दुनिया का ऐसा अनोखा देश जहां हर 15 घंटे में होती है कीमत दोगुनी

कवि और उपन्यासकार गिओर्गी फ़ालोदी आठ साल ग़ायब रहने के बाद सन 1946 में हंगरी वापस आए तो उन्होंने हंगरी को कुछ ऐसा पाया जैसा वह पहले नहीं था हंगरी युद्ध के बाद से बिल्कुल टूट चुका था.राजधानी बुडापेस्ट, जहां गिओर्गी का जन्म और पालन-पोषण हुआ था,वह मलवे का एक ढेर बन चुका था.पुरे शहर में तबाह हुई इमारतों के ढांचे और लाशें दफ़्न थीं.गिओर्गी लौटने के कुछ समय बाद ही प्रकाशक ने उन्हें एक किताब के बदले 300 बिलियन पेंगो दिए थे. पेंगो वह करंसी थी जो उस समय देश में प्रचलित थी.300 बिलियन पेंगो सुनने में तो बहुत ज़्यादा रक़म लगती थी.परन्तु इन पैसों से सिर्फ़ एक मुर्ग़ी, दो लीटर तेल और कुछ सब्ज़ियां ही ख़रीद सकते थे.और अगर 15 घंटे से अपने वह पैसे खर्च नहीं किये तो 15 घंटे बाद चीजों की कीमत दुगनी हो जाएगी।

उस समय इतिहास की सबसे भयानक महंगाई के दौर का शिकार था हंगरी और महंगाई की दर हजारो नहीं,लाखो नहीं, करोडो में थी.हंगरी में हर दिन चीज़ों की क़ीमतें हर 15 घंटे बाद दुगनी होती थीं देश में मासिक महंगाई दर 50 फ़ीसद को देखते हुए आर्थिक विशेषज्ञों ने इसे “बैंग” की संज्ञा दी थी,जब तक देश में महंगाई पर क़ाबू पाया गया तब तक देश में चल रहे सारे पेंगो का मूल्य एक अमेरिकी सेंट से भी कम रह गया था.हंगरी की महंगाई के चरम सीमा पर थी यहाँ हर दिन दाम डेढ़ लाख प्रतिशत के हिसाब से बढ़ रहे थे.उसके बाद सरकार ने टैक्स जमा करना बंद कर दिया था किप्की यहाँ मिलने वाली आमदनी की क्रयशक्ति बहुत हद तक ख़त्म थी और एक नई करेंसी ही देश की आर्थिक स्थिति को सुधार सकती थी।

इस बात को ध्यान में रखते हुए 1 अगस्त 1946 को हंगरी ने गिल्डर नाम की करेंसी शुरू की जिसका मूल्य पहले की करेंसी से करोड़ों गुना अधिक था.इसके बाद महंगाई की लहर एक रात में ख़त्म हो गई. हलाकि इसकी तैयारी में कुछ महीने लगे थे. सरकार ने अनाज का भंडार कर लिया था ताकि जब नई मुद्रा लाई जाए तो कम से कम कुछ मंडियों में अनाउपलब्ध हो और ज़्यादा हो ताकि जनता में विश्वाश बना रहे.और साथी ही लोगो में यहाँ भरोसा भी पैदा किया की महंगाई टैक्स पर निर्भरता ख़त्म हो जाएगी, चीज़ों की क़ीमतों का निर्धारण दूसरी चीज़ों की क़ीमतों के हिसाब से नहीं किया जाएगा, और भविष्य में लंबे समय तक इन नीतियों को जारी रखा जाएगा.”


इन बातों ने जनता में इतना विश्वास पैदा कर दिया कि गिल्डर अपना मूल्य बरक़रार रख सके और और आहिस्ता ही सही, लेकिन अंततः आर्थिक गतिविधियां रफ़्तार पकड़ने लगीं.लोगो में विश्वास की महत्वपूर्ण भूमिका हंगरी के राष्ट्रीय बैंक के पास मौजूद सोने के भंडार की थी.यहाँ सोना युद्ध के अंतिम चरणों में देश से बाहर ले जाया गया था ताकि सोवियत सेना इस पर क़ब्ज़ा ना कर ले. और यह आस्ट्रिया के अमेरिका के क़ब्ज़े वाले इलाक़े में पहुंच गया था.इस सोने का देश में वापस आना एक बहुत बड़ी घटना थी जिसे उस साल एसोसिएटेड प्रेस ने 6 अगस्त को रिपोर्ट किया था.”एडोल्फ़ हिटलर की पूर्व निजी ट्रेन यहां तीन करोड़ 30 लाख डॉलर मूल्य का सोना लेकर पहुंची थी जो हंगरी के राष्ट्रीय बैंक का कुल कोष था ताकि हंगरी के नए आर्थिक ढांचे को सहारा दिया जा सके.”देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था कि किसी दुश्मन देश को सारी आर्थिक संपत्ति वापस कर दी गई हो. हंगरी के शासकों ने लोगो को उम्मीद दिलाई कि सोने की शत प्रतिशत वापसी उनके देश की अर्थव्यवस्था को बचा लेगी. लोगों को इस बात से अपनी नई मुद्रा पर विश्वास पैदा