हैप्पी बर्थ डे से हैप्पी दीवाली तक की यात्रा

– राजकुमार जैन, स्वतंत्र विचारक

भारतीय समाज में गर्भ संस्कार से लेकर बच्चे के जन्म लेने तक बहुत सी परंपराओं का पालन किया जाता है। परिवार में खुशिया भी मनाई जाती है और प्रतीक्षा की घड़ियां समाप्त होने पर जब बच्चा जन्म लेता है तो घर के सब बड़े बुजुर्ग हर्ष के साथ बड़ी उमंग से कहते है बधाई हो घर में बेटा/ बेटी का जनम हुआ है।

लेकिन जनम के पहले ही साल में बच्चे का “जन्म” “बर्थ” में कैसे बदल जाता है, यह सोचने वाली बात है। मुझे घोर आश्चर्य होता है, जब उस बच्चे के जन्म दिन पर शुभआशीष, शुभकामनाओं और बधाई की मधुर ध्वनि की बजाय “HAPPY BIRTHDAY” का शोर सुनता हूँ।

लगता है 200 से भी अधिक वर्षों तक हमारे ऊपर राज करने के बाद अंग्रेज तो भारत छोड़कर चले गए चले गए लेकिन जाते जाते वो अपने साम्राज्य के स्मृति चिन्ह के रूप में अंग्रेजीयत हमारे मन और मस्तिष्क में गहरे तक छोड़ गए। यूं लगता है मानो उन्होंने सिर्फ हमारे तन पर ही राज नहीं किया था बल्कि हमारे मन और मस्तिष्क को भी अपना दास बना लिया था और वो दासता का भाव आज भी विद्यमान है। हमने अपने संस्कारों में “शुभ” की जगह हैप्पी को अपना लिया है। और अपनी भारतीय मातृभाषा बोलने वालों को हीनता से देखने लगे हैं।

काम और कैरियर के लिए अंग्रेजी या कोई भी अन्य भाषा पढ़ने, लिखने और बोलने में कोई बुराई नहीं लेकिन यदि कोई विदेशी भाषा आपकी मातृभाषा को आपके मन और मस्तिष्क से विस्थापित कर दे तो गहन चिंता और चर्चा का विषय तो बनता है।

तो अगले बार बर्थ डे मनेगा या जन्म दिन और आने वाली दिवाली शुभ होगी या हैप्पी यह आपकी मर्जी पर निर्भर है। अंत में बिना किसी पूर्वाग्रह के कहना चाहूंगा कि अपना त्योहार मनाने के लिए किसी भी भाषा का चुनाव करना आपकी निजी पसंद है। मर्जी है आपकी, भावना है आपकी, देश है आपका, संस्कृति है आपकी और आने वाली संतति भी है आपकी। तो अपने मन की, अपने दिल की सुनें और निर्णय लें।