प्रखर – वाणी
सोचो भारी जनाक्रोश कब होता है…जब जन जन की रूह का कतरा – कतरा रोता है…यूनियन कार्बाइड के अवशेष ने देश में आग लगाई…इधर आंदोलन की उग्रता ने प्रशासन की नींद भगाई…जहरीला कचरा पहुँच गया पीथमपुर के रामकी…चालीसवीं बरसी हाल ही में मनाई गैस काण्ड नाम की…न्यायालय ने ये जरूर कहा कि यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे का शीघ्र निस्तारण किया जाए…एक माह में उसके यथोचित निर्मूलन का उचित निर्णय लिया जाए…
माननीय न्यायाधीश ने ये नहीं कहा कि सिर्फ पीथमपुर में ही इसको जलाओ…उनका कथन तो ये था कि इस समस्या से जनता को मुक्ति दिलाओ…माना कि खतरनाक अपशिष्ट निपटान सुविधा मध्यप्रदेश के पीथमपुर में है…मगर ये भी तो जानो जनाब की ये सुविधा क्या सिर्फ पीथमपुर में ही है…जब तेरह साल पहले जर्मनी में इस कचरे का निपटान सुनिश्चित हुआ था…तब महज कुछ ही राशि में इस कार्य के अंजाम पर सहमति बनी तो जन जन दे रहा दुआ था…न जाने राजनीति की किस भेंट उस निर्णय को चढ़ा दिया…
अब फिर वो ही जहर यहां के इंसानों के सर मढ़ा दिया…जो ये कहते हैं कि पूर्व में 2014 में दस टन कचरा जलाकर उसका वैज्ञानिक परीक्षण हो गया…परीक्षण के परिणाम से कोई खतरा नहीं है ये ज्ञात हुआ है वो न दिखाएं फिजुल दया…जिनको जानना हो वो पीथमपुर सेक्टर 3 से लगे गांव सागौर जाकर देख ले…2015 के पूर्व वहां जिन दो नलकूपों और कुएं के जल से प्यास बुझती थी अब उसका जल चख ले…एक झटके में तीन चार गिलास पानी पी जाने की श्रद्धा रखने वाले अब वहां एक घूट पानी नहीं उतार पाते हैं…ऐसे अनेक प्रमाण वहां के सार्वजनिक प्रदूषण की दास्तान बताते हैं…
ये नजारा तो महज एक क्षेत्र का है जो रामकी से कई किमी दूर है…वहां के चप्पे चप्पे पर लोग वातावरण प्रदूषण का दंश भोगने को मजबूर है…जो 358 टन यूनियन कार्बाइड का कचरा था उसमें 60% स्थानीय मिट्टी व 40% सेवन नेपथाल रेसीड्यूस मूलतः मिथाइल आइसो साइनेट एवं कीटनाशकों के बनने की प्रक्रिया का सह-उत्पाद था…मगर पूरे विश्व को भोपाल गैस कांड के उपरांत लाशों और बिलखती पीढ़ियों के दर्द का मनहूस मंजर याद था…स्वास्थ्य , फसल और जलस्रोतों की चिंता इस कचरे के प्रभाव से है…वैज्ञानिक शोध भले ही भावी संकट न होने की बात करें मगर जनता वाकिफ इस कचरे के स्वभाव से है…अब तो लोग व्यंग्य कर रहे हैं स्वच्छ शहर इंदौर पर की ज्यादा साफ सफाई में माहिर हो तो ये लो कचरा…
अब मत ओढ़ना स्वास्थ्यगत स्वच्छता का कोई नया मिसरा…जो लोग कचरे की पैरवी कर रहे वो यदि बेख़ौफ हैं तो उठा ले उसको अपने माथे पर गंगा की तरह…क्यों अपने जहरीला कचरा पक्षधर तर्कों से जहर उन्मूलन की पहल करके कर रहे हैं जिरह…दो लोगों ने आत्मदाह की कोशिश की इंसान अपने आप को तभी मारता है जब उसका सबकुछ बर्बाद हो जाता है…जीने की तमन्ना तभी सार्थक रहती है जब जीवन आबाद हो जाता है…जहाँ के हर नागरिक की पीड़ा इसके भावी संताप से है…चिंता हमको ये नही है आगे क्या होगा हमें तो चिंता एंडरसन के पाप से है…उसके पापों का प्रक्षालन हम कर रहे हैं…नीलकंठ बनकर उसका जहर अपने ही गले में भर रहे हैं ।