इप्शिता, जो गुरुग्राम में रहती हैं, ने क्रिसमस के दिन अपने पिता के साथ दिल्ली का सफर तय किया। उनका मकसद खान मार्केट की एक किताब की दुकान से ‘द सैटेनिक वर्सेज’ खरीदना था। दिल्ली एनसीआर में यह किताब सिर्फ खान मार्केट में ही उपलब्ध है। डेढ़ घंटे की ड्राइव के बाद उन्होंने किताब खरीदी और बताया कि वह इसे पढ़ने के लिए उत्साहित हैं। इप्शिता यह भी जानना चाहती हैं कि आखिर इस किताब को पाठकों से इतने सालों तक दूर क्यों रखा गया। सलमान रुश्दी की प्रशंसक इप्शिता उनकी कई किताबें पढ़ चुकी हैं और इस विवादित किताब को लेकर उनकी जिज्ञासा और बढ़ गई।
गुलाटी साहब की किताब प्रेम
दिल्ली में क्रिसमस की सुबह, गुलाटी साहब खान मार्केट की एक किताब की दुकान पर पहुंचे। उन्होंने दुकान की सीमित गैलरी से ‘द सैटेनिक वर्सेज’ उठाई। किताब के पन्ने पलटने के बाद उन्होंने इसे खरीद लिया। बाहर आने पर TV9 भारतवर्ष की टीम ने उनसे इस किताब की खासियत पूछी। गुलाटी साहब ने जवाब में कहा कि यह किताब एक ऐतिहासिक और विवादास्पद रचना है, जिसे अब पाठकों के लिए उपलब्ध कराया गया है।
क्यों खास है ‘द सैटेनिक वर्सेज’?
इप्शिता ने कहा कि 1988 में राजीव गांधी सरकार ने इस किताब पर प्रतिबंध लगाया था। सरकार का तर्क था कि एक विशेष वर्ग को यह किताब ईशनिंदा लगी। इप्शिता के अनुसार, यह प्रतिबंध इस किताब की लोकप्रियता का कारण बना। उन्होंने यह जानने की इच्छा जाहिर की कि आखिर इस किताब में ऐसा क्या लिखा है जो इसे इतना विवादित बनाता है।
36 साल बाद कोर्ट का फैसला
दिल्ली हाई कोर्ट ने ‘द सैटेनिक वर्सेज’ पर लगे प्रतिबंध को हटाने का आदेश दिया है। साल 1988 में, जब यह किताब प्रकाशित हुई थी, तो मुस्लिम समुदाय के कुछ वर्गों ने इसे पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ ईशनिंदा बताया था। इस विवाद के चलते राजीव गांधी सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया। कोर्ट ने अब यह पाया कि सरकार इस प्रतिबंध को उचित ठहराने वाले मूल दस्तावेज प्रस्तुत करने में विफल रही।
भारतीय परंपरा और शात्रार्थ का महत्व
दिल्ली विश्वविद्यालय की अंग्रेजी प्रोफेसर, डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा, ने बताया कि भारत में विचारों की स्वतंत्रता और तर्क-वितर्क के माध्यम से सही-गलत का निर्णय लेने की परंपरा है। उन्होंने कहा कि किसी किताब पर प्रतिबंध लगाना भारतीय परंपरा के खिलाफ है। डॉ. मल्होत्रा ने यह भी उल्लेख किया कि किताब को केवल एक साहित्यिक रचना के रूप में देखना चाहिए, न कि किसी वर्ग विशेष को खुश करने के लिए। उन्होंने हिंसा के उदाहरण देते हुए कहा कि हिंसा के लिए किताबें नहीं, बल्कि सोच जिम्मेदार होती है।
राजीव गांधी सरकार का प्रतिबंध
1988 में, सलमान रुश्दी की किताब ‘द सैटेनिक वर्सेज’ पर प्रतिबंध लगाया गया था। सरकार ने इसे ईशनिंदा की वजह से बैन करने का तर्क दिया। हालांकि, अब हाई कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि उस समय का प्रतिबंध उचित नहीं था। कोर्ट के इस फैसले के बाद, भारत में पाठक इस किताब को पढ़ सकेंगे।
पाठकों के लिए नई शुरुआत
36 साल के लंबे इंतजार के बाद, भारतीय पाठक अब ‘द सैटेनिक वर्सेज’ को बिना किसी कानूनी रुकावट के पढ़ सकते हैं। यह फैसला न केवल विचारों की स्वतंत्रता का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि किताबों को साहित्यिक दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है।