टोल पर उड़ रहा व्यवस्था का मख़ौल…भीड़ बरकरार संचालन में खामी फिर भी द्वार मत खोल…

प्रखर-वाणी

अब और सख्त होंगे टोल पर फास्टैग सम्बन्धी नियम…ये बयान व समाचार पढ़कर वाहन मालिकों को हुआ गम…इतने साल बाद भी सड़कों पर सपाट चलने के सपनों वाला भारत नहीं बन पाया…हमारी यातायात सुविधा व परिवहन प्रयोग से सम्पन्न सीना नहीं तन पाया…टोल पर उड़ रहा व्यवस्था का मख़ौल…भीड़ बरकरार तो संचालन में खामी पर द्वार मत खोल…जब फास्टैग शुरू किया था तब खटाखट गाड़ी निकलने का वायदा किया था…अनेक फास्टैग कम्पनियों को सुविधा का फायदा दिया था…भरपल्ले कमीशन के साथ फास्टैग देने के साजो – सामान जुटाए गए…कम्पनियों की अलग – अलग योजनाओं पर धन लुटाए गए…बेलेंस के नाम पर भी विचित्र चित्र खींचे गए…

ज्यादा में कम व कम से ज्यादा राशि के पौधे सींचे गए…जरा सी ओस की बूंद लग जाये तो ब्लैकलिस्टेड…ऑपरेटर की खामी रहे तो ब्लैकलिस्टेड…गलती किसी की भी हो तो खामियाजा वाहन संचालन का…ऊपर से तोहमत हर समय की सम्मान नियम पालन का…सड़कें जर्जर पूल क्षतिग्रस्त फिर भी टोल तो रहते बरकरार…रिपेयरिंग के नाम पर महज लीपापोती ज्यादा कहो तो ठेकेदार फरार…वाहनों की गति इत्यादि व समय बचत के लिए शुरू में यह योजना बेशक बेहतरीन लगी थी…तब मुक्ति भी मिली इसी से जब टोल पर हो जाती ठगी थी…इतने नियंत्रण के बाद भी ईमानदार तो कर दे रहा है…लेकिन सौरभ शर्मा जैसा चौकीदार कैसे गड्डियां ले रहा है…अंकुश जिन पर ज्यादा जरूरी है वो तो पार्टनर हैं…

सीधी साधी पेंसिल को छील रहे शार्पनर हैं…गडकरी जी के अरमानों को बाइज्जत गटक रहे हैं…अनेक टोल पर इलेक्ट्रॉनिक खम्बे अटक रहे हैं…लाइन व कतार कम होने का नाम नहीं लेती…आधे से अधिक खिड़कियां बन्द ही दिखाई देती…इधर से उधर आगे पीछे करने वाली गाड़ियां आपस में भीड़ जाती हैं…जरा सी बात पर वाहन चालकों में बहस से जंग छिड़ जाती है…तब लगता है कि पुरानी व्यवस्था व नई अवस्था में थोड़ा तो बदलाव हुआ है…जिसकी वजह से फास्टैग प्रणाली से कुछ लगाव हुआ है…लेकिन समुचित प्रबंध की व्यवस्था अभी भी अधूरी है…बड़े परिवर्तन की सोच लगती केवल दस्तूरी है…सड़कें जर्जर , दोहरा करारोपण और फिर वही बातें पुरानी है…इस तरह से चल रही टोल की पोल फ़िल्म की कहानी है…

वाहन खरीदने पर टैक्स…परमिट , फिटनेस पर टैक्स…पुल – सड़क निर्माण पर टैक्स…बॉर्डर पार करो तो फिर टैक्स…वो तो बड़ी गाड़ी वाले धनाढ्य होते हैं इसलिए चेहरे पर शिकन तक नहीं आती…मगर गरीबों और रोज़गार साधकों को तो ये कर व्यवस्था बहुत सताती…टोल पर ली जाने वाली राशि का भी पैमाना गजब है…घटने का तो नाम नहीं लेता पर बढ़ता अजब है…पहले जो टोल ऑपरेटर चलाते थे अब वो बाउंसर चला रहे हैं…शरीफ वाहन चालक ही अब भजिये की तरह तला रहे हैं…टोल पर यदि फास्टैग नहीं चल रहा बोलकर नकद भी ले लेंवे…और फिर फास्टैग से भी वाहन रुपये दे देंवे…ऐसे में रुपये वापसी की प्रणाली कठिन है…अनेक बार छोटी राशि क्या वापस लेना सोच के चालक काम में तल्लीन है…

पूरे देश में बेशक सड़क परिवहन में सुधार और सड़कों में भी प्रगति मिली है…अतीत की अवस्था और वर्तमान की व्यवस्था के अंतर से बांछे जरूर खिली है…मगर जो क्षणिक सुधार जरूरी है उन पर गौर फरमाइए सरकार…सपाट वाहन संचालन हेतु भी कर दीजिए थोड़ा उपकार…अब विकसित भारत की तरफ हमारे कदम है…हम जानते हैं कि हमारे वतन मुखिया में दम है…हमारे देश का नाम व सम्मान दुनियां में चमत्कार है…इसीलिए विश्व के हर हिस्से में हमारे पंथ प्रधान का सत्कार है…आइये एक कदम और प्रगति की तरफ बढ़ाएं…अपने देश को विश्व गुरु के शिखर तक चढ़ाएं ।