ठाकुर बांकेबिहारी रहे बालभोग से वंचित, पाँच सदियों में पहली बार बाधित हुई सुबह की परंपरा

सोमवार का दिन वृंदावन में श्रद्धा और भक्ति से भरा होता है, लेकिन इस बार ठाकुर श्रीबांकेबिहारी के दर्शन कुछ अलग ही भाव छोड़ गए। भक्तों ने जब ठाकुर जी के श्रीमुख के दर्शन किए, तो रोज़ की तरह बाल-लीला की चंचल मुस्कान दिखाई नहीं दी। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो यशोदा मैया का लाला मौन होकर कोई वेदना व्यक्त कर रहा हो। उनके मुखमंडल की शांति में एक खालीपन था, जो सीधे भक्तों के हृदय तक उतर गया। कई भक्तों को यह अनुभूति हुई कि ठाकुर जी मानो संकेत दे रहे हों कि आज उनके सुबह के कलेऊ की सुध किसी ने नहीं ली।

बाल स्वरूप में विराजमान ठाकुर बांकेबिहारी के लिए सुबह का कलेऊ केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि वात्सल्य भाव का प्रतीक माना जाता है। जब यह बालभोग समय पर अर्पित नहीं हुआ, तो भक्तों की आंखों में चिंता और मन में पीड़ा साफ दिखाई देने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे स्वयं ठाकुर जी बिना शब्दों के यह कह रहे हों कि जिन पर मेरी सेवा की जिम्मेदारी थी, वे आज मुझे भूल गए। यह दृश्य भक्तों के लिए अत्यंत भावुक करने वाला था, क्योंकि बाल स्वरूप में भूखे लाला की कल्पना ही हृदय को व्यथित कर देती है।

इस घटना को लेकर सबसे बड़ा आश्चर्य यह रहा कि बीते लगभग पांच सौ वर्षों के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ। ब्रज के दुलारे ठाकुर श्रीबांकेबिहारी को प्रतिदिन प्रातः दर्शन से पहले कलेऊ अर्पित करने की परंपरा अटूट रही है। सोमवार की सुबह पौने नौ बजे तक भी जब बालभोग नहीं लगाया गया, तो यह खबर धीरे-धीरे मंदिर परिसर में फैल गई। जैसे ही भक्तों को इस बात का पता चला, वातावरण में शोक और संवेदनशीलता घुल गई। लोग एक-दूसरे से यही पूछते रहे कि आखिर ऐसी चूक कैसे हो गई।

दर्शन के लिए दूर-दूर से आए श्रद्धालु इस स्थिति से बेहद व्यथित नजर आए। कानपुर के किदवई नगर से आए रजनीश ने भावुक स्वर में कहा कि जब ठाकुर जी ही पीड़ा में हैं, तो हम दर्शन कर कैसे प्रसन्न मन से लौट सकते हैं। वहीं भरतपुर से आए शैलेंद्र सिंह ने इसे व्यवस्था की गंभीर कमी बताते हुए कहा कि ठाकुर जी को समय पर भोग न मिलना पूरी तरह अनुचित है। भक्तों के मन में यह सवाल बार-बार उठता रहा कि क्या यह सब प्रबंधन और सेवायतों के बीच किसी आपसी टकराव का परिणाम है, लेकिन इस विषय पर जिम्मेदार लोगों की ओर से कोई स्पष्ट जवाब सामने नहीं आया।

गौरतलब है कि ठाकुर श्रीबांकेबिहारी को प्रतिदिन चार पहर भोग अर्पित करने की प्राचीन परंपरा है। सुबह दर्शन से पहले बालभोग, दोपहर में मंदिर बंद होने से पूर्व राजभोग, शाम को पट खुलने पर उत्थापन भोग और रात्रि में शयनभोग लगाया जाता है। भोग निर्माण की जिम्मेदारी हलवाई की होती है, जो उसे तैयार कर सेवायतों को सौंपता है और सेवायत विधि-विधान से ठाकुर जी को अर्पित करते हैं। सोमवार की यह घटना केवल एक परंपरा के टूटने तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने भक्तों के विश्वास और भावनाओं को भी गहराई से झकझोर दिया। वृंदावन की गलियों में उस दिन भक्ति के साथ-साथ एक अनकही पीड़ा भी महसूस की गई।