मामला मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति का….

वीणा का प्रकाशन 80 लाख से ज्यादा के घाटे में!!
हजारों किताबों की अकाउंट में कीमत शून्य !!
इतने बडे भवन में सिर्फ चार हजार का फर्नीचर!!!

महात्मा गांधी की प्रेरणा से स्थापन हुई एकसौ पंद्रह साल पुरानी नामचीन सक्रिय संस्था

“मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति जहां महात्मा गांधी ने सबसे पहले हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने का सार्वजनिक रूप से आव्हान किया था l उसी प्रतिष्ठित संस्था के कामकाज में लंबे अर्से से हिसाब में बडा गड़बड़झाला हो रहा है l इस संस्था पर मध्य प्रदेश सोसायटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम और उसके तहत पंजीकृत नियमावली ( बायोलॉज ) के प्रावधान प्रभावशील है l जिनका संस्था के जिम्मेदार बेखौफ़ उल्लंघन किये जा रहे है l गंभीरतम अनियमितताऐं हुई है l और आज भी सिलसिला जारी है l

यहां पर साहित्यिक गतिविधियां निरंतर जारी है l लेकिन शहर के ज्यादातर साहित्यकारों और साहित्य अनुरागियों को समिति के ” अंदर की बात ” मालूम ही नही है l और दिलचस्पी भी नही है l स्वागत+ सम्मान+ पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम+ व्याख्यान आदि होते रहते है l जिनकों गड़बड़ियों की अच्छी खासी जानकारी है l वे दिग्गज- वरिष्ठ कलमकार समिति की प्रतिष्ठा के मद्देनजर चुप्पी साधे हुए है l एक-दूसरे को फूलमाला पहनाकर- गुणगान करके निकल जाते है l जबकि इन्हीं लोगों को खुलकर सामने आना- विरोध करना जरूरी है l समय का तकाजा है l

कुछ ही दिन पहले अप्रेल माह में प्रबंध कार्यकारिणी और नौ सदस्यीय मंत्री मंडल की बैठक और समिति के सदस्यों की आम सभा आयोजित हुई थी l बायोलॉज के प्रावधान नुसार प्रबंध कार्यकारिणी की साल में सिर्फ दो बैठक होती है और मार्च में साधारण सभा होती है l दोनों सभाओं की जानकारी मिलते ही वहां मौजूद कुछ सक्रिय साहित्यकारों से संपर्क साधा l उन्होंने दबी जुबान और नाम उजागर नही करने के मेरे आश्वासन पर गहरी जानकारी दी l अपना दर्द बयां किया l बायोलॉज नुसार साधारण सभा मार्च में होनी थी, जो अप्रेल में हुई /
प्रबंध कार्यकारिणी की बैठक में कुल 35 मेंबर्स में से कोई 20 – 22 सदस्य मौजूद थे l और साधारण सभा में कोई 400- 450 में सदस्यों में से सिर्फ 55-60 उपस्थित थे l

आम सभा की अध्यक्षता समिति के सभापति ख्यात कवि सत्यनारायण सत्तन ने की थी l समिति के तीन ट्रस्टीयों में से अरविंद जवळेकर प्रधान मंत्री बनने के बाद यह स्थान रिक्त है l बाकी दो में से वि. डी. ज्ञानी अनुपस्थित थे l तिसरे ट्रस्टी गोपालदास अवश्य थे l सभा में समिति के सभी सदस्यों को बायोलॉज के प्रावधाननुसार रजिस्टर्ड अथवा अंडर पोस्टल सर्टिफिकेट डाक से 15 दिन पुर्व सुचना भेजी गयी संबंधी कोई रिकॉर्ड नही रखा गया था l जो रखना जरूरी था l प्रबंध कार्यकारिणी का सालभर का हिसाब प्रस्तुत किया गया l लेकिन ट्रस्ट बोर्ड का सालभर का
अकाउंट /आय व्यय पत्रक प्रस्तुत नही किया गया l जो प्रस्तुत करना अनिवार्य था l जो की पुर्व उपसभापति भरत छापरवाल के कार्यकाल में रखा जाता था l

पता यह भी चला है कि समिति की चल-अचल संपत्ति पर प्रबंध कार्यकारिणी का मालिकाना हक है और प्रबंध कार्यकारिणी ने आज तक ट्रस्ट बोर्ड को कानूनी रूप से समिति की संपत्ति ट्रांन्सफर नही की है l फिर भी ट्रस्ट बोर्ड हिसाब छिपाये बैठा है l इसके बारे में कोई भी बोलता नही है l ट्रस्ट के अकाउंट में समिति की पत्रिका “वीणा” का प्रकाशन 18 लाख रूपये के घाटे बताया जा रहा है l जबकि ट्रस्ट के अकाउंट में तीन साल पहले 68 लाख रूपये का घाटा अंकित था l इसी तरह हजारों किताबों पर खर्च शून्य और फर्नीचर पर व्यय मात्र चार हजार रूपये बताये जा रहे है l आखिर यह एडजस्टमेन्ट क्यों किया जा रहा है ?भारी गोलमाल है!!

इस बार एक बात अच्छी हुई है कि सभापति सत्यनारायण सत्तन ने स्पष्ट आदेश दिया है कि आगे से ट्रस्ट के अकाउंट की जानकारी सभी सदस्यों को दी जावेगी l समिति के बायोलॉज में यह भी प्रावधान है कि आमसभा में किसी मुद्दे पर भ्रम की स्थिति निर्माण होने पर सभापति का निर्णय अंतिम होगा l खबर है कि अब कुछ कलमकारों ने संयुक्त रूप से शासन को मय पुख्ता सबूत शिकायत करने की हिम्मत जुटाई है l