महाकुंभ भगदड़ मामले की सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) ने इसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ घटना बताया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करने से इनकार कर दिया और कहा कि याचिका को राज्य के उच्च न्यायालय में दायर किया जाना चाहिए।
महाकुंभ में हुई भगदड़ और जनहित याचिका
महाकुंभ के दौरान 29 जनवरी को हुई भगदड़ में 30 से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। इस घटना को लेकर एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई थी, जिसमें तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश बनाने और घटना पर स्थिति रिपोर्ट की मांग की गई थी। इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट के वकील विशाल तिवारी ने दायर किया था।
याचिकाकर्ता का आरोप और राज्य सरकार का जवाब
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश सरकार महाकुंभ में भगदड़ की घटना रोकने में लापरवाह रही और प्रशासन ने पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं किए। याचिकाकर्ता ने कुंभ मेले में ‘भगत सहायता प्रकोष्ठ’ की स्थापना और सभी राज्यों को भीड़ प्रबंधन के लिए नीतियां बनाने के निर्देश देने की मांग की। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने बताया कि घटना की न्यायिक जांच चल रही है, और इसी तरह की एक याचिका उच्च न्यायालय में भी दायर की गई है।
29 जनवरी को महाकुंभ में मौनी अमावस्या के मौके पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ त्रिवेणी संगम घाट की ओर बढ़ रही थी। इसी दौरान भगदड़ मच गई, जिससे 30 से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो गई और 60 से अधिक लोग घायल हो गए। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, मरने वालों की संख्या और भी अधिक हो सकती है। यूपी सरकार पर इस घटना को लेकर सवाल उठे हैं।