहानी का हवाला देते हुए कहा, “राजा भेष बदलकर जनता के बीच जाकर उनकी आलोचना सुनता था, ताकि वह जान सके कि वह सही रास्ते पर है या नहीं। लेकिन आज के राजा में न जनता के बीच जाने की हिम्मत है और न ही आलोचना सुनने की।”
यह बयान न केवल सरकार की नीतियों पर सवाल उठाता है, बल्कि जनसेवा और जवाबदेही के मूल सिद्धांतों की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश करता है। प्रियंका ने यह स्पष्ट किया कि सरकार को अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करना चाहिए और जनता की समस्याओं के समाधान पर फोकस करना चाहिए।
अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था और सरकार की नीतियों पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि राज्य में हालात इतने खराब हो गए हैं कि हर क्षेत्र में अराजकता व्याप्त है। उन्होंने कहा, “पहले तो ट्रेन के इंजन टकराते थे, अब तो डिब्बे भी टकराने लगे हैं।” उनका यह बयान प्रदेश की डबल इंजन सरकार के दावों पर तंज था।
उन्होंने आरोप लगाया कि “उत्तर प्रदेश में अपराध चरम पर है। जेलों के अंदर हत्याएं हो रही हैं, और प्रवर्तन निदेशालय (ED) बिना एफआईआर या नोटिस के किसी को भी जेल में डाल सकता है।” अखिलेश ने यह भी कहा कि न्याय के लिए लोग आत्मदाह करने को मजबूर हैं, और मुख्यमंत्री आवास के पास ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। उन्होंने राज्य में कस्टोडियल डेथ और महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों का जिक्र करते हुए कहा, “सरकार के अपने आंकड़े भी यह साबित करते हैं कि महिलाओं के उत्पीड़न के मामले बढ़ते जा रहे हैं।”
अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश को साइबर अपराध के मामले में देश में “सबसे आगे” बताते हुए कहा कि डिजिटल इंडिया के दावों के बावजूद अपराध नियंत्रण में सरकार पूरी तरह विफल रही है। उन्होंने डबल इंजन सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा, “पहले सत्ता पक्ष डबल इंजन सरकार का दावा करता था, लेकिन अब उनके दावे भी धराशायी हो गए हैं। पहले इंजन टकराते थे, और अब डिब्बे भी आपस में टकरा रहे हैं।”
उनका यह बयान उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार की कार्यशैली और कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए जनता को यह संदेश देने की कोशिश है कि राज्य में बदलाव की आवश्यकता है।