हिंसा कर विकास का महल खड़ा नहीं किया जा सकता…धर्मों के आधार पर इंसानों से नफरत कर धरती पर नहीं जिया जा सकता…

*प्रखर वाणी*

हिन्दुओं पर अत्याचार करते बांग्लादेश के मुसलमानों…जरा अपने गिरेबान में झांककर अपने अतीत को तो पहचानों…हम दादा हैं तुम्हारे जब तुमने अपने इतिहास के अनुरूप बाप बेटों ने झगड़ा किया…तब तुमको जायदाद दिलाकर हमने ही मुक्ति का अवसर तगड़ा दिया…हमारी रणनीति और युद्ध कौशल का परिणाम नहीं होता न तो तुम भी आज वहीं होते…सौ रुपये किलो का आटा और पांच सौ रुपये लिटर के पेट्रोल की महंगाई से आंखें भिगोते…

तुम दोनों के मिज़ाज़ एक से हैं दोगले विचार वालों…जरा अपने कर्मों के पृष्ठ को तो खंगालो…बाप – बेटे का नहीं बेटा – बाप का नहीं हुमायूं और बाबर के अनुयायियों…हिंसक और बुरे कर्म करने वाले अतीत के दुष्कर्मों की परछाइयों…मंदिरों में तोड़फोड़ और हिंदुओं पर हमला तुम्हारे लिए कोई नया नहीं है…वर्षों से अंजाम दे रहे हो तुम इन हरकतों को तुम्हारे मन में कोई दया नहीं है…इंसानियत को ताक पर रखकर शैतानियत की पैरवी करने वाले हैवानों…

नास्त्रेदामस की बात सही निकली न तो तुम कहीं के नहीं रहोगे इस तथ्य को मानो…हिंसा और अपराधों की राह पर चलकर विकास का महल खड़ा नहीं किया जा सकता…धर्मों के आधार पर इंसानों से नफरत करने वाली सोच से धरती पर नहीं जिया जा सकता…अपनों को जिंदगी और दूसरों को मौत का फरमान नहीं दिया जा सकता…इंसानों में नफरत फैलाकर वसुधैवकुटुम्बकम का ऐलान नहीं किया जा सकता…आज तुम मारकाट करके भगा रहे हो हिन्दुओं को…खुद मिटा रहे हो अपनी लकीर तोड़कर केंद्र बिंदुओं को…बहन बेटियों के साथ तुम्हारी घिनौनी हरकतें इंसानियत को तार – तार कर रही है…हथियारों के तीखे वार तुम्हारे ही मुल्क के वाशिंदों को खून झार कर रही है…तुम्हारी लड़ाई तुम्हारे हुक्मरानों से और उनकी नीतियों से…फिर तुम क्यों नफरत कर रहे हिन्दू रिवाज और रीतियों से…

हमने तो तुम्हारे असंख्य भाई – बहनों को अपने मुल्क में शरण दी है…उनके रोजगार , व्यवहार , धर्म और रिवाज को जिंदगी दी न कि मरण दी है…तुम्हारे मुल्क के कई वाशिंदे आज भी दिन में भारत में रोजगार पाते है और रात में बांग्लादेश चले जाते हैं…हम तो इतने सहिष्णु हैं कि उनके किसी भी कारनामे पर हम उनको नहीं सताते हैं…तुमको देखना हो तो देखो हमारी ज़मीं पर सोना – चांदी या रेडीमेड के कारीगरों को…बड़े ही सुकून से काम करके अपना पेट पालते उनके जमीरों को…

हमने तो कभी उनके साथ बदतमीजी नहीं की…उनकी बहू बेटियों को नरक की जिंदगी नहीं दी…हमारे अपने बन्धु वहां जलालत भरी जिंदगी जी रहे हैं…एक एक दिन वो वहां रहकर खून का घूंट पी रहे हैं…अपने बर्ताव में सुधार करो वरना सवा सौ करोड़ भारतीयों के सब्र का बांध टूट जाएगा…बार बार विनय करने पर भी रास्ता नहीं देने वाले समुद्र से पूछो तीर कमान से छूट जाएगा ।