लंबे विवाद पर लगी विराम की मुहर, सरकार के फैसले को मिली कानूनी मान्यता

हुकुमचंद मिल परिसर से जुड़ा मामला लंबे समय से चर्चा में था। इस मामले में “सिटी फॉरेस्ट” घोषित करने की मांग को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई थी। हालांकि अदालत ने साफ किया कि वन अधिनियम में “सिटी फॉरेस्ट” जैसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं है। इसी आधार पर याचिका को खारिज कर दिया गया।

हाउसिंग बोर्ड की ई-निविदा पर सवाल नहीं

याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया था कि हाउसिंग बोर्ड द्वारा निकाली गई ई-निविदा में पेड़ काटने का प्रावधान शामिल है। लेकिन सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट हो गया कि निविदा दस्तावेज़ में कहीं भी पेड़ काटने का उल्लेख नहीं किया गया है। इस तरह सरकार का पक्ष और भी मजबूत हो गया।

अतिरिक्त महाधिवक्ता ने रखा सरकार का पक्ष

इस पूरे मामले में सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आनंद सोनी ने पैरवी की। उन्होंने अदालत के समक्ष स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं के दावे तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और वन अधिनियम की धारा में “सिटी फॉरेस्ट” जैसा कोई शब्द ही नहीं है। उनकी दलीलों के बाद अदालत ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया।

सरकार को मिली कानूनी जीत

अदालत के इस फैसले से सरकार को बड़ी राहत मिली है। लंबे समय से चल रहे इस विवाद में अब स्पष्ट हो गया है कि मिल परिसर में विकास कार्य हाउसिंग बोर्ड की निविदा शर्तों के अनुसार ही आगे बढ़ेंगे।