मेडिकल एजुकेशन में नेशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) ने बीते दिनों कई निर्णय लिए हैं। इन निर्णयों का असर मप्र के छात्रो के भविष्य में नजर आएगा। मेडिकल की पढ़ाई का सपना देख रहे लाखों छात्रों के लिए एक निराशाजनक खबर है। नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने शैक्षणिक सत्र 2025-26 के लिए एमबीबीएस और पीजी की सीटों में बढ़ोतरी पर रोक लगा दी है। सीबीआई जांच के बाद अभी किसी तरह का कोई फैसला न आने के बाद भी एनएमसी ने इसके तहत नए मेडिकल कॉलेजों को मान्यता देने, मौजूदा कॉलेजों की सीटें बढ़ाने और रिन्यूअल मंजूरी पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।
इस सीबीआई जांच के पहले जिन कॅालेजों को एनएमसी ने जांच के आधार पर ही नए सत्र की मान्यता दी उन्हें भी एक माह में ही मप्र के कई कॉलेजों की सीट तक जीरो ईयर कर दिया गया है। । सीबीआई जांच के बाद भी यदि एनएमसी मप्र के साथ देश के इन कॅालेजों की फिर से जांच कर मान्यता संबंधी अपने फैसले को यदि बदल सके तो इसे मप्र और देश के कई छात्रों को भविष्य खतरे में जाने से बच सकता है।
मप्र के मेडिकल कॅालेजों से 5200 एमबीबीएस सीटों में से मप्र में सीधे 300 सीट कम करने से 4900 सीटों पर ही पहले राउंड की काउंसलिंग में एडमिशन होगे। अब छात्र और परिजन भी एनएमसी से उम्मीद लगाकर बैठे है कि काउंसलिंग के समय कोई सही निर्णय आए कम हुई सीटो को वापस काउंसलिंग में जोड़ा जाए जिससे छात्रों को एडमिशन का मौका मिला सके।
जून में मिली मान्यता तो फिर जुलाई में क्यों कर दी जीरो सीट
मेडिकल कॅालेजों के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय और एनएमसीसी में सीबीआई जांच चल रही है और यदि इस तरह कॉलेजों में किसी भी तरह की कमी या नियमों की अनदेखी को आधार बनाकर सीटों को बिना सोचे समझे काउंसलिंग क ऐनवक्त पहले कम किया गया है। एनएमसी के जांच के बाद ही मप्र के मेडिकल कॅालेजों को नए सत्र के लिए मान्यता दी थी। इसके बाद सीबीआई जांच के बाद किसी तरह का कोई फैसला न आने के बाद कई कॅालेजों को एनएमसी ने जीरो ईयर कर दिया है।
इंडेक्स मेडिकल कॅालेज इंदौर को एनएमसी द्वारा 27 जून 2025 को वर्ष 2025-26 की 250 सीटों के लिए मान्यता दी गई थी। एनएमसी सीधे कॅालेजों की कुछ सीट कम करने के बजाए 17 जुलाई 2025 को सीधे 250 सीट कम कर दी। इसी के साथ एलएनसीटी सेवाकुंज की 50 सीट और कम होने से मप्र के मेडिकल कॅालेजों की सीधे 300 सीट कम हो गई है।
देश और मप्र में क्या मेडिकल सीटों की स्थिति
नीट यूजी 2025 पास करने वाले 12.36 लाख उम्मीदवार देश भर के सरकारी, प्राइवेट और अन्य मेडिकल कॉलेजों में 1,15,900 एमबीबीएस सीटों पर दाखिले के लिए रेस लगाएंगे.। एमबीबीएस कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए कुल मेडिकल सीटों की संख्या और योग्य उम्मीदवारों की संख्या के बीच तुलना करने पर पता चलता है कि 20 में से केवल एक को ही मेडिकल कोर्स में सीट मिलेगी।मध्य प्रदेश में भी प्रतिस्पर्धा का यही दौर देखने को मिल रहा है।
यह पहले जहां मेडिकल कॅालेजों में कुल 5200 सीट थी इसमें सरकारी – 2700 ,सोसायटी – 800,ट्रस्ट – 1700 है। इसमें इंडेक्स मेडिकल कॅालेज और एलएनसीटी सेवाकुंज हॅास्पिटल की 300 सीटों को कम कर मप्र में भी प्रतिस्पर्धा का दौर दिखाई दे रहा है।
कम सीटों के कारण परेशान छात्र और अभिभावक
