देश का एक मात्र मंदिर, जहां शिव के रूप में विराजमान है न्याय के देवता शनिदेव

मध्यप्रदेश के उज्जैन में न्याय के देवता भगवान शनिदेव का एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां शनिदेव शिव के रूप में विराजमान है। इस प्रसिद्ध मंदिर का नाम है नवग्रह शनि मंदिर, जो कि शिप्रा नदी के तट पर त्रिवेणी घाट पर स्थित है। ये हमारे देश का एकमात्र मंदिर है जहां शनिदेव शिव के रूप में विराजमान है। हर अमावस्या पर श्रद्धालु शिप्रा नदी में स्नान करने के बाद भक्त त्रिवेणी घाट पर स्थित नवग्रह शनि मंदिर में दर्शन करते है।

इस मंदिर के गर्भ गृह में भगवान शनिदेव की प्रतिमा के साथ गणेश जी प्रतिमा, ढय्या की प्रतिमा और हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित है। शनिचरी अमावस्या पर इस मंदिर में दूर-दूर से भक्त भगवान शनिदेव के दर्शन करने आते है।  शनिचरी अमावस्या पर नव ग्रह शनि मंदिर को फूलों से सजाया जाता है। भगवान शनि महाराज का विशेष आकर्षक श्रृंगार किया जाता है।

शनिचरी अमावस्या का विशेष महत्व होता है।  पौराणिक मान्यता है कि शनिचरी अमावस्या पर श्रद्धालु शिप्रा नदी में स्नान करके मंदिर में दर्शन करते है और त्रिवेणी घाट पर पनौती के रूप में अपने कपड़े और जूते-चप्पल यहीं छोड़ जाते है। दान स्वरूप में छोड़े गए जूते-चप्पल और कपड़ो को प्रशासन द्वारा नीलाम किया जाता है। मान्यता है कि यहां शनिचरी अमावस्या पर शनिदेव की पूजा करने से विशेष शांति मिलती है।

जिन लोगो पर शनि पर साढ़े साती चल रही हो या पितृ दोष, कालसर्प योग और अशुभ ग्रह योग समेत कई परेशानियां हो तो उन्हें भी इस दिन शनिदेव की पूजा से विशेष कृपा प्राप्त होती है। उज्जैन के त्रिवेणी घाट पर स्थित नवग्रह शनि मंदिर की स्थापना सम्राट विक्रमादित्य ने की थी। ये प्राचीन मंदिर लगभग 2500 साल पुराना माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि यहां शनिदेव की पूजा करने से साढ़ेसाती समाप्त हो जाती है।

शनिचरी अमावस्या के मौके पर श्रद्धालु भगवान शनिदेव को लोहा, तिल, नमक, काला कपड़ा और तेल दान करते हैं। जिससे शनिदेव की साढे साती और ढैय्या का प्रभाव कम हो जाता है। यहां साढ़ेसाती और ढय्या की शांति के लिए शनिदेव पर तेल चढ़ाया जाता है। नव ग्रह शनि  मंदिर नौ ग्रहों सूर्य, चंद्, मंगल, बुध, बृहस्पति और शुक्र, राहु, केतु को समर्पित है।