Sawan 2025 : आखिर क्यों पहनते हैं शिवजी बाघ की खाल? जानें क्या हैं इसके पीछे की वजह

Sawan 2025 : भगवान शिव को उनके रूप, प्रतीकों और साधना के लिए जितना पूजा जाता है, उतना ही उनके रहस्यमय स्वरूप ने सदियों से भक्तों और संतों को आकर्षित किया है। सिर पर अर्धचंद्र, गले में सर्प, हाथ में त्रिशूल और डमरू, भस्म लिप्त शरीर और विशेष रूप से बाघ की खाल पहने हुए उनका स्वरूप अपने आप में एक गहरा दर्शन समेटे हुए है। पर क्या आपने कभी यह सोचा है कि भगवान शिव बाघ की खाल ही क्यों पहनते हैं? इसके पीछे सिर्फ प्रतीकात्मकता नहीं, बल्कि एक पुरातन पौराणिक कथा छिपी है।

दारुकवन की घटना: जब शिवजी ऋषियों की परीक्षा लेने पहुंचे

एक समय की बात है, भगवान शिव बिना किसी वस्त्र के, दिगंबर रूप में भिक्षाटन करते हुए दारुकवन नामक वन में पहुँचे। यह स्थान कई ऋषियों और तपस्वियों का निवास स्थल था, जो वहाँ अपनी पत्नियों के साथ रहते थे। शिवजी का तेजस्वी, निर्मल और आकर्षक रूप जब इन तपस्वियों की पत्नियों ने देखा, तो वे मोहित होकर उनके पीछे चल पड़ीं। इस घटना से पूरे आश्रम में हलचल मच गई।

जब शिवजी पर बाघ ने किया हमला

ऋषियों को जब यह पता चला, तो उन्हें लगा कि कोई मायावी पुरुष उनकी पत्नियों को बहकाने की कोशिश कर रहा है। वे क्रोधित हो उठे और अपनी तपस्या की शक्ति से एक रौद्र और भयंकर बाघ उत्पन्न किया, जिसे शिवजी पर हमला करने के लिए भेजा गया। वह बाघ अत्यंत विकराल था, लेकिन शिवजी को पराजित करना असंभव था। उन्होंने न केवल उस बाघ को पराजित किया, बल्कि उसे अपने हाथों से मारकर उसकी खाल को अपने शरीर पर ओढ़ लिया।

शिवजी का यह कृत्य सिर्फ एक प्रतिक्रिया नहीं था, बल्कि एक गहरा संदेश था। उन्होंने यह दर्शाया कि वे केवल शरीर नहीं, चेतना हैं। ऋषियों की संकीर्ण दृष्टि, उनके भीतर छिपा अहंकार और मोह को शिवजी ने उजागर कर दिया। बाघ की खाल पहनकर उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि वे माया से परे हैं और हर उस शक्ति पर नियंत्रण रखते हैं जो भय, वासना या क्रूरता का प्रतीक है।

बाघ छाल का आध्यात्मिक अर्थ

  • वासना और अहंकार पर नियंत्रण: बाघ को आमतौर पर वासना, हिंसा और अहंकार का प्रतीक माना जाता है। शिवजी द्वारा उसकी खाल पहनना यह दर्शाता है कि वे इन समस्त नकारात्मक प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर चुके हैं।
  • अपरिमित शक्ति का स्वामी: शिवजी यह भी प्रदर्शित करते हैं कि वह प्रकृति की सबसे हिंसक शक्तियों पर भी नियंत्रण रखते हैं। बाघ की खाल उनके इस सर्वशक्तिमान स्वरूप की पुष्टि करती है।
  • वैराग्य और निर्भयता: वस्त्रों की परवाह न करते हुए, वन में दिगंबर होकर विचरण करना और बाघ की खाल पहनना, यह दर्शाता है कि शिवजी पूरी तरह से भौतिक आकर्षणों और डर से मुक्त हैं। वह केवल आत्मा की स्वतंत्रता के मार्ग पर चलते हैं।
  • ज्ञान का प्रकाश: इस कथा में ऋषियों द्वारा उत्पन्न बाघ अज्ञानता और भ्रम का प्रतीक था, जिसे शिवजी ने नष्ट कर दिया। यह संकेत करता है कि सच्चा ज्ञान बाहरी वेशभूषा या सामाजिक नियमों में नहीं, बल्कि आंतरिक चेतना और आत्मबोध में छिपा है।


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 इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य तथ्यों पर आधारित है। swatantrasamay.com इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता है।