एनएमसी ने कुछ माह पहले 780 मेडिकल कॉलेज बताए थे । कमीशन ने यह फैसला सीबीआई जांच के बाद यह निर्णय लिया है। इसके बाद .लेटेस्ट सीट मैट्रिक्स में 775 मेडिकल कॉलेज बताए गए हैं। इस साल नीट यूजी 12.36 लाख ने पास किया है जबकि देश में एमबीबीएस की करीब 1.18 लाख सीटें ही उपलब्ध हैं। नीट यूजी फर्स्ट राउंड काउंसलिंग 2025 के लिए जारी हुए सीट मैट्रिक्स में देखा जा सकता है कि बहुत से मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की जीरो सीटें बताई गई हैं।
एक्सपर्ट्स कहते है कि सीबीआई जांच चल रही है और यदि इस तरह कॉलेजों में किसी भी तरह की कमी या नियमों की अनदेखी को आधार बनाकर सीटों को बिना सोचे समझे काउंसलिंग क ऐनवक्त पहले कम किया जाएगा। 300 सीट मप्र में कम होने से साफतौर पर एक सीट के लिए प्रतिस्पर्धा का स्तर कई गुना बढ़ जाएगा। 1 सीट के लिए 20 से ज्यादा उम्मीदवारों की बीच प्रतिस्पर्धा होने से काफी छात्र एडमिशन से वंचित रह जाएंगे। मेडिकल एजुकेशन में यदि सीटों की यह गिरावट चलती गई तो हम मेडिकल क्षेत्र में लोगों के स्वास्थ्य को सुधारने वाले डॉक्टरों की संख्या को कैसा बढ़ा सकेंगे।
इतनी मेहनत के बाद भी नहीं मिलती एमबीबीएस सीट
यह आकंड़ें कह रहे हैं कि दिन-रात की कड़ी मेहनत, नींद की कुर्बानी और सफल होने के बावजूद भी छात्रों के लिए एमबीबीएस करने का रास्ता क्लियर नहीं होता। यह सिर्फ एक प्रतियोगी परीक्षा की बात नहीं, बल्कि उस जद्दोजहद की है, जो हर साल लाखों मेडिकल एस्पिरेंट्स को एक अनिश्चित भविष्य की ओर धकेल देती है। जहां आगे क्या होना है इसके बारे में, उन्हें बिल्कुल भी पता नहीं होता।एनएमसी की रोक का सीधा असर उन छात्रों पर पड़ेगा, जो नीट यूजी 2025 के माध्यम से एमबीबीएस या पीजी कोर्स में प्रवेश लेने की योजना बना रहे थे।
अब जब सीटों में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी, तो प्रतिस्पर्धा और भी कठिन हो जाएगी.विशेषज्ञों का मानना है कि पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के नाम पर एनएमसी का यह कदम जरूरी था, लेकिन इसकी कीमत छात्रों को चुकानी पड़ रही है। इस भारी अंतर के कारण कई भारतीय छात्र अपनी मेडिकल पढ़ाई के लिए विदेश के कॉलेजों का रुख कर रहे हैं। भारत में मेडिकल शिक्षा की मांग बहुत अधिक है, लेकिन सीटें सीमित होने की वजह से छात्र विकल्प तलाश रहे हैं।
ये डेटा सब कुछ करता है बयां
नीट यूजी काउंसलिंग के तहत 15 प्रतिशत ऑल इंडिया कोटा (एआईक्यू) में कुल 775 मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस कोर्स ऑफर कर रहे हैं। इन संस्थानों को प्रबंधन के प्रकार के अनुसार कैटेगराइज किया गया है। इस सूची में 400 से अधिक सरकारी कॉलेज शामिल हैं, जबकि 32 निजी कॉलेज, 13 सरकारी (सोसायटी) कॉलेज, 44 सोसायटी द्वारा संचालित कॉलेज और 250 से अधिक ट्रस्ट द्वारा संचालित कॉलेज एमबीबीएस पाठ्यक्रम की पेशकश करेंगे। इस कदम से सबसे ज्यादा असर नीट य़ूजी 2025 की तैयारी कर रहे छात्रों पर पड़ेगा, जो पहले से ही सीमित सीटों और बढ़ती कटऑफ से जूझ रहे हैं।
नीट यूजी 2025 में इस बार 22 लाख से ज्यादा छात्रों ने परीक्षा दी, जिनमें से करीब 12.36 लाख ने क्वालिफाई भी कर लिया, लेकिन मेडिकल सीटों की भारी कमी उनके सपनों की राह में दीवार बन गई है। ऐसे में या तो उन्हें विदेश में जाकर पढ़ने का विकल्प चुनना होगा या फिर वैकल्पिक चिकित्सा या संबद्ध स्वास्थ्य करियर विकल्प में से कोई एक चुनना होगा। भारत में उसकी आधा संख्या में भी एमबीबीएस की सीटें अवेलेबल नहीं है। ऐसे में क्या नीट पास करके भी योग्य छात्रों देश में एमबीबीएस की पढ़ाई नहीं कर पाएंगे?