अतिथि शिक्षकों को न्यूनतम वेतन ना देने पर हाईकोर्ट ने मांगा मुख्य सचिव से जवाब

मध्य प्रदेश के शासकीय स्कूलों में अतिथी शिक्षकों की नियुक्ती के बाद अतिथि शिक्षकों के साथ हो रहे दुर्भावनापूर्वक व्यवहार पर हाईकोर्ट ने जवाब मांगा है। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ ने राज्य शासन से पूछा है कि प्रदेश के शासकीय स्कूलों में कार्यरत अतिथि शिक्षकों को नियमित स्वीकृत पद का न्यूनतम वेतन क्यों नहीं दिया जा रहा है।

नोटिस जारी कर मांगा जवाब
हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव, वित्त विभाग, स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, जनजातीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव, सहित  आयुक्त लोक शिक्षण सहित अन्य विभागों को नोटिस भेज कर जवाब मांगा। प्रदेश में लगभग 90 हजार अतिथि शिक्षक कार्यरत हैं। इन अतिथि शिक्षकों से नियमित शिक्षकों के सभी काम करवाए जाते हैं, लेकिन नियमित के लिए निर्धारित न्यूनतम वेतन नहीं दिया जाता है।

याचिकाकर्ता ने रखा है पक्ष
याचिकाकर्ता देवास के रहने वाले विकास कुमार नंदानिया की ओर से अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह व पुष्पेंद्र शाह ने पक्ष रखा। है कि सरकार नियमित स्वीकृत पद पर भर्ती नहीं करते हुए अतिथि शिक्षकों की भर्ती कर रही है। प्रदेश में लगभग 90 हजार अतिथि शिक्षक कार्यरत हैं। जिनसे काम कराया जा रा है लेकिन वेतन में असमानता है।

मौलिक अधिकारो का हनन
अतिथि शिक्षकों से नियमित शिक्षकों के सभी काम करवाए जाते हैं, लेकिन नियमित के लिए निर्धारित न्यूनतम वेतन नहीं दिया जाता है। इसके अलावा अतिथि शिक्षकों को नियमित शिक्षकों के समान छुट्टी का लाभ भी नहीं मिलता है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला दिया गया जिनमें यह निर्धारित किया है कि न्यूनतम वेतन से कम वेतन देना संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।