छत्तीसगढ़ के कोरबा का घना जंगल अब सिर्फ दुर्लभ वन्यजीवों का ठिकाना नहीं, बल्कि भारत के सबसे जहरीले सांपों में गिने जाने वाले किंग कोबरा के विस्तार का भी नया केंद्र बन गया हैं। 2016 में पहली बार कुदमुरा वन क्षेत्र में दिखा यह रहस्यमयी सांप, अब पसरखेत, बालको, लेमरू और सरगुजा की सीमाओं तक विस्तार कर चुका है।
नोवा नेचर सोसायटी कर रही जांच
नोवा नेचर सोसायटी के अध्यक्ष एम. सूरज और उनकी टीम बीते पांच वर्षों से इस सांप पर लगातार शोध कर रही है। उनका कहना है कि कोरबा के जंगलों में बहती दर्जनों छोटी नालियां और दलदली ज़मीनें किंग कोबरा के लिए आदर्श आवास बनाती हैं। यही वजह है कि यह इलाका उसका पसंदीदा गढ़ बनता जा रहा है।
नागों का नया साम्राज्य – कोरबा
कोरबा अब केवल बिजली और खनिजों का हब नहीं रहा, बल्कि अब इसे “दूसरा नागलोक” कहा जाने लगा है – जशपुर के बाद छत्तीसगढ़ का ऐसा इलाका जहां सांपों की विविध प्रजातियां पाई जाती हैं। ग्रामीणों में यह सांप “पहरचित्ती” के नाम से जाना जाता है।
क्यों खास है किंग कोबरा?
दुनिया के सबसे विषैले सांपों में शामिल, यह सरीसृप केवल दूसरे सांपों को खाता है। यह घोंसला बनाने वाला दुनिया का एकमात्र सांप है, जो जनवरी से अप्रैल के बीच अंडे देता है। उड़न गिलहरी से लेकर पैंगोलिन तक – जैव विविधता की धरोहर बन गया है।
कोरबा के जंगलों में केवल किंग कोबरा ही नहीं, बल्कि उड़न गिलहरी, कबरबिज्जू, उद्बिलाव, रंग-बिरंगी तितलियां और विलुप्त हो रहे पैंगोलिन जैसे दुर्लभ जीव भी पाए जाते हैं। इन सबकी मौजूदगी यह साबित करती है कि कोरबा का जंगल जैव विविधता का खजाना है जिसे संभालना जरूरी है।
डीएनए जांच के लिए अनुमति की प्रतीक्षा
नोवा नेचर सोसायटी ने शासन से किंग कोबरा की डीएनए जांच की अनुमति मांगी है ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह सांप भारत के पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले किंग कोबरा से कितना भिन्न है। वन विभाग भी इस दिशा में व्यापक शोध कर रहा है। छत्तीसगढ़ के जंगलों में धीरे-धीरे फैलते इस सांप के साम्राज्य को देखकर एक बात तो साफ है कि प्रकृति खुद बता रही है कि वह कहां सुरक्षित है और कहां नहीं।