मप्र में जल्द ही धान की रोपाई की जगह सीधी बुआई वाली तकनीक अपनाई जाएगी। जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर और फिलीपींस के मनीला स्थित अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने सूखे खेतों पर धान की बुआई करने वाली तकनीक तैयार कर ली है।
इस धान की बायो फोर्टिफाइड किस्में हाइब्रिड होंगी। मिनरल और प्रोटीन से भरपूर होंगी। इस प्रोजेक्ट से जुड़ी पहली बैठक 24 से 26 जुलाई के बीच जबलपुर में होगी। इसमें फिलीपींस के 20 और मप्र कृषि विवि के 100 वैज्ञानिक जुड़ेंगे।
रोपाई जरूरी नहीं… डीप ड्रिल मशीन से गेहूं-चने की तरह धान बुआई
डीप ड्रिल मशीन से गेहूं और चने की तरह धान की बुआई की जाएगी। यानी खेतों में रोपाई के लिए पानी नहीं भरना होगा। अभी प्रदेश में 92 फीसदी क्षेत्रों में धान की खेती पौधरोपण विधि से होती है। बुआई तकनीक से पानी कम लगेगा, बारिश का पानी खेतों में पौधों के माध्यम से ग्राउंड वाटर भी रिचार्ज करेगा।
वैज्ञानिक दावा-यह धान कम पोषण में पकेगी, लेकिन खाने में अधिक पोषण देगी
जवाहर लाल नेहरू कृषि विवि के धान वैज्ञानिक डॉ. संजय कुमार सिंह ने कहा हैं कि प्रदेश में 60 से 80 दिन में पकने वाली धान की फसल उगाई जा रही है। हम ऐसे धान पर काम कर रहे हैं, जो कम पोषण में पकेगी, लेकिन खाने वाले को ज़्यादा पोषण देगी। दमोह, हरदा, बैतूल, रीवा, छतरपुर के किसानों को इससे फायदा होगा। यहां धान की फसल मानसून पर निर्भर हैं।
तकनीक बदली तो हर एकड़ में 8 हजार तक खर्च बचेगा
अभी 1 एकड़ धान की रोपाई के पहले कल्टीवेटर चलाने के बाद खेत को समतल किया जाता है। फिर पानी भरा जाता है। इन सबमें प्रति हेक्टेयर औसतन 9 हजार रुपए खर्च आता है। सीधे बुआई से यह खर्च प्रति हेक्टेयर 1 हजार रुपए रह जाएगा। साथ ही पौधे की जड़ तक पानी जाएगा, जो खेत में भी वाटर रिचार्ज कर देगा। हाइब्रिड किस्मों के मार्केट में आने से किसानों की निर्भरता प्राइवेट कंपनियों पर नहीं रहेगी। उन्हें सरकार से गुणवत्ता युक्त बीज मिलेंगे।