ताकत country की हमसे है…!


लेखक
प्रकाश पुरोहित

ताकत वतन ( country )  की तो महिलाओं से ही है। कल वह काम पर नहीं आई। पता चला टाउनशिप की और भी कामवाली छुट्टी पर थीं। ये सभी महिलाएं गई थीं महू, जहां बाबा साहेब आंबेडकर के स्मारक पर समारोह होना था। कुछ घरों से तो छुट्टी मिल गई और कुछ ने पैसे काट लिए कि पांच सौ रु. तो मिले ही हैं सभा में शामिल होने के, और खाना भी मुफ्त। दिन भर सोशल मीडिया पर कुछ चेहरे आते रहे और यह बताते रहे कि पांच सौ रु. का कहा था और कुछ नहीं मिला, खाना भी नहीं दिया। गांव से लाकर यहां छोड़ दिया है, अब कैसे जाएंगे पता नहीं! कहा जा रहा था कि कांग्रेस के नेता लेकर आए थे और अब कोई पूछ नहीं रहा है। तुम्हें भी पांच सौ रु. मिले या नहीं?’ दूसरे रोज जब काम पर आई तो पूछा।अपने जेब से किराया-भाड़ा लगा कर गई थीं हम सभी। खाना भी घर से खा लिया था।’ उसने झाड़ू लगाते हुए बताया।खबर तो यही थी कि भीड़ इक_ा करने के लिए पैसे दिए गए और खाना भी था?’ पूछ लिया।
हम ना तो किसी के बुलाने पर गए थे और ना किसी के कहने पर। हम मेहनत से इतना कमा लेती हैं कि एक रोज के पांच सौ रु. से हमें फर्क नहीं पड़ता। वैसे भी मेहनत पर भरोसा है, किसी की भीख पर नहीं। यह तो हमारी सोच है कि अच्छे काम के लिए एक रोज का काम खोटी हो तो करना चाहिए।’ उसने बताया।
ऐसा कौन-सा अच्छा काम था?’ जानना चाहा। बाबा साहेब आंबेडकर ने जो संविधान बनाया है, हम जैसे गरीब-गुरबों के लिए ही तो है। अगर कोई उनके काम की तारीफ कर रहा है, उसे बदलने से रोक रहा है, तो उसके साथ खड़ा होना चाहिए ना!’ यह एकदम नया मुद्दा निकल आया।तो तुम कांग्रेसी हो, राहुल गांधी की भक्त…?’ सवाल तो होना ही था।हमें यह सब नहीं पता, हम तो सिर्फ बाबा साहेब के लिए गए थे। हम किसी पार्टी में नहीं हैं, लेकिन जो बाबा साहेब के लिए लड़ रहा है, खड़ा हो रहा है, तो हम क्या एक दिन उसे नहीं दे सकते? मेरे अपने घर में ही इस बात पर बहस होने लगी थी कि तुम्हें क्या पड़ी है जाने की? राजनीति तो गंदी है, हमें इसमें नहीं पडऩा है। तब भी मैंने यही कहा कि यदि सभी ऐसा सोच लेंगे तो राजनीति अच्छी कैसे होगी, क्योंकि देश तो ये ही लोग चलाते हैं। कोई संविधान बदलने की बात कर रहा है और हम उसका विरोध नहीं करें, यह तो कोई बात ही नहीं हुई। बस, हम तो यह बताने गई थीं कि बाबा साहेब के काम को ना तो बदलने देंगे और ना ही कम होने देंगे।’ बिलकुल नेता की तरह बोल रही थी वह। ये तो कांग्रेस की उड़ाई अफवाह है कि संविधान बदल रहे हैं?’ बगैर आग के कहीं धुंआ भी होता है साहेब। फिर हम देख नहीं रहे हैं कि गरीब और गरीब हो रहा है और अमीरों के खजाने भरते जा रहे हैं। आज भी गांव में दलित को घोड़े पर नहीं बैठने देते, मूंछें नहीं रखने देते और बड़ी नौकरियों में कितने दलित हैं। सिर्फ राष्ट्रपति दलित बना देने से बाकी के साथ अन्याय और अत्याचार तो बंद नहीं हो जाएगा ना! अयोध्या के राम मंदिर के समारोह में तो उन्हें भी नहीं बुलाया गया। क्या हमें समझ नहीं आ रहा है? अगर आज चुप रहेंगे तो फिर कल भुगतना होगा।’ उसके साफ विचार तो दंग किए दे रहे थे।
तुम्हारे वहां जाने से क्या होगा?’ पूछा।ऐसा सोचने वाले कभी कुछ कर ही नहीं सकेंगे। हम तो सिर्फ इसलिए गई थीं कि बता दें कि हम कानून बदलने वालों के साथ नहीं हैं और हम उनके साथ खड़े हैं, जो बाबा साहेब के साथ हैं। यह बाबा साहेब का ही संविधान है कि हम मेहनत-मजदूरी करके भी शान से जी रहे हैं, नहीं तो हमने अपने गांव में बंधुआ मजदूर देखे हैं, पीढिय़ों तक, आज भी हालत नहीं सुधर रही है कि उन्हें पता ही नहीं है कि उनके अधिकार क्या हैं। बाबा साहेब की वजह से ही तो हमें सही और गलत का पता चला है। हम तो वैसे भी साल में दो बार महू जाते ही हैं, धन्यवाद देते हैं कि उनकी वजह से हमारी भी गिनती मनुष्यों में होती है।’ वह बोले जा रही थी।क्या हमें पांच सौ रु. बुरे लगते हैं, सरकारी लोग भी दे रहे थे, लेकिन हम तो अपनी वजह से गई थीं, किसी लालच में नहीं। अगर हमारे वहां खड़े होने से सरकार पर असर होता है तो यही हमारा इनाम है, मेहनताना है, मजदूरी है। बहुत सह लिया, अब नहीं। जहां भी मौका मिलेगा, बाबा साहेब के लिए बगैर हानि-लाभ के खड़े रहेंगे हम लोग। कोई अफसोस नहीं कि एक दिन की मजदूरी काट ली। बहुत छोटी सी है, उस बड़े काम के लिए, जिसे आंबेडकर जी ने सभी के लिए बनाया था…। इसलिए हमें किसी पार्टी से नहीं जोड़ें, जो अच्छे काम के लिए आगे आएगा हम भी उसके साथ ऐसे ही खड़े होते रहेंगे।’ कहते हुए वह बर्तन मांजने चली गई। मुझे यह अफसोस दे गई कि इतनी-सी बात हमें समझ क्यों नहीं आती कि भीड़ सिर्फ गरीबों की ही क्यों हो। (लेखक के ये निजी विचार हैं)