महाकाल की नगरी उज्जैन आज भले ही एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल और धार्मिक नगरी के रूप में पहचानी जाती हो, लेकिन इसका नाम, इतिहास और संस्कृति उतनी ही गहरी और रहस्यमयी है जितनी इसकी प्राचीनता. बहुत कम लोग जानते हैं कि उज्जैन का मूल नाम “उज्जयिनी” था. संस्कृत में उज्जयिनी का मतलब होता है “विजेता” या “जयनगरी”। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने त्रिपुर नामक अत्याचारी राक्षस का वध इसी स्थान पर किया था, और तभी इस स्थान को उज्जयिनी कहा गया. वह जगह जहां जीत हासिल हुई.
इतिहास की परतों में उज्जैन
उज्जैन का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है. खुदाई में मिले प्रमाणों के अनुसार, यह शहर लौह युग से अस्तित्व में है. महाभारत में भी इसका जिक्र है, जहां भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने गुरु सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा ली थी. उज्जैन को भगवान कृष्ण की ससुराल भी माना जाता है, जहां उनकी शादी राजकुमारी मित्रवृंदा से हुई थी. उज्जैन प्रद्योत वंश से लेकर मगध, मौर्य, गुप्त, परमार, मुगल और सिंधिया वंश तक की सत्ता का केंद्र रहा है.
जैन धर्म में भी उज्जैन का विशेष महत्व है. 386 ईसा पूर्व राजा खादिरसार ने इसे मगध की राजधानी बनाया और चेलमा रानी से प्रेरित होकर जैन धर्म को अपनाया. बाद में राजा गंधर्वसेन और फिर सम्राट विक्रमादित्य उज्जैन के सिंहासन पर बैठे. कालिदास, जो विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे, उन्होंने अपनी रचनाओं में उज्जयिनी की सुंदरता का अत्यंत भावपूर्ण वर्णन किया.
सांस्कृतिक राजधानी से आधुनिक शहर तक
प्राचीनकाल में उज्जैन अवंति जनपद की उत्तरी राजधानी थी. बाद में मौर्य साम्राज्य के उदय के साथ चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार और सम्राट अशोक जैसे महान शासकों ने यहां शासन किया और उज्जैन के विकास में योगदान दिया. मध्यकाल में परमार राजाओं ने इसे साहित्य और कला की राजधानी बनाया, लेकिन फिर खिलजी और मुगलों के हमलों में शहर को भारी नुकसान हुआ.
1737 में राणोजी सिंधिया ने उज्जैन को फिर से बसाया और महाकाल मंदिर का भव्य जीर्णोद्धार कराया. 1880 तक सिंधिया शासकों ने उज्जैन पर शासन किया और इसे एक बार फिर धार्मिक और सांस्कृतिक वैभव से भर दिया. आज भी महाकाल मंदिर, विक्रम कीर्ति मंदिर, काल भैरव और सांदीपनि आश्रम इस शहर की गौरवगाथा के साक्षी हैं.