आम आदमी पार्टी (AAP) के सांसद राघव चड्ढा ने राज्यसभा में भारतीय कर व्यवस्था पर तीखा हमला बोला। चड्ढा ने कहा कि भारत में हर नागरिक को जन्म से लेकर मृत्यु तक टैक्स के चंगुल में फंसा रहना पड़ता है, और यह भी सवाल उठाया कि इतना भारी टैक्स चुकाने के बाद भी नागरिकों को दुनिया भर में मान्यता प्राप्त स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा या बुनियादी ढांचे की सुविधाएं क्यों नहीं मिलतीं?
उन्होंने करों के बोझ को बारीकी से स्पष्ट करते हुए कहा, “भारत में जीवन के हर चरण में टैक्स देने का सिलसिला शुरू होता है, और यह कभी खत्म नहीं होता। जैसे ही एक बच्चा जन्म लेता है, उसे मिलने वाली वैक्सीनेशन पर 5% GST लगता है। अगर अस्पताल का कमरा 5,000 रुपये से ज्यादा का हो, तो उस पर भी 5% GST चुकाना पड़ता है। बेबी फूड, शिशु देखभाल उत्पादों, मिठाइयों पर भी कर की मार पड़ती है।”
बचपन और किशोरावस्था में टैक्स का बोझ
चड्ढा ने बताया कि बचपन में भी कोई राहत नहीं है। बेबी फूड पर 12-18% GST, डायपर और खिलौनों पर 12%, और मुंडन जैसी पारंपरिक सेवाओं पर 18% GST लगता है। स्कूल की यूनिफॉर्म, जूते, नोटबुक और स्टेशनरी पर भी टैक्स लगता है। किशोरावस्था में स्मार्टफोन, इंटरनेट, रिचार्ज, मूवी टिकट और यहां तक कि पहली बाइक या स्कूटर पर भी कर का बोझ होता है।
युवावस्था में टैक्स का खेल जारी
चड्ढा ने युवावस्था का जिक्र करते हुए कहा कि इस दौरान भी आयकर, टीडीएस, रेस्तरां के बिल, बीमा प्रीमियम, और यहां तक कि उच्च शिक्षा के लिए निजी कॉलेज की फीस, हॉस्टल शुल्क और छात्र ऋण पर भी कर वसूला जाता है।
मध्यम आयु और रिटायरमेंट के बाद भी टैक्स का दबाव
मध्यम आयु में जैसे-जैसे आय बढ़ती है, वैसे-वैसे आयकर, कार पर GST, ईंधन पर वैट और संपत्ति कर का दबाव भी बढ़ जाता है। रिटायरमेंट के बाद भी पेंशन, ब्याज आय, स्वास्थ्य बिल, दवाइयों, और वसीयत के कानूनी शुल्क पर भी टैक्स का बोझ कायम रहता है। चड्ढा ने तंज कसते हुए कहा, “सरकार हर कदम पर टैक्स वसूलती है, लेकिन सवाल यह है कि हम क्या हासिल करते हैं इसके बदले?”
सांसद ने सरकार से पूछा अहम सवाल
चड्ढा ने यह सवाल उठाया कि इतने भारी टैक्स के बावजूद नागरिकों को बुनियादी अधिकारों और सुविधाओं की प्राप्ति क्यों नहीं हो रही है, और सरकार के इस कर वसूलने के सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़े किए।