दिनोंदिन भयावह होता जा रहा Drinking water संकट


लेखक
ज्ञानेंद्र रावत

जल संकट ( Drinking water ) हमारे देश की ही नहीं, समूची दुनिया की समस्या है। सुरक्षित पानी के मामले में संकट की भयावहता का आलम यह है कि आधी दुनिया साफ और सुरक्षित पानी के संकट से जूझ रही है। यही नहीं पूरी दुनिया में पानी के लिए लोग एक-दूसरे का खून बहा रहे हैं। बीते बरस इसके जीते-जागते सबूत हैं। हमारा देश भी इस मामले में पीछे नहीं है। इन मामलों में साल-दर-साल हो रही बढ़ोतरी चिंता का विषय है। आंकड़े प्रमाण हैं कि पानी के मामले में हुयी हिंसा में बीते बरसों में 50 फीसदी से भी ज्यादा बढ़ोतरी हुयी है। इन मामलों में कई लोग मारे भी गये हैं। दरअसल पानी से सम्बन्धित हिंसा के मामलों में बांधों, पाइप लाइनों, कुओं, उपचार संयंत्रों और संयंत्रों पर कार्यरत कामगारों पर हमले प्रमुख हैं।

दुनियाभर में Drinking water की समस्या बढ़ी है

हकीकत यह है कि हिंसा के इन मामलों में सिंचाई के पानी ( Drinking water ) के संघर्ष ज्यादा चर्चा में रहे हैं। इनके अलावा सूखे और आपसी विवादों ने इन संघर्षों को बढ़ाने में अहम भूमिका निबाही है। वैश्विक स्तर पर दुनियाभर में मध्य पूर्व में इनमें अभूतपूर्व बढ़ोतरी दर्ज हुयी है। इनमें खासतौर पर लैटिन अमेरिका, मध्य पूर्व, सब सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशियाई देश शीर्ष पर हैं। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के हालिया अध्ययन की मानें जिसका निष्कर्ष साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, के अनुसार आज दुनिया में 4.4 अरब लोगों के पास सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है। यह आंकड़ा पहले से जारी संख्या से दोगुने से भी ज्यादा है, जो भयावह खतरे का संकेत है। जबकि अभी तक संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया की तकरीबन 26 फीसदी आबादी स्वच्छ पेयजल संकट का सामना कर रही थी। उसके अनुसार 2050 तक दुनिया की 1.7 से 2.4 अरब शहरी आबादी को पेय जल संकट का सामना करना पड़ेगा। इससे सबसे ज्यादा भारत के प्रभावित होने की आशंका व्यक्त की गयी है। यूनेस्को की मानें तो हालात इतने गंभीर हैं कि इस वैश्विक संकट के नियंत्रण से बाहर जाने से पहले मजबूत अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था तत्काल स्थापित करने की जरूरत है। विश्व जल विकास रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक दुनिया के सभी लोगों को स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता की उपलब्धता का लक्ष्य काफी दूर है। असलियत यह है कि बीते 40 वर्षों में दुनिया में जल के उपयोग की दर प्रति वर्ष एक फीसदी बढ़ी है। दुनिया की आबादी बढऩे और सामाजिक -आर्थिक बदलावों को देखते हुए इसके वर्ष 2050 तक इसी तरह बढऩे के आसार हैं। यह एक गंभीर चुनौती है। सच्चाई यह भी है कि पानी में दूषित पदार्थों की मौजूदगी और बुनियादी ढांचे में कमी के चलते दक्षिण एशिया, उप सहारा अफ्रीका पूर्वी एशिया और कई अफ्रीकी देशों के लगभग 690 मिलियन से अधिक लोग ऐसी जगहों पर रहने को विवश हैं जहां पानी पहुंचाने की व्यवस्था ही नहीं है। यूनिसेफ़ की रिपोर्ट के अनुसार भारत के 1.96 करोड़ आवासों में रहने वाले लोगों की फ्लोराइड, नाइट्रेट और आर्सेनिक युक्त पानी पीना नियति बन गया है। हालात इतने खराब हैं कि पानी से होने वाली बीमारियों पर हर साल करीब 42 अरब रुपये का आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। जहां तक एशिया का सवाल है, एशिया की तकरीबन 80 फीसदी खासकर पूर्वोत्तर चीन, भारत और पाकिस्तान की आबादी भीषण पेयजल संकट से जूझ रही है। इस संकट से जूझने वाली वैश्विक शहरी आबादी वर्ष 2016 के 93.3 करोड़ से बढक़र 2050 में 1.7 से 2.4 अरब होने की आशंका है जिसकी सबसे ज्यादा मार भारत पर पड़ेगी। यदि इस वैश्विक अनिश्चितता को खत्म नहीं किया गया और इसका शीघ्र समाधान नहीं निकाला गया तो निश्चित ही इस संकट का सामना करना बेहद मुश्किल होगा। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस भी कहते हैं कि पेयजल मानवता के लिए रक्त की तरह है। इसलिए जल की बर्बादी रोकना और संचय बेहद जरूरी है। इसमें दो राय नहीं कि जलवायु परिवर्तन और मौसम के बदलाव के चलते दुनिया में जल सुरक्षा के खतरे दैनंदिन तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। इससे दुनिया के पांच अरब लोगों पर यह संकट भयावह रूप अख्तियार करता जा रहा है। कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रकोप के कारण पानी की यह विकट स्थिति होती जा रही है। कारण लोगों को अभी भी मौसम से जुड़े पर्यावरणीय खतरों की कोई जानकारी नहीं है।
यही नहीं वे जलवायु परिवर्तन और जल सुरक्षा के बीच के सम्बन्ध को जानते तक नहीं हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार अगले 20 वर्ष में यह संकट भयावह रूप अख्तियार कर लेगा और लोगों के लिए पानी गंभीर खतरा बन जायेगा। दरअसल सबसे बड़ी जरूरत पर्यावरणीय मुद्दों को ठोस और प्रासंगिक बनाने की है तभी कुछ बदलाव की उम्मीद की जा सकती है। साथ ही यह भी गौर करने वाली बात है कि दुनिया में बहुतेरे ऐसे देश हैं जहां के लोगों को साफ पानी के लिए लम्बी दूरी तय करनी पड़ती है। आज भी हमारे यहां भी कुछ राज्य इस स्थिति का सामना करने को विवश हैं। और क्या सबसे ज़्यादा साफ पानी दक्षिणी यूरोप के लोगों को उपलब्ध है? क्या भारत इस दिशा में ईमानदारी से सुधार कर पायेगा और उस स्तर तक पहुंचने में कामयाब हो पायेगा? यदि ऐसा हो सका तो यह दुनिया का आठवां आश्चर्य और एक महान उपलब्धि होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।)