स्वतंत्र समय, नई दिल्ली
महीने भर बाद होने जा रहे लोकसभा चुनाव में एक प्रत्याशी ऐसा भी होगा जो चार दशक से चुनाव लड़ रहा है। पार्षद से लेकर राष्ट्रपति तक का चुनाव लड़ा है। एक बार भी जीत नहीं मिली लेकिन, हिम्मत नहीं हारी है। 238 चुनाव हारने के बाद एक बार फिर से लोकसभा चुनाव लडऩे जा रहे हैं… तमिलनाडु के पद्मराजन (Padmarajan) !
लंबी और घनी मूंछों के कारण इन्हें मुच्छड़ पद्मराजन भी कहा जाता है। पद्मराजन सलेम में टायर का बिजनेस करते हैं। कभी पंचर बनाया करते थे, अब बड़ा कारोबार शुरू कर दिया है। 65 वर्षीय पद्मराजन ने पहली बार 1986 में अपने गृह नगर मेट्रो से चुनाव लड़ा था। नगर निगम के चुनाव में उन्हें हार मिली थी। इसके बाद साल दर साल पार्षद, महापौर, विधायक, सांसद, राष्ट्रपति सहित कई चुनाव लड़ चुके हैं। एक बार फिर तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले से पर्चा भरा है तो लोग मजाक उड़ा रहे हैं, लेकिन पद्मराजन को इसकी फिक्र नहीं है। वह हर बार की तरह जोश के साथ भिड़ गए हैं।
Padmarajan लिम्का बुक में ‘सबसे असफल’ के रूप में दर्ज
पद्मराजन ( Padmarajan ) को लोग चुनाव राजा के नाम से जानते हैं। पद्मराजन ने राष्ट्रपति से लेकर स्थानीय चुनावों तक देश भर में चुनाव लड़ा है। इन वर्षों में, वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह और कांग्रेस के राहुल गांधी से हार चुके हैं। सबसे पहले निर्दलीय के तौर पर 1986 में मेट्टूर से चुनाव लड़ा और उसके बाद से उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी (लखनऊ), मनमोहन सिंह, पीवी नरसिम्हा राव (नंदयाल), प्रणब मुखर्जी, प्रतिभा पाटिल, के आर नारायणन और ए पी जे अब्दुल कलाम के खिलाफ चुनाव लड़ा। पद्मराजन की इस हार ने उन्हें एक जीत दिलाई है, वह है रेकॉर्ड बनाने की। वह लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भारत के सबसे असफल उम्मीदवार के रूप में स्थान अर्जित कर चुके हैं। पद्मराज को अपनी यह हार बहुत मंहगी पड़ी है। उन्होंने तीन दशकों से अब तक नामांकन फीस में लाखों रुपये खर्च किए हैं। इस बार उन्होंने एक बार फिर 25,000 रुपये की सिक्यॉरिटी मनी जमा की है, जो तब तक वापस नहीं की जाएगी जब तक कि वह 16फीसद से अधिक वोट नहीं जीत पाते।