पांढुरना – सावरगांव के बीच होगी जमकर पत्थरबाजी, प्रेमी-प्रेमिका को ऐसी मिली थी सजा!

महाराष्ट्र की सीमा से लगे मध्यप्रदेश के पांढुरना जिले में हर वर्ष भादो मास के कृष्ण पक्ष में अमावस्या पर पोला त्योहार मनाया जाता है उसके दूसरे दिन गोटमार का आयोजन होता है। गोटमार मराठी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है पत्थर मारना, यहां जाम नदी के दोनो किनारों पर बसे गांव पांढुरना – सावरगांव के बीच जमकर पत्थरबाजी होती है।
इस गोटमार की परंपरा को 17 वीं शताब्दी का बताया जाता है। इसके साथ ही यह भी किंवदती है कि यहां प्रेमी-प्रेमिका के भागने के बाद यह खेल पहली बार शुरू हुआ था जो आज तक चल रहा है। पत्थरबाजी के इस खतरनाक खेल को बंद करने के लिए प्रशासन और मानव अधिकार ने कई प्रयास किए लेकिन प्रशासन को सफलता नहीं मिली। तो आइए जानते है विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले से जुड़ी रोचक जानकारी

जाम नदीं के बीच चलते है पत्थर
गोटमार मेले की शुरुआत 17वीं ई. के लगभग मानी जाती है। नगर के बीच में जाम नदी के उस पार सावरगांव व इस पार पांढुरना गांव बसे है। इन दोनो गांव में भाद माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को बैलों का त्यौहार पोला धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सावरगांव के लोग पलाश वृक्ष को काटकर जाम नदी के बीच गाड़ते है।

उस वृक्ष पर लाल कपड़ा, तोरण, नारियल, हार और झाड़ियां चढ़ाकर उसका पूजन किया जाता है। फिर दूसरे दिन खूनी खेल की सुबह होती है। पहले दोनो गांव के लोग उस वृक्ष की एवं झंडे की पूजा करते है और फिर प्रात: 9 बजे से सावरगांव के लोग पाढूरना गांव के लोगो को पत्थर मारना शुरू कर देते है। ढोल ढमाकों के बीच भगाओ-भगाओ के घोष के साथ कभी पांढुरना के खिलाड़ी आगे बढ़ते हैं तो कभी सावरगांव के खिलाड़ी। दोनों एक-दूसरे पर पत्थर मारकर पीछे ढ़केलने का प्रयास करते रहते है।

कुल्हाड़ी लेकर भी निकलते है ग्रामीण
यहां दोनों गांव के दर्शकों का मजा दोपहर 3 बजे के बाद बढ़ जाता है। खिलाड़ी चमचमाती तेज धार वाली कुल्हाड़ी लेकर झंडे को तोड़ने के लिए उसके पास पहुंचने की कोशिश करते हैं। ये लोग जैसे ही झडे के पास पहुंचते हैं सावरगांव के खिलाड़ी उन पर पत्थरों की भारी मात्रा में वर्षा करते है और पाढुर्णा वालों को पीछे हटा देते हैं।

शाम को पांढुरना पक्ष के खिलाड़ी पूरी ताकत के साथ चंडी माता का जयघोष एवं भगाओ-भगाओ के साथ सावरगांव के पक्ष के व्यक्तियों को पीछे ढकेल देते है और झंडा तोड़ने वाले खिलाड़ी झंडे को कुल्हाडी से काट लेते हैं। जैसे ही झंडा टूट जाता है, दोनों पक्ष पत्थर मारना बंद करके मेल-मिलाप करते हैं और गाजे बाजे के साथ चंडी माता के मंदिर में झंडे को ले जाते है। झंडा न तोड़ पाने की स्थिति में शाम साढ़े छह बजे प्रशासन द्वारा आपस में समझौता कराकर गोटमार बंद कराया जाता है।

ऐसी है यहां की कहानी
गोटमार मेले के आयोजन के संबंध में कई प्रकार की किवंदतियां हैं। इन किवंदतियों में सबसे प्रचलित और आम किवंदती यह है कि सावरगांव की एक कन्या का पांढुरना के किसी लड़के से प्रेम हो गया था। दोनों ने चोरी छिपे प्रेम विवाह कर लिया। पांढुरना का लड़का साथियों के साथ सावरगांव जाकर लड़की को भगाकर अपने साथ ले जा रहा था। उस समय जाम नदी पर पुल नहीं था। नदी में भर पानी बहता रहता था, जिसे तैरकर या किसी की पीठ पर बैठकर पार किया जा सकता था और जब लड़का लड़की को लेकर नदी से जा रहा था

तब सावरगांव के लोगों को पता चला और उन्होंने लड़के व उसके साथियों पर पत्थरों से हमला शुरू किया। जानकारी मिलने पर पहुंचे पांढुरना पक्ष के लोगों ने भी जवाब में पथराव शुरू कर दी। पांढुरना पक्ष एवं सावरगाँव पक्ष के बीच इस पत्थरों की बौछारों से इन दोनों प्रेमियों की मृत्यु जाम नदी के बीच ही हो गई। दोनों प्रेमियों की मृत्यु के पश्चात दोनों पक्षों के लोगों को अपनी शर्मिंदगी का एहसास हुआ और दोनों प्रेमियों के शवों को उठाकर किले पर माँ चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। संभवतः इसी घटना की याद में माँ चंडिका की पूजा-अर्चना कर गोटमार मेले का आयोजन किया जाता है।

प्रशासन दिखता है असहाय
आस्था से जुड़ा होने के कारण इसे रोक पाने में प्रशासन असमर्थ नजर आता है। इसके साथ ही पुलिस एक दूसरे का खून बहाते हुए लोगों को देखती रहती है। यहां प्रशासन असहाय दिखता है। यहां पर निर्धारित समय अवधि में पत्थरबाजी समाप्त कराने के लिए प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों को बल प्रयोग भी करना पड़ता है।

कई बार प्रशासन ने पत्थरों की जगह तीस हजार रबर की छोटे साइज की गेंद उपलब्ध कराई थी, परंतु दोनों गांवों के लोगों ने गेंद का उपयोग नहीं किया। अब प्रशासन ने दोनों गांवों के लोगों को नदी के दोनों किनारों पर पत्थर उपलब्ध कराना शुरू कर दिए है। वर्ष 2009 में मानवाधिकार आयोग के निर्देशों के बाद छिंदवाड़ा जिला प्रशासन ने पांढुरना एवं सावरगांव के बीच होने वाले गोटमार मेले में पत्थर फेंकने पर रोक लगाते हुए मेला क्षेत्र में छह दिनों के लिए धारा 144 लागू कर दी। लेकिन दोनो गांव के विरोध के बाद इसे परंपरा के रूप में प्रशासन की निगरान में कराया जाता है।

इलाज के लिए लगाए जाते है शिविर
प्रशासन यहां गोटमार मेले के दौरान पत्थरो से घायल होने वाले खिलाड़ियों और लोगो का इलाज कराने के लिए शिविर लगवाती है इसके साथ ही डॉक्टरों की टीमें तैनात रहती है। यदि कोई पत्थरबाजी में ज्यादा गंभीर घायल हो जाता है तो उसे नागपुर के बड़े अस्पतालों में रैफर किया जाता है।