MP के इस किले में है पारस पत्थर! जानिए किले से जुड़ी अनसुनी दासतां………..

मध्यप्रदेश का एक ऐतिहासिक किला जो न केवल शौर्य का प्रतीक हैं, बल्कि उससे कई अनगिनत रहस्य और कहानियों भी जुडी हुई हैं। आज हम बात कर रहे है रायसेन किले की , जो रायसेन जिले में स्थित है। यह किला न सिर्फ अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके भीतर छिपी एक कथा भी इसे खास बनाती है।

किले का 800 साल पुराना इतिहास :

रायसेन किले का निर्माण 1200 ईस्वी में किया गया था। यह किला शहर की पहाड़ी पर स्थित है। यह किला अद्भुत वास्तुकला, और युद्धकालीन रणनीति का एक बेहतरीन उदाहरण है। यहां एक मंदिर और एक मस्जिद दोनों स्थित हैं, जो राष्ट्र की एकता को दर्शाता है। किले में 9 विशाल दरवाजे है, 13 ऊंचे टॉवर, अनेक गुंबद और मध्यकालीन इमारतों के अवशेष आज भी मौजूद है।

रानी के बलिदान की एक साहसी कहानी :

इतिहासकारो के अनुसार ,1543 ईस्वी में जब इस किले पर राजा पूरणमल का शासन था, तो शेरशाह सूरी ने इस पर हमला कर दिया था । जब राजा पूरणमल को ये ज्ञात हुआ की जीत असंभव है और उनकी रानी दुश्मनों के हाथ लग सकती है, तो उन्होंने रानी की रक्षा के लिए एक कठोर कदम उठाया, उन्होंने स्वयं रानी की गर्दन काट दी। यह बलिदान की कथा सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते है।

पारस पत्थर से जुड़ा एक रोचक किस्सा :

रायसेन किले से एक रोचक किस्सा भी जुड़ा हुआ है ये किस्सा पारस पत्थर के बारे में है।लोक कथाओ की माने तो राजा राजसेन के पास यह चमत्कारी पत्थर था, उस पत्थर की खास बात यह थी कि वो लोहे को सोने में बदल सकता था। हार को देखते हुए राजा ने इस पत्थर को एक झील में फेंक दिया ताकि यह पत्थर दुश्मनों के हाथ न लग सके। मान्यता है कि आज भी यह पत्थर झील की गहराइयों में छिपा है और इसकी रखवाली एक जिन करता है।

रहस्यमय पत्थर की खोज आज भी करने आते है लोग :

हालांकि पुरातत्व विभाग के पास इस पत्थर या जिन का कोई प्रमाण नहीं हैं, फिर भी यह कहानी पर्यटकों को आज भी लुभाती है। कई लोग अब भी इस रहस्यमयी पत्थर को खोजने यहां आते हैं। रायसेन किला सिर्फ एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि बलिदान, रहस्य की जीती-जागती मिसाल है।