1960 से अपने “आशीयाने की आस” लगा रहा परिवार, “नव भारत गृह निर्माण संस्था” ने 30 सालों बाद तक भी नहीं दिया प्लॉट

इंदौर शहर, तेजी से विकसित होता शहर चारों और विकास की बाढ़ आई हुई है। प्रदेश सरकार इंवेस्टर कंपनियों को यहां पर जमीन मुहैया करा रही है। जिसका नतीजा यह हो रहा है कि इंदौर शहर में तेजी से जमीनों के भाव आसमान छु गए है। लेकिन इस विकास और तेजी से बढ़ते शहर में जमीन को लेकर जो खेल चल रहे है उससे शायद ही कोई अछुता होंगा।

वर्षों पहले जिन्होने अपने बच्चों के लिए आशीयाने का सपना पुरा करने के लिए जो प्लॉट खरीदे उन्हें पाने के लिए आज वह दर-बदर भटक रहे है। यह वह लोग है जो रसुख नहीं रखते इज्जतदार परिवार के रुप में अपना जीवन यापन करते है। यह वही परिवार है जो शहर के गुंडों से ताल्लुक नहीं रखते,इनके पास कोई दादागिरी करने वाला नहीं होता है। जिसके चलते अब यह परिवार अपने जीवनभर की कमाई लूटा कर खरीदे गए अपने प्लॉट के लिए प्रशासन के दर पर भी चक्कर लगा-लगा कर थक गए है। लेकिन इनकी पुकार कोई नहीं सुनता तो अब एक बड़ा प्रश्न यह भी उठता है कि इन्हें न्याय मिलेगा..?

मंगल परिवार 30 वर्षो से लगा रहा आस
इंदौर में रहने वाले कृष्णदास मंगल परिवार ने सन 1960 में नव भारत गृह निर्माण सहकारी संस्था से 1500 स्क्वायर फीट जमीन अपना मकान बनाने के लिए खरीदी थी। जिसका नकद भुगतान उनके द्वारा नव भारत गृह निर्माण सहकारी संस्था को किया गया था। लेकिन संस्था ने उनसे रुपए लेने के बाद वापस आने को कहा और उसके बाद आज तक संस्था ने उन्हें उनका प्लॉट नहीं दिया।

किराए के मकान में रहने को है मजबुर
परिवार के कृष्णदास मंगल ने बताया कि  1996 में 1500 स्क्वायर फीट का एक प्लाट हमने क्रय किया था। हमें 30 वर्षो तक भटकने के बाद भी नव भारत गृह निर्माण सहकारी संस्था मर्यादित इंदौर के द्वारा आज तक हमें नहीं दिया गया। हम पिछले 30 वर्षो से आज तक किराये के घर में रहकर अपना आशियाना पाने हेतु भटक रहे है। इसको लेकर हमने कई आवेदन भी प्रशासन को दे दिए। लेकिन आज दिन तक हमें न्याय नहीं मिला।

ऐसे है नवभारत गृह निर्माण संस्था के कारनामें

नवभारत गृह निर्माण सहकारी संस्था में वैसे तो लगभग चार हजार सदस्य हैं, लेकिन इसमें से दो हजार फर्जी सदस्य बताए जा रहे हैं। वर्ष 2003-04 के बाद जब संस्था में भूमाफिया से जुड़े लोगों का प्रवेश हुआ तो इसमें सदस्यता से लेकर जमीन के काफी घपले हुए। भूमाफिया से जुड़े पदाधिकारियों ने वर्ष 2005-06 में कई फर्जी सदस्य बना डाले। बताया जाता है कि ऐसे कई सदस्य नंदानगर, सर्वहारा नगर और जनता क्वार्टर के हैं। इनमें कुछ सदस्य तो ऐसे बना लिए हैं जो एक ही गली के हैं। ऐसा लगता है कि नगर निगम या विधानसभा की मतदाता सूची उठाकर लाइन से सदस्य बनाए गए हों।

भूमाफिया बाबी छाबड़ा का है एकाधिकार
संस्था की वर्ष 2003-04 की आडिट रिपोर्ट के अनुसार 2190 सदस्य ही थे। बाद में संस्था पर भूमाफिया बाबी छाबड़ा का एकाधिकार हो गया। भूमाफिया के कहने पर चिराग शाह और उसके साथियों ने दो हजार नए सदस्य बना दिए। इससे पुराने और वरिष्ठ सदस्यों का अहित हुआ। संस्था के पूर्व संचालक मंडल ने संस्था की आवासीय भूमि को गैर आवासीय दर्शाकर इसे बेच दिया। पीड़ित सदस्यों ने प्रशासन से अनुरोध किया है कि ऐसी जमीन को चिन्हित कर उनकी रजिस्ट्री निरस्त कराने की कार्रवाई की जाए। लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई और इस जमीन पर प्लॉट खरीद कर अपना आशीयाना बनाने वाले दर-बदर भटकने को मजबुर ही है।