सनातन धर्म एक अत्यंत प्राचीन और गूढ़ परंपराओं वाला धार्मिक मार्ग है, जिसमें हर पूजा-पाठ, अनुष्ठान और धार्मिक कार्य के लिए कुछ निश्चित नियम और विधियाँ निर्धारित की गई हैं। इन नियमों का पालन करना अनिवार्य माना गया है, क्योंकि यदि इनका उल्लंघन किया जाए तो उसका प्रतिकूल प्रभाव जीवन में देखा जा सकता है। पूजा केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि श्रद्धा, विश्वास और अनुशासन का मिलाजुला रूप है।
कलावा: केवल धागा नहीं, एक शक्तिशाली रक्षा सूत्र
हिंदू धर्म में जब भी कोई धार्मिक कार्य होता है, तो उसमें कलावा यानी रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा होती है। यह कोई साधारण धागा नहीं, बल्कि देवी-देवताओं से रक्षा का संकल्प लिए हुए एक पवित्र सूत्र है। इसे आमतौर पर पंडित जी द्वारा मंत्रों के साथ बांधा जाता है। कलावा तीन रंगों—लाल, पीला और हरा/सफेद—का मिश्रण होता है, जो त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) और त्रिदेवियों (सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती) का प्रतीक होता है। यह धागा हमारे शरीर को नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित रखने में सहायक होता है।
धार्मिक और पौराणिक मान्यता
कलावा की उत्पत्ति का उल्लेख पौराणिक कथाओं में मिलता है। विशेष रूप से “देवासुर संग्राम” की कथा में इसका उल्लेख मिलता है, जब इंद्र देवता असुरों के साथ युद्ध कर रहे थे। उनकी पत्नी इंद्राणी ने उन्हें विजय की कामना करते हुए उनके हाथ में एक रक्षा सूत्र बांधा था। इस रक्षा सूत्र के प्रभाव से इंद्र ने विजय प्राप्त की। तभी से यह परंपरा चलन में आई और अब यह पूजा-पाठ का अनिवार्य अंग बन गई है।
कलावा बांधने के पीछे छिपे नियम
कलावा बांधते समय कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक है। सबसे पहले, इसे हमेशा आरती के बाद बांधा जाता है। दूसरा नियम यह है कि कलावा कभी भी बिना दक्षिणा के नहीं बांधना चाहिए। अगर आप उस समय दक्षिणा नहीं दे पा रहे हैं, तो अपने हाथ में कुछ चावल (अक्षत) या फिर जो भी वस्तु आप दक्षिणा में देने वाले हैं, उसे रखें और बाद में पंडित जी को अर्पित करें। इससे पुण्य प्राप्त होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
सिर पर कुछ रखना अनिवार्य
कलावा बांधते समय सिर को ढकना बहुत जरूरी माना जाता है। यदि रुमाल, दुपट्टा या साड़ी उपलब्ध न हो, तो आप अपने दूसरे हाथ को सिर पर रख सकते हैं। यह नियम इसलिए है क्योंकि सिर को ढकना विनम्रता और श्रद्धा का प्रतीक होता है। यह दिखाता है कि आप पूजा के समय पूर्ण समर्पण भाव में हैं। कई बार लोग इस नियम को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे पूजा का पूर्ण लाभ उन्हें नहीं मिल पाता।
कलाई पर कलावा लपेटने की संख्या का विशेष महत्व
कलावा को कभी भी अनियमित रूप से या मनमाने तरीके से नहीं बांधा जाना चाहिए। इसे तीन, पांच या सात बार ही कलाई पर लपेटा जाना चाहिए। इन संख्याओं का विशेष धार्मिक महत्व है। इससे ना सिर्फ आपके घर में सुख-शांति बनी रहती है, बल्कि दुर्भाग्य भी दूर होता है। कुछ लोग फैशन या मजबूती के लिए कलावा को बहुत मोटा और उलझा हुआ बांधते हैं, जो उचित नहीं माना जाता।
स्त्री-पुरुषों के लिए कलावा बांधने की दिशा
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, पुरुषों को कलावा हमेशा दाहिने हाथ में और स्त्रियों को बाएं हाथ में बांधना चाहिए। ऐसा करने से धार्मिक ऊर्जा संतुलित होती है और पूजा का प्रभाव पूर्ण रूप से मिलता है। यह नियम विशेष रूप से ग्रहों की स्थिति और ऊर्जा प्रवाह से संबंधित माना गया है। इन नियमों का पालन करने से देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख, समृद्धि तथा शांति बनी रहती है।
कलावा: शुभता, समर्पण और सुरक्षा का प्रतीक
कुल मिलाकर, कलावा केवल एक धागा नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति में आस्था, श्रद्धा और सुरक्षा का प्रतीक है। यह पूजा का वह हिस्सा है जिसे अक्सर छोटा समझकर नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि इसका महत्व अत्यंत गहरा है। यदि इसे धार्मिक विधि-विधान और श्रद्धा से बांधा जाए, तो यह आपके जीवन में कई समस्याओं से रक्षा कर सकता है और ईश्वर की कृपा सदैव बनी रह सकती है।