भारतीय सेना की मारक क्षमता को और घातक बनाने में मध्यप्रदेश की भूमिका भी बढ़ने वाली है। इसी के चलते जबलपुर स्थित ऐतिहासिक गन कैरिज फैक्ट्री (GCF) इन दिनों पूरे जोश के साथ सारंग और धनुष तोपों के निर्माण में तेजी ला रही है। करीब आठ वर्षों के लंबे अंतराल के बाद अब फैक्ट्री ने हल्की फील्ड गन (LFG) का उत्पादन भी दोबारा शुरू कर दिया है, जिससे सैन्य तैयारियों को नया बल मिल रहा है।
2300 करोड़ के बनेगे शस्त्र
इस साल GCF का लक्ष्य है 2300 करोड़ रुपये के आयुध का निर्माण जिसमें टैंक, तोप और अनेक प्रकार के सैन्य कलपुर्जे शामिल हैं। फैक्ट्री में टैंक टी-70 और टी-92 के साथ-साथ अन्य रक्षा उपकरणों का भी निर्माण किया जा रहा है। खास बात यह है कि फैक्ट्री अपने हथियारों की डिलीवरी तय समय से पहले करने पर जोर दे रही है, ताकि सेना की जरूरतें तुरंत पूरी की जा सकें।
सशस्त्र सेनाओं की रीढ़ बन रही GCF
1904 में अंग्रेजों द्वारा स्थापित इस फैक्ट्री ने अब भारतीय सेना की ताकत को आत्मनिर्भरता की ओर मोड़ दिया है। सारंग और धनुष जैसी आधुनिक तोपों से लैस यह निर्माणी लगातार सेना के लिए अत्याधुनिक हथियार तैयार कर रही है। सारंग की मारक क्षमता जहां पहले 28 किमी थी, अब उसे बढ़ाकर 32 किमी तक कर दिया गया है। वहीं, धनुष तोप 40 से 42 किमी तक सटीक निशाना साधने में सक्षम है — जो इसे पहाड़ी इलाकों और फ्रंटलाइन पर बेहद उपयोगी बनाती है।
धनुष और सारंग: आत्मनिर्भर भारत के शस्त्र
धनुष तोप असल में बोफोर्स का उन्नत और भारतीयीकृत संस्करण है, जिसे GCF ने पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से विकसित किया है। दूसरी ओर, हल्की होने के कारण LFG को युद्धभूमि में तेजी से तैनात किया जा सकता है। यही इसे रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम बनाता है। GCF न केवल हथियार बना रही है, बल्कि सेना के लिए जरूरी हर कलपुर्जे की आपूर्ति भी कर रही है। यह निर्माणी आज ‘मेक इन इंडिया’ के विजन को मजबूती देने वाली एक अहम कड़ी बन चुकी है।