Sarva Pitru Amavasya 2024: सर्वपितृ अमावस्या का दिन विशेष रूप से उन पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के लिए शुभ माना जाता है, जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती या जिनका श्राद्ध किसी कारणवश नहीं किया जा सका हो। इस दिन सभी पितरों का एक साथ श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करना अत्यधिक शुभ और फलदायी माना जाता है। सर्वपितृ अमावस्या पर किया गया श्राद्ध अनुष्ठान पितरों की आत्मा को शांति और संतुष्टि प्रदान करता है और उनकी कृपा से परिवार को सुख, समृद्धि, और शांति प्राप्त होती है। यह दिन उन सभी दिवंगत पूर्वजों को समर्पित होता है जो अब हमारे साथ नहीं हैं, और इस दिन श्रद्धालु पूरे विधि-विधान से पूजा और तर्पण करते हैं ताकि पितरों की आत्मा को मुक्ति मिल सके। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पितृलोक से पूर्वज धरती पर आते हैं, और यदि इस दिन उनका श्राद्ध सच्चे मन से किया जाए, तो वे प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। सर्वपितृ अमावस्या 2024 की तिथि, शुभ मुहूर्त, और तर्पण की विधि निम्नलिखित है:
1. सर्वपितृ अमावस्या तिथि 2024
– तिथि: 2 अक्तूबर 2024 (बुधवार)
– श्राद्ध पक्ष: 17 सितंबर 2024 को शुरू होकर 2 अक्तूबर 2024 को समाप्त होगा।
– अमावस्या आरंभ: 1 अक्तूबर 2024 को शाम 03:30 बजे से।
– अमावस्या समाप्त: 2 अक्तूबर 2024 को शाम 04:45 बजे तक।
2. शुभ मुहूर्त
– सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध तर्पण का समय: 2 अक्तूबर को सुबह 07:00 बजे से लेकर दोपहर 12:00 बजे तक तर्पण के लिए सबसे उत्तम समय है।
3. तर्पण की विधि
तर्पण या श्राद्ध अनुष्ठान दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए किया जाता है। तर्पण की विधि इस प्रकार है:
1. स्नान और शुद्धि: सर्वप्रथम सुबह स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. पूजा सामग्री: पूजा के लिए कुशा, तिल, जल, फूल, धूप, और प्रसाद (खीर, पुए, फल) रखें।
3. स्थान: पवित्र स्थान पर पूर्वजों की फोटो या प्रतीकात्मक रूप से कुशा और तिल से बनाए गए पिंड रखें।
4. तर्पण मंत्र: पितरों का आह्वान कर जल में तिल मिलाकर “ॐ पितृभ्यः नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए तर्पण करें।
5. पिंडदान: तर्पण के बाद, पिंडदान करें। पिंड बनाने के लिए चावल या आटे का उपयोग किया जा सकता है। पिंड को धूप-दीप दिखाकर श्रद्धा से अर्पित करें।
6. भोजन: तर्पण के बाद ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराएं और उन्हें वस्त्र, दक्षिणा देकर विदा करें।
7. ध्यान: पूजा के अंत में दिवंगत पूर्वजों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए ध्यान करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करें।
इस दिन विशेष रूप से वे लोग तर्पण और पिंडदान करते हैं, जिनके पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती। यह अनुष्ठान पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति और शांति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।