Imarti में रस बाकी है… जीतू भैया…!

इमरती ( Imarti ) का रस निकल गया …! इसे स्लीप ऑफ टंग तो कह नहीं सकते हैं, हां, बिजलपुरिया अंदाज जरूर कह सकते हैं!
राजनीति में स्लीप ऑफ टंग तो सुना था स्लीप ऑफ माइंड भी होता है , ये हमारे इंदौर के बिजलपुर से राजनीति में आए नेता जीतू पटवारी ने जनता को बता दिया। स्लीप ऑफ टंग में तो हमारे देश के प्रधान सेवक भी पीछे नहीं रहते हैं, वो भी शान से कह जाते है,बेटी पढ़ाओ, बेटी पटाओं!
सवाल ये है कि राजनीति में स्लीप ऑफ़ टंग तो होता है ये देखा था लेकिन स्लीप ऑफ माइंड होता है, ये दुनिया को अब हमारे बिजलपुरी नेता जीतू भाई ने बता दिया। उन्होंने अपने अंदाज में इमरती का रस निकालकर ये बताया है कि राजनीति में चर्चा में रहना है तो स्लीप ऑफ माइंड का भी उपयोग होना चाहिए! क्योंकि राजनीति में स्लीप ऑफ टंग की तरह स्लीप ऑफ माइंड में भी खेद व्यक्त करके मुक्त हो सकते हैं , सौ जीतू भाई भी खेद व्यक्त करके खुद को फ्री मान बैठे।

कमलनाथ भी Imarti को आइटम बता चुके हैं

कांग्रेसी कमलनाथ भी पूर्व में इमरती ( Imarti ) को आइटम बताकर खेद व्यक्त कर चुके हैं ।वैसे राजनीति में स्लीप ऑफ माइंड का उपयोग प्रधान सेवक भी कई मर्तबा कर चुके हैं कभी जर्सी गाय, कभी हाफ गर्ल फ्रेंड, कभी कांग्रेस की विधवा, वो रैन कोट में स्नान करते हैं, उनकी तो सोच ही पाकिस्तान जाकर ठहर जाती है, सत्ता उनकी डार्लिंग है, वो डार्लिंग, डार्लिंग खेलते हैं बोलकर । लेकिन उन्होंने कभी खेद नहीं जताया क्योंकि उनसे सवाल करने का कोई दम नहीं रखता! स्लीप ऑफ माइंड का उपयोग इस लोकसभा चुनाव में भी खूब देखने को मिल रहा है । कांग्रेसी खरगे को देखें, मैं भी शिव ,ये भी शिव कितनी आसानी से बोल गए। स्लीप ऑफ माइंड में हमारे कथाकार भी पीछे नहीं रहते हैं एक कथाकार ने तो इसका उपयोग कर अविवाहित महिलाओं को खाली प्लाट तक बता दिया था। वहीं कथाकर अब इंदौर में मुसाखेड़ी पे आ गए हैं और मुसाखेड़ी वालों के मजे ले रहे हैं, सवाल करके! ये कहते हुए कि ये मुसाखेडियां है। कहने का मतलब कोई भी स्लीप ऑफ माइंड का उपयोग कर कह सकता है कि मेरे दिमाग से स्लीप हो गया था मैं तो कुछ और बोलना चाहता था, मेरा ऐसा आशय नहीं था, कहकर बच सकता है ।लेकिन अबकी बार देखने में आया है कि स्लीप ऑफ माइंड का खेला बीजलपुरी जीतू भाई को खूब महंगा पड़ गया है ,रस निकली हुई इमरती ने एफआईआर दर्ज कराकर ये बता दिया है कि इमरती में रस बाकी है! इमरती को इतनी सस्ती ना समझा जाए ।

अब बात करते हैं राजनीति की तो राजनीति में तो कई इमरती ,शरबती बन जाती हैं! कोई नेता उस पर बहना और बहना कहकर उस अपनी अभिव्यक्ति दे देता है तो कोई आइटम बहुत अच्छा है, माल बहुत अच्छा है कहकर अपनी बात रखता है और हमें आए दिन राजनीतिक मंच से कभी इमरती, शरबती, नारंगी, मौसंबी जैसे शब्द सुनने में आते रहते हैं । अपन तो इस पोस्ट के माध्यम से बिजलपुरिया अंदाज में राजनीति कर रहे जीतू भैया को यह बताना चाहते हैं कि इमरती, शरबती,नारंगी,मौसंबी जैसे शब्द बीजलपुर में इस्तेमाल करते रहे। थारी जी … की . …थारी बे…. की जैसे शब्द भी वहीं इस्तेमाल करें। राजनीतिक मंच से इमरती,शरबती,मौसंबी, नारंगी का रस निकालने पे कभी कभी केस भी दर्ज हो जाते हैं , आप पर भी हो ही गया ना! भले ही आपने खेद व्यक्त कर दिया हो ।

अंत में यही कहूंगा ,भाईजी,आप आगे से ध्यान रखे कि आप राजनीतिक मंच से क्या क्या बोल सकते हैं! आप बेटी पढ़ाओ, बेटी पटाओं बोल सकते हैं ,पूरी छूट है । गर्ल फ्रेंड,जर्सी गाय , शहजादे,शूर्पणखा,बहना ओ बहना बोल सकते हैं! खुलकर फेकू बोल सकते हैं, चाहे तो पप्पू, पाकिस्तान, परिवार,परिवार भी कर सकते हैं! जोर जोर से जय जय सियाराम, हिंदू मुसलमान भी बोल सकते हैं । राजनीति में इन शब्दों को देश में संवैधानिक अधिकार प्राप्त है ,चुनाव आयोग भी इन पर मौन रहता है ।क्योंकि ये सभी ना तो स्लीप ऑफ टंग में आते है ना स्लीप ऑफ माइंड में ।जीतू भैया म्हारी तो तमारे सलाह है तम तो बम पे बोलो जो फूटी गयो है, इमरती का चक्कर में मत पड़ो,वो तमारो रस निकाली देगी, तमने भी देखी लियो नी कि इमरती में अभी रस बाकी है। जय रामजी की।
ठ्ठ ब्रजेश जोशी