आदमी आज सिर्फ इस बात से खुश है कि वह जिंदा है!

-अन्ना दुराई

वाकई वार त्यौहार चाहे किसी भी धर्म संप्रदाय के हों, खुशियाँ बांटने के लिए होते हैं लेकिन वर्तमान में भारतीय संस्कृति और परम्परा के विपरीत जो अतिरेक हो रहा है वो कहीं से कहीं तक सही प्रतीत नहीं होता। आजकल धर्म की आड़ में अपनी राजनीति चमकाने का काम बड़े पैमाने पर हो रहा है। राष्ट्रवाद की परिभाषा अब बदल गई है। जनमानस में भय और आतंक का ऐसा माहौल पैदा कर दिया है कि व्यक्ति सिर्फ इस बात से खुश हो जाता है कि वह जिंदा है। उसे अपनी समस्या, समस्या नहीं लगती। उसे अपने दुख, दुख नहीं लगते। ऐसे हालात क्यों बन रहे हैं या बनाए जा रहे हैं, इस तरफ कोई अपने सोच को नहीं ले जा पाता।

स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक वाली कहावत अब कहावत ही रह गई है। डर पैदा करके अपनी बात मनवाने का काम जबरदस्ती हो रहा है। आप यह करोगे, यह नहीं करोगे, यह आपकी निजता पर हमला नहीं तो क्या है। हम यह सोच सोचकर प्रफुल्लित हुए जा रहे हैं कि हमारी रक्षा हो रही है। इसकी जो कीमत हम अदा कर रहे हैं, क्या वो लाजमी है।

सही मायने में आतंकवाद तो यह है जो हमसे हमारे जीवन यापन के अधिकार तक छिन रहा है। धर्म के नाम पर ब्लैकमेलिंग का जो धंधा पनप रहा है, उससे हम अनजान बने हुए हैं। कुछ लोगों के लिए एक शब्द गलत से गलत कर जाने का भी लायसेंस बन गया है। एक वाकिए में जब सरकार परेशान हुई तो सक्रिय हो गई लेकिन उस वक्त क्या हो जाता है जब डरा धमका कर अन्य धर्मों से परहेज की बात एक महिला से बुलवाई जाती है। उसका वीडियो वायरल किया जाता है।

एक डिलेवरी बाय से कपड़े तक उतरवा लिए जाते हैं। इस अतिवाद से कोई धर्म अछुता नहीं है। बधाई दीपावली की हो या ईद की। क्रिसमस की हो या प्रकाश पर्व की। उल्लास और उमंग का प्रतीक है। जन मानस से यह अधिकार छिनने का काम रोका जाना चाहिए। जरूरत तो सरकारों और राजनीतिक दलों को भी अब इससे सचेत होने की है क्योंकि वोट की खातिर चोट पड़ना अब शुरू हो चुकी है।