स्वतंत्र समय, अयोध्या
अयोध्या में भव्य राम मंदिर लगभग बनकर तैयार है। मंदिर के गर्भगृह में रामलला की मूर्ति स्थापित की जा चुकी है। वहीं राम मंदिर पर फहराए जाने वाले खास ध्वज को मध्य प्रदेश के रीवा में तैयार किया गया है। इस ध्वज पर सूर्य के साथ खास कोविदार वृक्ष को अंकित किया गया है। सूर्य और कोविदार वृक्ष को आखिर इस ध्वज पर स्थान क्यों दिया गया है? यह किस चीज का प्रतीक है? दरअसल सूर्य भगवान राम के वंश (सूर्यवंशी) को दर्शाता है। वहीं माना जाता है कि किसी समय में कोविदार वृक्ष अयोध्या साम्राज्य की शक्ति और संप्रभुता का प्रतीक था। जिस प्रकार बरगद भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है, उसी प्रकार कोविदार वृक्ष अयोध्या का राजवृक्ष था।
उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग के अयोध्या शोध संस्थान के डायरेक्टर डॉ. लवकुश द्विवेदी ने कोविदार वृक्ष को लेकर शोधकर्ता ललित मिश्रा को देशभर में वाल्मीकि रामायण पर बने चित्रों का अध्ययन करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही श्लोकों को भी अच्छी तरह से परखने को कहा। इस शोध में यह बात सामने आई कि त्रेता युग में अयोध्या साम्राज्य के ध्वज पर कोविदार वृक्ष था। महाराणा प्रताप के वंशज राणा जगत सिंह ने अपने समय में संपूर्ण वाल्मीकि रामायण पर चित्र बनाए थे। इनमें भरत को सेना सहित चित्रकूट आकर श्री राम को अयोध्या वापस चलने के आग्रह को लेकर भी एक प्रसंग मिलता है। भारद्वाज आश्रम में विश्राम कर रहे भगवान राम शोर सुनकर लक्ष्मण से देखने को कहते हैं। उत्तर से आ रही सेना के रथ पर लगे ध्वज को देख लक्ष्मण समझ गए कि सेना अयोध्या की है। इस ध्वज पर कोविदार का वृक्ष बना था।
इसके साथ ही वाल्मीकि रामायण के 96वें सर्ग के 18 वें श्लोक में बताया गया है कि लक्ष्मण जी को सेना के ध्वज का कोविदार वृक्ष दिखाई देता है जिससे वह पहचान लेते हैं कि सेना अयोध्या की ही है। वहीं श्लोक 21 में लक्ष्मण कहते हैं, ‘भरत को आने दीजिए। हम उन्हें हरा कर ध्वज को अधीन कर लेंगे।’ इस श्लोक से पता चलता है कि उस समय अयोध्या का राजवृक्ष कोविदार का पेड़ था, जिसे ध्वज पर भी अंकित किया गया था।