प्रखर वाणी
पंजे की गिरफ्त में कमल आ गया और खिलते खिलते मुरझा गया । चार सौ पार का फील गुड स्वयं भाजपा को ही खा गया । राहुल को हल्के में लेना और अखिलेश के पट्ठों को धोना भारी पड़ गया । बाबा के बुलडोजर पर साइकिल का पहिया चढ़ गया । फिर शुरू होगा तमाशा सत्ता की ललक को ललकार का । दल से दल दल हो जाएगा अब आगे बनने वाली सरकार का । दो तिहाई बहुमत का सपना चूर होकर पूर्ण बहुमत को तरस रहा है । परिणाम के बादलों की ओट से सीटों का मावठा बरस रहा है ।
राममन्दिर के निर्माण के बाद तो सोचा था पूरी अयोध्या हमारी होगी । सत्ता के ललाट पर चमकेगा सूरज फिर कुर्सी पर रामलला की किलकारी होगी । मगर नतीजा उलट हो गया उत्तरप्रदेश पूरे देश पर भारी रहा । कारण जो भी हो पर परिणाम फिर धर्म की बीमारी रहा । सपा पास हो गई और बसपा फेल प्रजातंत्र में चलता है कुछ इसी तरह से कुर्सी का खेल । फिर सेंव , मिच्चर , परमल , दाल , प्याज मिलाकर बनाएंगे सियासत की भेल । पांच साल में पचास बार चलेगी अस्थाई सरकार की रेलमपेल ।
बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुँच पाना अब स्वतंत्र रूप से तो किसी भी दल के नसीब नहीं रहा । परिणामों का रुझान बता रहा है कि अब ईवीएम से मत पाने में कोई भी दल गरीब नहीं रहा । धरी की धरी रह गई धरा सारी गगन मगन है रोने में । मन का मलाल उलाल हो गया चेहरा मायूस है न पोछने में न धोने में । दशा देश की ऐसी हो गई मोदी के भरोसे पूरी पार्टी फिर पार्टी के भरोसे देश । मतदाता भी सोचता रहा भाजपाइयों छप्पन इंच को कब तक करोगे केश ।
भारत का इतिहास गवाह है नेतृत्व एकल फेस पर जब जब आकर टीका है । तब तब अंगूरी हो गई सारी लता और अंगूर का स्वाद भी न खट्टा है न मीठा है बस फीका ही फीका है । चिंतन भी और चिंता भी भाजपा और उसके इर्द गिर्द रहने वालों में जरूरी है । इस चुनाव में तो जनता के फैसले को स्वीकार करना भाजपा की मजबूरी है ।