लेखक
निखिल भट्ट, एडवोकेट हाईकोर्ट
देश के मुख्य न्याय मूर्ति श्री डीवाई चंद्रचूड़ ने न्याय के क्षेत्र में एक अनोखी पहल की जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट की लाइब्रेरी में लगी न्याय की देवी ( goddess of justice ) की प्रतिमा की आंखों से पट्टी हटा कर उनके हाथ में तलवार की जगह संविधान की किताब थमा दी गई है जबकि पहले इस प्रतिमा के एक हाथ में तराजू तो दूसरे हाथ में तलवार थी और आंखों में पट्टी बंधी हुई थी ये यह अनोखा परिवर्तन बहुत लंबे वक्त के बाद किया गया है जो अपने आप में कानून की देवी की एक अलग व्याख्या करता है ।
goddess of justice न्याय का प्रदर्शन करती है
कानून अंधा होता है इसका तात्पर्य यह था कि उसकी निगाह में अमीर, गरीब, बलवान, कमजोर, पीडि़त और अत्याचारी सब एक जैसे हैं क्योंकि जब वह अपनी आंखों में पट्टी बांधे हुए थी तो उसके सामने यह सच नहीं आता था कि उसके सामने न्याय की मांग करने वाला कौन है इसलिए वो इनमें भेदभाव ना करते हुए न्याय प्रदान करती थी। कानून अंधा होता है ये ना केवल एक कहावत बन गई थी बल्कि इस पर फिल्में भी बनी है इसके साथ-साथ इस न्याय की देवी ( goddess of justice ) के एक हाथ में तराजू थी जो इस बात को प्रतिबिंबित करती थी कि उसके तराजू में कोई “पासंग” नहीं है वह वह दोनों पक्षों को बराबरी से सुनती है और फिर अपनी तराजू पर उसको तौल कर पर न्याय का प्रदर्शन करती है दूसरे हाथ में तलवार शक्ति का भी प्रदर्शन करती थी। तलवार वीरों का हथियार आदिकाल से हिंदू संस्कृति का एक अंग रहा है इस तलवार का अर्थ यह भी था कि न्यायालय जो भी निर्णय देता है उसका सम्मान संबंधित लोगों को करना चाहिए और ऐसा नहीं होता है तो वह तलवार की धार जैसा नुकीला निर्णय भी दे सकता है ।
अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही इस परिपाटी को बदलने का ना तो किसी ने सोचा था और ना ही इस पर किसी ने कोई पहल की थी लेकिन अपने कठोर निर्णयों के लिए मशहूर देश के मुख्य न्यायाधीश मूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ ने जो पहल की है उसने न्याय, और न्याय करने वालों को एक नई दिशा देने का प्रयास किया है
इस नई पहल के तहत इंसाफ की देवी की आंखों से पट्टी इसलिए हटा दी गई है कि वह अपनी खुली आंखों से सब कुछ देख सके, किसी अंधे की तरह टटोलकर किसी चीज का निर्णय न कर सके, अपनी जीवंत आंखों के माध्यम से हर मुकदमे को देखे समझे और फिर उस पर अपना निर्णय दें। आंखों पर से पट्टी हटाने के पीछे शायद यह कारण भी उनके दिलों दिमाग में रहा होगा कि कानून अगर अंधा माना जाएगा तो उसके निर्णय पर भी उंगली उठाई जा सकती है। इंसाफ की देवी के हाथ से तलवार हटाकर उनके हाथ में संविधान देना इस बात को भी रेखांकित करेगा कि कानून संविधान से बंधा हुआ है जो संविधान भारत के लिए लिखा गया है उसी के तहत कानून अपना काम करेगा। किसी भी देश का संविधान उस देश की आत्मा होता है भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में संविधान हर नागरिक, को हर संस्था को अलग-अलग अधिकार देता है जो एक सफल लोकतांत्रिक देश के लिए आवश्यक होता है। तलवार की बजाय न्याय की देवी के हाथ में संविधान देना इसी लोकतांत्रिक परिपाटी का एक सबसे सफल और सुखद अध्याय माना जाएगा । पिछले दिनों बहुत से ऐसे कानूनों में परिवर्तन किया गया जो अंग्रेजों के जमाने के थे उन्हें एक नई परिभाषा दी गई, धाराओं में बदलाव किया गया जो कहीं ना कहीं कानून को सरल और आम आदमी के लिए बेहतर न्याय के लिए उठाया गया कदम था अब देश के मुख्य न्यायमूर्ति ने न्याय की देवी को एक अलग प्रतिमूर्ति के रूप में दर्शाने की कोशिश की है वह निसंदेह भारत की कानून व्यवस्था, उसके प्रति सोच लोगों को मिलने वाले न्याय के प्रति एक सुखद दृष्टिकोण साबित होगा ।