जम्मू-कश्मीर में ग्लेशियल झीलों के टूटने का खतरा, बढ़ी प्रशासन की चिंताएं

जम्मू-कश्मीर: हिमालय में तेजी से पिघल रहे ग्लेशियरों के कारण ग्लेशियल झीलों के अचानक टूटने का खतरा बढ़ गया है, जिससे प्रशासन के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी हो गई हैं। इस खतरे से निपटने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार ने एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाया है और पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थापना की दिशा में काम कर रही है। ग्लेशियरों के पिघलने से ऊंचाई वाले क्षेत्रों, खासकर हिमालय में स्थित ग्लेशियल झीलों के अचानक टूटने का खतरा बढ़ गया है। इसे ध्यान में रखते हुए, सरकार ने जोखिम को कम करने और उसे नियंत्रित करने के लिए एक प्रभावी रणनीति तैयार की है। इसके तहत, जम्मू-कश्मीर सरकार ने ‘एफजीएमसी’ यानी केंद्रित ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) निगरानी समिति का गठन किया है। इस समिति का उद्देश्य ग्लेशियल झीलों में संभावित खतरों का अध्ययन और खतरे से संबंधित समझ को बढ़ाना है।

झीलों की स्थिति का गहन अध्यन

शेषनाग और सोनसर जैसी पवित्र हिमालयी झीलों में अभियान चलाए गए। इन झीलों का जिक्र अमरनाथ गुफा के मार्ग पर स्थित होने के कारण किया गया है। इन अभियानों के माध्यम से, एफजीएमसी ने इन झीलों की स्थिति का गहन विश्लेषण किया और संबंधित खतरों के बारे में महत्वपूर्ण डेटा एकत्र किया।
इसके अतिरिक्त, किश्तवाड़ जिले में मुंदिकसर, हंगू और एक अन्य अनाम झील पर भी अध्ययन किया गया, जिससे झीलों के आसपास के पर्यावरणीय कारकों और जीएलओएफ के संभावित खतरों पर महत्वपूर्ण जानकारी मिली।

गंगाबल झील में भी किया गया विस्तृत अध्ययन

गांदरबल जिले के गंगाबल झील में भी एक अभियान चलाया गया, जो उच्च हिमालय में स्थित एक महत्वपूर्ण ग्लेशियल झील है। इस अभियान ने झील की भौतिक विशेषताओं, भूवैज्ञानिक संरचना और आसपास के प्राकृतिक बांधों की स्थिरता का गहन अध्ययन किया। साथ ही, ग्लेशियरों की स्थिति और उनके प्रभाव का भी विश्लेषण किया गया।
इन अभियानों के परिणामस्वरूप, प्रशासन को जोखिम को कम करने और भविष्य में किसी भी आपदा से बचाव के लिए नई रणनीतियाँ तैयार करने में मदद मिली है।