Tejadashmi 2025 : आज मनाई जा रही तेजादशमी, जानें पूजा की विधि, महत्व और पौराणिक कथा

भारत की पहचान उसकी गहरी सांस्कृतिक परंपराओं और लोक मान्यताओं से होती है। यहां अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न लोक पर्व और रीति-रिवाज प्रचलित हैं, जो मिलकर इस देश को परंपराओं की समृद्ध भूमि बनाते हैं। इन्हीं लोक पर्वों में से एक है तेजादशमी, जिसे विशेष रूप से ग्रामीण अंचलों में अत्यधिक श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व नागों के देवता और वचन के पालन के प्रतीक वीर तेजाजी महाराज की स्मृति और श्रद्धा से जुड़ा है।

तेजादशमी का महत्व और क्षेत्रीय परंपरा

तेजादशमी मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के ग्रामीण इलाकों में मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु वीर तेजाजी महाराज की पूजा करते हैं और नागों को देवता मानकर उनकी आराधना करते हैं। लोक विश्वास है कि इस पर्व पर तेजाजी महाराज की कृपा से विषैले जीव-जंतुओं, खासकर सांप-बिच्छू से सुरक्षा मिलती है। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अपने खेतों और खलिहानों के पास तेजाजी महाराज की मूर्तियां स्थापित करते हैं ताकि काम करते समय किसी तरह का सर्पदंश का खतरा न रहे।

कौन थे वीर तेजाजी महाराज?

लोककथाओं और ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार वीर तेजाजी महाराज का जन्म राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम ताहड़जी और माता का नाम राजकुंवर बताया जाता है। भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन जन्मे तेजाजी बचपन से ही अपनी वीरता और असाधारण शक्तियों के लिए चर्चित हो गए थे। समाज में उन्हें लोकनायक के रूप में सम्मानित किया गया, क्योंकि उन्होंने हमेशा सत्य, वचन और धर्म की रक्षा की।

सर्पदंश से जुड़ी कथा और उनका लोकदेवता बनना

तेजाजी महाराज के जीवन से जुड़ी सबसे लोकप्रिय कथा सर्पदंश की है। कहा जाता है कि अपनी बहन की रक्षा के लिए जाते समय तेजाजी को रास्ते में एक सांप ने काट लिया। उन्होंने सर्प से विनती की कि पहले वे अपने वचन को निभाकर बहन की रक्षा करेंगे और उसके बाद स्वयं लौटकर उसके सामने उपस्थित होंगे। सांप ने उनकी सच्चाई पर विश्वास करते हुए उन्हें जाने दिया।

युद्ध के बाद जब वे वापस लौटे, तो अपना वचन निभाते हुए उन्होंने सांप के सामने अपना पूरा शरीर दंश के लिए प्रस्तुत कर दिया। उस समय वे युद्ध में बुरी तरह घायल थे और केवल उनकी जीभ ही सुरक्षित थी। तब उन्होंने सांप से कहा कि यदि दंश करना है तो उनकी जीभ पर करें। तेजाजी महाराज की सत्यनिष्ठा और वचनबद्धता से प्रभावित होकर सर्प ने उन्हें दंश नहीं किया, बल्कि आशीर्वाद दिया। तभी से उन्हें नागों के देवता और वचन के पक्के लोकदेवता के रूप में पूजा जाने लगा।

तेजादशमी पर पूजा और अनुष्ठान

तेजादशमी के दिन गांव-गांव में तेजाजी महाराज के मंदिरों और स्थानकों पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त हल्दी, चावल, नारियल और दूध अर्पित करते हैं। इस अवसर पर विशेष रूप से सांपों की पूजा की जाती है। उन्हें दूध चढ़ाया जाता है और उनसे रक्षा की प्रार्थना की जाती है।

ग्रामीण अंचलों में इस दिन बड़े मेलों का आयोजन होता है। महिलाएं और पुरुष लोकगीत गाते हैं, भजन-कीर्तन होते हैं और कई स्थानों पर तेजाजी महाराज की शोभायात्रा भी निकाली जाती है। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का ही नहीं, बल्कि लोक उत्सव का भी रूप ले लेता है।

लोककथाओं में तेजादशमी की कथा

लोक मान्यता के अनुसार तेजाजी महाराज ने अपनी बहन को सुरक्षा का वचन दिया था। इसी दौरान उन्हें एक सांप ने काट लिया। तेजाजी ने कहा कि पहले वे अपना वचन निभाकर लौटेंगे, फिर वे स्वयं को सांप के समर्पित कर देंगे। सांप ने उनके वचनों पर विश्वास किया। बहन की रक्षा और युद्ध के बाद वे पुनः लौटे और वचन निभाने के लिए सांप को दंश करने दिया। जब उनका शरीर युद्ध के कारण घायल था और केवल जीभ शेष रह गई थी, तब उन्होंने अपनी जीभ भी दंश के लिए प्रस्तुत की।

उनकी सत्यनिष्ठा देखकर सर्प ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि भविष्य में लोग उन्हें नागों के देवता के रूप में पूजेंगे। यही कारण है कि आज भी ग्रामीण अंचलों में तेजाजी महाराज को विशेष श्रद्धा से पूजा जाता है और तेजादशमी का पर्व वचन, सत्य और धर्म पालन का प्रतीक माना जाता है।