स्वतंत्र समय, भोपाल
मप्र में पिछले दस सालों के दौरान सरकारी और गैर सरकारी निजी स्कूलों ( schools ) में 26 लाख बच्चे घट गए हैं। यह मामला कक्षा पहली से 8 वीं तक की शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों से जुड़ा है। इसके पहले भी स्कूल शिक्षा विभाग की रिपोर्ट में यह आंकडेÞ सामने आने के बाद भी विभाग के अफसरों के कानों में ‘जू’ तक नहींं रेगीं। अब यह मामला विधानसभा में विधायक प्रताप ग्रेवाल ने उठाया है।
schools शिक्षा मंत्री ने दी जानकारी
स्कूल शिक्षा मंत्री ने सदन में लिखित बताया कि वर्ष 2015-16 में शासकीय विद्यालय में नामांकन 78.96 लाख थे, जो 2024-25 में घटकर 58.17 लाख रह गए। इसीअवधि में निजी विद्यालयों में 2015-16 में 48.84 नामांकन 2024-25 में घटकर 43.93 लाख ही रह गए। वर्ष 2015-16 में शासकीय और निजी विद्यालय को मिलाकर 127.8 लाख बच्चे थे, जो वर्ष 2024-25 में घटकर 102.10 लाख रह गए । यानी शासकीय एवं निजी विद्यालयों में कक्षा 1 से लेकर 8 वीं तक के 25 लाख 70 हजार से अधिक बच्चे 10 साल में घटे हैं। स्कूलों के प्रवेश में यह गिरावट कक्षा 9 से 12 में भी रही। शासकीय विद्यालयों में वर्ष 2020-21 में 23.94 लाख से घटकर 2024-25 में 21.26 लाख छात्र रह गए और इसमें 2.68 लाख की कमी दर्ज हुई है। वहीं, निजी विद्यालयों में छात्रों की संख्या 13.5 लाख से घटकर 12.85 लाख रह गई है। पिछले पांच सालों में कक्षा 9वी से 12वी तक के 2.88 लाख छात्र-छात्राएं घटी हैं।
बेरोजगारों से वसूले 297 करोड़, स्कूटी और लैपटॉप में बांटे
बेरोजगारों से परीक्षा फीस के रूप में सरकार द्वारा वसूले गए 297 करोड रुपए प्रावीण्य श्रेणी में आने वाले विद्यार्थियों को स्कूटी एवं लैपटॉप देने में लुटा दिए है, जबकि कर्मचारी चयन मंडल के पास जनवरी 2025 को 245.10 करोड़ की फिक्स डिपाजिट है। उधर, वर्ष 2022 में लोक शिक्षण संचालनालय को राशि देने की वजह से भी बैंक में जमा राशि में कमी आई है। बताया जाता है कि कर्मचारी चयन मंडल ने 2016 से 2024 तक 112 परीक्षाएं आयोजित की थी, जिससे सरकार ने फीस के नाम पर आवेदकों से 1058 करोड़ वसूला था। तत्कालीन व्यापमं को 530 करोड़ रुपए मिले थे और इसमें से 297 करोड़ रुपए लोक शिक्षण संचालनालय को बांट दिए गए।
वित्त मंत्री ने सदन में दिया झूठा जवाब: ग्रेवाल
विधायक प्रताप ग्रेवाल ने आरोप लगाया कि बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा कि प्राथमिक शिक्षा में सकल नामांकन दर 98 प्रतिशत तथा माध्यमिक शिक्षा में 70 प्रतिशत और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा में 67 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है। शासकीय एवं निजी क्षेत्र में 1,25,000 विद्यालय संचालित हैं। जबकि विद्यालय में कम प्रवेश से यह सिद्ध हो रहा है कि प्रदेश में गुणवत्ताहीन शिक्षा के कारण विद्यार्थियों की संख्या में निरंतर चौंकाने वाली कमी हो रही है और खर्च लगातार बढ़ रहा है।