संवेदनशील केस में लापरवाही पर सख्त हुई अदालत, डॉक्टर को लगाई फटकार

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक बेहद संवेदनशील मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए 22 वर्षीय मानसिक और शारीरिक रूप से अक्षम रेप पीड़िता को गर्भपात की अनुमति दी है। सिंगल बेंच जस्टिस विशाल मिश्रा ने यह आदेश सुनाते हुए साफ कहा कि ऐसे मामलों में महिला की निजता और सहमति सर्वोपरि है। अदालत ने साथ ही राज्य सरकार को बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी भी सौंपी है, यदि गर्भस्थ शिशु जीवित जन्म लेता है।

डॉक्टर के रवैए पर कोर्ट ने जताई कड़ी नाराजगी

सुनवाई के दौरान अदालत ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज, इंदौर की डॉक्टर पूजा गांधी के गैर-जिम्मेदाराना रवैए पर सख्त नाराजगी जताई। 7 नवंबर की सुनवाई में कोर्ट ने पाया था कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में पीड़िता या उसके माता-पिता की सहमति का उल्लेख नहीं है। सरकारी अधिवक्ता ने जानकारी दी कि डॉ. गांधी ने बिना कोर्ट आदेश के दस्तावेज देने से इनकार कर दिया था। इतना ही नहीं, उन्होंने अदालत द्वारा भेजे गए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग लिंक से जुड़ने से भी मना कर दिया था।

जस्टिस विशाल मिश्रा की फटकार: “तो फिर मोबाइल जब्त करा दीजिए”

10 नवंबर को हुई सुनवाई में डॉ. पूजा गांधी और कॉलेज के डीन डॉ. अरविंद घनघोरिया को कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होना पड़ा। इस दौरान जब डॉ. गांधी ने तकनीकी समस्या का हवाला देकर सफाई दी, तो जस्टिस मिश्रा ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा—
“तो फिर अपना मोबाइल जब्त करा दीजिए, हम फोरेंसिक जांच करवा लेते हैं।”

उन्होंने कहा कि यह मामला अत्यंत संवेदनशील है और इसमें ऐसी लापरवाही किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कॉलेज प्रशासन को चेताया कि ऐसे अधिकारी अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल हैं और इनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।

गर्भपात के लिए दिए विशेष निर्देश

अदालत ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि पीड़िता लगभग 28 से 30 सप्ताह की गर्भवती है और मानसिक रूप से विकलांग है। उसके माता-पिता ने भी लिखित रूप से बताया कि वे बच्चे के पालन-पोषण में सक्षम नहीं हैं। इस पर जस्टिस मिश्रा ने आदेश दिया कि —

  • गर्भपात खंडवा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में कराया जाए।
  • पूरी प्रक्रिया के दौरान सभी सुरक्षा और चिकित्सकीय सावधानियां बरती जाएं।
  • यदि शिशु जीवित जन्म लेता है, तो उसकी देखभाल की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी।
  • डीएनए जांच के लिए भ्रूण का नमूना सुरक्षित रखा जाए, ताकि आगे चलकर यह आपराधिक साक्ष्य के रूप में उपयोग हो सके।

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा – “महिला की सहमति सर्वोपरि”

जस्टिस मिश्रा ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि गर्भपात का निर्णय महिला की निजता, गरिमा और शारीरिक स्वायत्तता से जुड़ा हुआ अधिकार है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस मामले में चूंकि पीड़िता मानसिक रूप से असमर्थ है, इसलिए उसके माता-पिता की सहमति को वैधानिक माना जाएगा।

हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल न्यायिक दृष्टि से अहम है, बल्कि यह प्रशासन और चिकित्सा संस्थानों के लिए भी चेतावनी है कि संवेदनशील मामलों में देरी या असंवेदनशीलता अस्वीकार्य है। जस्टिस मिश्रा की सख्त टिप्पणी ने यह स्पष्ट कर दिया कि अदालत ऐसे मामलों में जिम्मेदारी से बचने वाले अधिकारियों को बख्शने के मूड में नहीं है।