मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को प्रदेश की भागदौड़ संभाले हुए एक साल का समय हो गया है। बीते एक वर्ष का आकलण किया जाए तो डॉ मोहन सियासी मोर्चे पर खुद को साबित करने के साथ-साथ प्रदेश को विकास की राह पर आगे ले जाने के मामले में भी सफल नजर आते हैं।
लगभग 2 दशक तक एक ही मुख्यमंत्री की छत्रछाया में रही प्रदेश की जनता के लिए एक नए मुख्यमंत्री को सहजता से स्वीकार कर पाना आसान नहीं था, लेकिन अपने कुशल नेतृत्व और कार्य क्षमता की बदौलत सीएम यादव ने साल भीतर ही प्रदेशवासियों में अपनी ऐसी छाप छोड़ी कि पार्टी आलाकमान भी उनका कायल हो गया। इसकी बानगी इस बात से समझी जा सकती है कि उन्हें न केवल हरियाणा चुनाव में पर्यवेक्षक के रूप में गृह मंत्री अमित शाह के साथ शामिल किया गया बल्कि लोकसभा चुनाव में स्टार प्रचारक के रूप में भी विभिन्न राज्यों के दौरे पर भेजा गया।
मुख्यमंत्री के तौर पर उनका सबसे पहला फैसला लाउडस्पीकर्स की आवाज को धीमा करवाना था, जो सीधा इशारा था कि प्रदेश का नया सीएम अपने फैसलों को लेकर पूरी तरह साफ़ है। ऐसे ही प्रदेश की महत्वकांक्षी लाड़ली बहना योजना को लेकर भी उनका दृष्टिकोण न केवल स्पष्ट था बल्कि दृढ़ भी था, जिसे तमाम कयासों को झूठा साबित करते हुए उन्होंने न केवल जारी रखा बल्कि त्योहारों पर बहनों को अतिरिक्त धनराशि का तोहफा भी दिया। ये वो निर्णय थे जिन्होंने एकाएक उनकी छवि को निखारने का काम किया लेकिन दिल्ली ने जो भरोसा उन पर जताया था उस पर खड़ा उतरना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती थी।
हालाँकि इसे भी उन्होंने छिंदवाड़ा लोकसभा जैसे कांग्रेसी किले को जीतकर पार कर लिया और मध्य प्रदेश में अपनी जमीनी पकड़ का शानदार नमूना पेश किया। इसके अतिरिक्त पिछले एक साल में डॉ यादव ने कुछ ऐसे निर्णय लिए और ऐसी योजनाओं की शुरुआत की, जिनके बेहद दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे। फिर बात संबल योजना 2.0 की हो या रानी दुर्गावती प्रशिक्षण अकादमी, पीएम श्री एम्बुलेंस सेवा, भगवान बिरसा मुण्डा स्वरोजगार योजना, टंट्या मामा आर्थिक कल्याण योजना या मुख्यमंत्री जनजाति विशेष वित्त पोषण योजना की, ये सभी योजनाएं प्रत्येक वर्ग के कल्याण को ध्यान में रखकर शुरू की गईं हैं।
अपने एक साल के कार्यकाल में मुख्यमंत्री यादव ने अफसरशाही पर लगाम लगाने से लेकर लम्बे समय से अटकी पड़ीं विकास परियोजनाओं की शुरुआत, इंडस्ट्री इंफ्रास्ट्रक्चर के जरिये नए अवसरों की तलाश और हर वर्ग विशेष तक पहुँचने का प्रयास किया। उन्होंने कलक्टर, एसपी और अन्य जिम्मेदार अधिकारियों को उनकी ड्यूटी याद दिलाने से लेकर लगभग दो दशक से चले आ रहे मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच चंबल-कालीसिंध और पार्वती नदी के पानी के विवाद को बेहद शालीनता से सुलझाने तक कई अति-आवश्यक कदम उठाएं हैं। इतना ही नहीं मध्य प्रदेश सिविल सेवाओं में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला भी मोहन सरकार का ऐतिहासिक फैसला कहा जा सकता है। वहीं आदिवासियों के लिए 40 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया जाना भी जनजातीय विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम समझा जा सकता है।
संभवतः यह भी पहली बार हुआ जब प्रदेश में रीजनल इंडस्ट्री कॉक्लेव की श्रृंखला आयोजित कर निवेश के नए द्वार खोलने के प्रयास किये गए, जिसके माध्यम से युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने का लक्ष्य केंद्र में रखा गया। ध्यान देने वाली बात है कि प्रदेश में जन कल्याण पर्व मनाया जा रहा है, जिसके अंतर्गत प्रदेश में एक लाख सरकारी भर्तियों की प्रक्रिया शुरू की गई है। इसमें स्कूल शिक्षा विभाग, गृह विभाग, ऊर्जा विभाग, उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, वन विभाग, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, राजस्व विभाग, जल संसाधन और पशुपालन व डेयरी जैसे विभाग शामिल हैं।
यानी वादे के अनुरूप एक लाख भर्तियों की शुरुआत कर दी गई है जिसकी फिलहाल सबसे अधिक जरुरत भी है। हालाँकि विगत एक साल के दौरान डॉ यादव पर अपने गृहक्षेत्र उज्जैन पर अधिक फोकस करने जैसे इल्जाम भी लगे हैं, लेकिन इतने कम समय में पहली दफा प्रदेश के मुखिया का पदभार संभाल रहे मोहन यादव के लिए किसी प्रकार की नकारात्मक धारणा बनाना जल्दबाजी होगी। उम्मीद करते हैं कि आने वाले सालों में वह एक आदर्श मुख्यमंत्री बनकर न केवल प्रदेश बल्कि देश और विदेश में भी अपनी कार्यकुशलता का लोहा मनवाएंगे।