मध्य प्रदेश के शहडोल जिले का बोड़री गांव, खासकर दुनाव टोला, आजादी के इतने साल बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। यहां रहने वाले आदिवासी परिवारों का जीवन परेशानियों से घिरा हुआ है। न सड़क है, न पीने का साफ पानी, और न ही बारिश के समय स्कूल जाने की सुविधा।
बरसात आते ही सड़क बन जाती है दलदल
बोड़री गांव के दुनाव टोला तक पहुंचने के लिए करीब 2 किलोमीटर कच्चा रास्ता है। बारिश शुरू होते ही यह रास्ता कीचड़ और दलदल से भर जाता है। हालत इतनी खराब हो जाती है कि बच्चों को स्कूल तक जाने के लिए बरसाती नाला पार करना पड़ता है, जो बारिश में उफान पर होता है। ऐसे में कई बच्चे स्कूल जाना छोड़ देते हैं। कई बार तो लोग बीमार हो जाएं, तब भी उन्हें अस्पताल ले जाना मुश्किल हो जाता है।
पीने के पानी के लिए भी जंग
गांव में पीने का पानी भी एक बड़ी समस्या है। पहले गांव के सरकारी स्कूल में लगा हैंडपंप ही लोगों का एकमात्र सहारा था, लेकिन वो भी महीनों से खराब पड़ा है। अब ग्रामीण एक स्थानीय व्यक्ति के यहां लगे निजी बोर से पानी ले रहे हैं, जिसके लिए उन्हें हर परिवार को महीने में 100 रुपये चुकाने पड़ते हैं। गरीबी से जूझ रहे आदिवासी परिवारों के लिए यह खर्च एक भारी बोझ बन गया है।
कोई सुनने वाला नहीं
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार सरपंच, सचिव और जनपद पंचायत के अधिकारियों से गुहार लगाई है। लेकिन कोई उनकी सुनता नहीं। न तो सड़क बनी, न ही नाले पर पुलिया, और न ही हैंडपंप की मरम्मत हुई। हर साल यही हाल होता है और हर साल प्रशासन की अनदेखी बढ़ती जा रही है।
बचपन से अधिकार तक सब कुछ छिना
बच्चों की पढ़ाई रुक जाती है, महिलाओं को कीचड़ में फिसलते हुए पानी लाना पड़ता है, और बीमार लोग घंटों तक इलाज के लिए गांव से बाहर नहीं जा पाते। ये हालात किसी जंगल या वीरान जगह के नहीं, बल्कि एक ऐसे गांव के हैं जो आज भी विकास के नाम पर सरकार से सिर्फ वादे सुन रहा है।