हमारे देश में एक ऐसा पहाड़ जहां एक – दो नहीं बल्कि 900 से ज्यादा संगमरमर के मंदिर बने हैं। ये हमारे देश की एक इतनी खूबसूरत और शांत अध्यात्मिक जगह है, जहां जाना हर व्यक्ति की चाहत होती है। हम बात कर रहे है गुजरात के ‘शत्रुंजय पर्वत’ की। ‘शत्रुंजय पर्वत’ गुजरात के भावनगर से लगभग 50 किलोमीटर दुर पालिताणा में शत्रुंजय नदी के तट पर है।
पालिताणा गुजरात का एकमात्र शाकाहारी है
सबसे खास बात ये है कि पालिताणा गुजरात का एकमात्र ऐसा शहर है जो पुरी तरह से शाकाहारी है और यहां ‘शत्रुंजय पर्वत’ पर मौजुद सभी मंदिर जैन धर्म के 24 तीर्थंकर भगवान के मंदिर हैं। इन मंदिरों का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। लगभग 1900 फुट की ऊंचाई पर शत्रुंजय शिखर पर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ऋषभदेव का मंदिर है।
इनके दर्शन के लिए लगभग 3,745 सीढ़ियां चढ़कर जाना होता है। मान्यता है कि जैन धर्म के संस्थापक आदिनाथ ऋषभदेव ने शिखर पर मौजुद वृक्ष के नीचे कठिन तपस्या की थी, जहां अब उनका मंदिर है। इस पर्वत पर उन्होने ध्यान किया था साथ ही अपना पहला उपदेश भी उन्होने इसी स्थान पर दिया था।
यहां भगवान रात्रि में विश्राम करते हैं
मान्यता है इन मंदिरों का निर्माण भगवान के निवास के लिये किया गया था। यहां भगवान रात्रि विश्राम करते हैं। इसलिए इस स्थान पर रात में किसी भी व्यक्ति को रुकने की अनुमति नहीं है। ये श्वेतांबर जैन परंपरा का सबसे पवित्र स्थल है, ‘शत्रुंजय पर्वत’ पर मन को असीम शांति का महसूस होती है। केवल इतना ही नहीं इस पर्वत पर बने मंदिरो की नक्काशी इतनी खूबसूरत है कि देखने वालो का मन मोहित हो उठता है। ‘शत्रुंजय पर्वत’ पर सुबह का नजारा तो देखते ही बनता है, जब सूर्य की किरणें यहां पड़ती है तब मंदिर सोने की तरह चमक उठते है। वही शाम के समय सूर्यास्त का नजारा तो बेहद सुंदर लगता है। रात के समय ‘शत्रुंजय पर्वत’ पर बने संगमरमर के मंदिर चंद्रमा की रोशनी से मोतियो की तरह चमकते हुए दिखाई देते है।
इस पर्वत पर एक मजार भी है
ऐसा कहा जाता है कि ‘शत्रुंजय पर्वत’ पर इन मंदिरो का निर्माण लगभग 900 साल पहले किया गया था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते है। गौरतलब है कि इस पर्वत पर मंदिर परिसर में एक मुस्लिम संत अंगारशा पीर की मजार भी बनी हुई है। ऐसा कहते है कि अंगारशा पीर ने मुगलो से शत्रुंजय पर्वत की रक्षा की थी। यहां अंगारशा पीर की मजार पर मुस्लिम माथा टेकने आते है।